प्रमुख संवाददाता
देहरादून। उत्तराखण्ड का इतिहास गवाह है कि राज्य के कई एक्स सीएम और चंद एक्स डीजीपी एक एजेंडे के तहत अपनी कार्यशैली को परवान चढाया करते थे? चंद एक्स डीजीपी का कार्यकाल हैरान करने जैसा दिखाई दे चुका है क्योंकि वह कुछ राजनेताओं की चौखट पर जिस तरह से माथा टेकने के लिए अकसर वहां दण्डवत हुआ करते थे उसके चलते राजनेताओं की आंखों मंे खटकने वाले काफी लोग फर्जी मुकदमों का लम्बे समय तक दंश झेलते रहे? हैरानी वाली बात है कि एक पूर्व सीएम के इशारे पर तो एक एक्स डीजीपी और चंद पुलिस कप्तानों ने सरकार की आंखों में खटकने वालों पर जिस तरह से फर्जी मुकदमें कायम कर उन्हें जेल की सलाखों के पीछे पहुंचाया था उससे अधिकांश राज्यवासियों के मन मंे राजनेताओं और पुलिस के आला अफसरों के बीच हो रखे गठबंधन को लेकर काफी घबराहट देखने को मिलती थी कि कहीं उन पर भी फर्जी मुकदमें का हंटर न चल जाये? मुख्यमंत्री ने अंकिता भण्डारी को न्याय दिलाने के लिए हत्याकांड में शामिल गुनाहगारों के खिलाफ एसआईटी से जांच कराकर उन्हें वर्षों से जेल की सलाखों के पीछे पहुंचा रखा है लेकिन कांग्रेस के कुछ राजनेता अब यह ढोल पीट रहे हैं कि सरकार ने दो साल बाद भी अंकिता भण्डारी को न्याय नहीं दिलाया। गजब की बात यह है कि जब मामला न्यायालय में विचाराधीन है और उस पर सुनवाई चल रही है तो क्या राज्य के मुख्यमंत्री अदालत हैं जो अंकिता भण्डारी को न्याय देने के लिए आगे आ जायें? वहीं साहनी परिवार को न्याय दिलाने के लिए जब राज्य के डीजीपी उनके साथ खडे हुये तो कुछ राजनेताओं और कुछ खबरनवीजों की आंखों में वह इतनी तेजी से खटकने लगे हैं कि उनके खिलाफ एक माहौल बनाया जा रहा है कि डीजीपी अपराध रोकने में सफल नहीं है जबकि उनके कार्यकाल में दो कुख्यातों को मुठभेड में ढेर करने के साथ ही दर्जनों अपराधी पुलिस की गोलियों से घायल हुये वह कुछ राजनेताओं को आखिर क्यों नजर नहीं आ रहा यह उन पर सवालिया निशान लगाया जा रहा है?
उल्लेखनीय है कि राज्य में जब भी कोई महिला अपराध हुआ तो मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी और डीजीपी अभिनव कुमार ने अपराधियों के खिलाफ सख्त रूख अपनाने के लिए अपने आपको अगली पक्ति में रखा। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के राज मंे शुद्ध पुलिसिंग का जो आईना राज्य की जनता देख रही है उससे उन्हें पुलिस महकमे से बडी उम्मीद दिखाई दे रही है हालांकि कुछ राजनेताओं और कुछ कलमवीरों को पुलिस का इकबाल शायद नजर नहीं आ रहा है और यही कारण है कि अदृश्य अपराधों को लेकर कुछ राजनेता और कुछ कलमवीरों ने डीजीपी अभिनव कुमार को अपने निशाने पर लेने का कुचक्र रचा हुआ है? डीजीपी अभिनव कुमार की शुद्ध पुलिसिंग कुछ राजनेताओं को इसलिए भी शायद रास नहीं आ रही है कि वह उनकी चौखट पर सजदा करने के लिए कभी नहीं जाते और शायद यही बात कुछ राजनेताओं को लम्बे समय से अखरती आ रही है? उत्तराखण्ड के गलियारों में यह चर्चाएं आम हैं कि अगर साहनी मौत प्रकरण में डीजीपी अभिनव कुमार और मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के अलावा कोई और मुख्यमंत्री होता तो शायद गुप्ता बंधु कभी भी जेल की सलाखों के पीछे नहीं जाते?
साहनी परिवार को न्याय दिलाने के लिए मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी और डीजीपी अभिनव कुमार ने वही काम किया जो न्यायहित में उन्हें दिखाई दिया था। मुख्यमंत्री और डीजीपी की स्वच्छ कार्यशैली से उत्तराखण्ड के कुछ राजनेता बिलबिलाये हुये नजर आ रहे हैं कि आखिरकार गुप्ता बंधुओं को कैसे पुलिस महकमे ने जेल की सलाखों के पीछे पहुंचा दिया था? इन दिनों मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी और डीजीपी अभिनव कुमार को निशाने पर लेने का जो चक्रव्यूह रचा जा रहा है उसकी पटकथा कौन लिख रहा है यह भी किसी से छिपा नहीं है? गजब की बात तो यह है कि मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को अंकिता भण्डारी को न्याय दिलाने के लिए हमेशा से संकल्पबद्ध दिखाई दे रहे हैं लेकिन कांग्रेस के कुछ राजनेता शोर मचा रहे हैं कि सरकार ने दो साल बाद भी अंकिता भण्डारी को न्याय नहीं दिलाया। ऐसे में बहस चल रही है कि जब मामला न्यायालय में विचाराधीन है तो फिर उसमें राज्य के मुख्यमंत्री का कहां रोल रह जाता है क्योंकि कोई अदालत तो है नहीं जिसके चलते वह अंकिता भण्डारी को खुद न्याय दिलाने के लिए आगे आ जायें।