डीजीपी राज मे खत्म होगा मैडलो का खेल!

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प्रमुख संवाददाता
देहरादून। उत्तराखण्ड राज्य बनने के बाद से ही देखने को मिलता रहा कि पन्द्रह अगस्त और 26 जनवरी को मिलने वाले पुलिस मैडलो मे काफी अफसर अपने चहेतों को मैडल का गिफ्ट देने के लिए आगे आते रहे और उसके चलते जाबाज दिखने वाले कर्मवीर खाकीधारियों के मन मे हमेशा इस बात का दुख रहता था कि आखिरकार उन्हे मैडल से क्यों महरूम रखने के लिए उन्हें अकसर नजरअंदाज किया जाता है? उत्तराखण्ड के काफी पुलिस अफसर ऐसे देखने को मिले जिन्होंने अपनी परिक्रमा करने वाले छोटे अफसर से लेकर दरोगा और सिपाही को रेवडियों की तरह मैडल का जो ईनाम मिला करता था उस पर हमेशा सवालिया निशान लगते थे कि आखिरकार पुलिस मुख्यालय का मैडल देने को लेकर आखिर क्या पैमाना है जिसके चलते वह मैडल से खाकीधारियों को नवाजते आ रहे हैं? अब उत्तराखण्ड के अन्दर नये डीजीपी की सत्ता है और वह पुलिस महकमे को एक ही चश्मे से देखते हैं और छोटे से लेकर बडे मे कोई भेदभाव नहीं बरतते इसके चलते अब पुलिस महकमे के अन्दर भी इस बात को लेकर एक नई बहस का जन्म हो चुका है कि डीजीपी के राज मे चहेतो को मैडल देने का चला आ रहा खेल अब खत्म हो जायेगा।
उत्तराखण्ड पुलिस मे एक से एक जाबाज सिपाही, हैडकांस्टेबल, दरोगा, कोतवाल, सीओ, अपर पुलिस अधीक्षक तैनात हैं और वह अपने कार्यकाल मे अपनी जान हथेली पर रखकर कई बार ऐसे ऑपरेशन करते आये हैं जिसमे उनके सामने मौत का डर भी रहा लेकिन उन्होंने कभी डर कर काम नहीं किया। उत्तराखण्ड मे काफी खाकीधारी ऐसे हैं जिन्हें आज तक उनकी जाबाजी पर उन्हें किसी भी पुलिस अफसर ने मैडल देने का साहस नहीं दिखाया और काफी खाकीधारी ऐसे हैं जिन्होंने राज्य के अन्दर कुछ छोटे और बडे पुलिस अफसरों की परिक्रमा की तो उन्हें इसका ईनाम मैडल के रूप मे दे दिया गया था। उत्तराखण्ड के अन्दर काफी दरोगा, इंस्पेक्टर, सीओ और चंद अपर पुलिस अधीक्षक ऐसे हैं जिनका काम हमेशा आवाम की नजर मे बेहतर रहा है लेकिन इसके बावजूद भी वह सिर्फ शायद इसलिए अपने सीने पर पुलिस मैडल नहीं लगा पाये क्योंकि उन्होंने राज्य के कुछ छोटे व बडे पुलिस अफसरों की परिक्रमा करने से अपने आपको दूर रखा?
उत्तराखण्ड का जबसे जन्म हुआ है तबसे ऐसे खाकीधारियों की एक लम्बीचौडी लिस्ट है जिन्होने अपने कार्यकाल मे अपराधियों और नशा माफियाओं के खिलाफ बडे-बडे ऑपरेशन कर सलाखों के पीछे पहुंचाया और कुछ सिपाही और दरोगा ऐसे भी रहे जिन्होंने दूसरे राज्यों मे जाकर कई-कई दिन तक भेष बदलकर अपराधियों को खोज निकालने का जानलेवा टास्क संभाला था लेकिन उनके मन मे यही पूर्व मे पीडा रही कि उनके सीने पर कभी पुलिस मैडल नहीं लग पाया? अब उत्तराखण्ड की कमान डीजीपी अभिनव कुमार के हाथो मे है और उन्होंने पुलिस महकमे मे साफ संदेश दे रखा है कि अच्छा काम करने वाले पुलिसकर्मियों को हमेशा प्रोत्साहन दिया जायेगा। डीजीपी ने अपने अब तक के कार्यकाल मे राज्य पुलिस को एक ही चश्मे से देखा है और वह अपने अफसरों के काम मे कभी भी दखलअंदाजी करते हुए नहीं दिखे और न ही उनमे कभी मीडिया मे छाने की कोई रूचि देखने को मिली जैसी कुछ पूर्व डीजीपी के कार्यकाल में देखने को मिलती थी? अब पन्द्रह अगस्त को मिलने वाले मैडलो मे वो खेल नहीं चल पायेगा जो पूर्व डीजीपी के राज मे देखने को मिला था? अब पुलिस मैडल का हकदार वही होगा जिसने सेवा पथ पर चलते हुए पुलिस की आन-बान-शान को हमेशा जिंदा रखा है।

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