सीएम का अधिकार है डीजीपी की ताजपोशी

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देहरादून(संवाददाता)। उत्तराखण्ड के कलमवीरों को इस बात ज्ञान होना चाहिए कि किसी भी राज्य के मुख्य सचिव और डीजीपी वहां के मुख्यमंत्री की पंसद के ही बनाये जाते हैं। उत्तराखण्ड के डीजीपी की डीपीसी के बाद से राज्य के अन्दर जो अफवाहों का दौर शुरू हो रखा है उसने सोशल मीडिया पर अपना बदरंग चेहरा आवाम के सामने परोस रखा है और आवाम भी अफवाहों के इस खेल को इसलिए नहीं पहचान पा रही क्योंकि उन्हें इस बात का इल्म ही नहीं है कि डीजीपी की तैनाती आखिरकार कैसे और कौन करता है? डीजीपी की डीपीसी के बाद से ही उत्तराखण्ड के अन्दर ऐसा माहौल तैयार किया जा रहा है जिससे कि पुलिस महकमे के अन्दर एक असमंजस की स्थिति पैदा की जा सके लेकिन शातिराना खेल खेलने वाले कलमवीरों को शायद इस बात का इल्म नहीं है कि डीजीपी की तैनाती यूपीएससी नहीं बल्कि राज्य के मुख्यमंत्री करते हैं क्योंकि राज्य के मुख्य सचिव और डीजीपी हमेशा उनकी पहली पसंद होते हैं और यही अधिकारी मुख्यमंत्री के विजन को धरातल पर उतारने के लिए आगे बढकर काम करते हैं। उत्तराखण्ड को अपराधमुक्त करने का संकल्प लेने वाले मुख्यमंत्री 2०25 तक राज्य को अपराधमुक्त करने का वचन राज्य की जनता को दिये हुये हैं और उनके इस वचन को पूरा करने के लिए डीजीपी ने अपराधियों को मिट्टी में मिलाने का जो सिलसिला शुरू कर रखा है उससे राज्यवासियों को अब अपराधियों और माफियाओं से आजादी मिलने का दौर तेजी के साथ शुरू हो गया है।
उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी राज्य को आदर्श राज्य बनाने का संकल्प लिये हुये हैं और उन्होंने एक बडे विजन के साथ सरकार चलाने का जो सिलसिला शुरू कर रखा है उसी का परिणाम है कि आज वह उत्तराखण्ड ही नहीं बल्कि देशभर में अपनी एक बडी छाप छोड चुके हैं कि वह बडे-बडे फैसले लेने में कभी भी हिचकते नहीं है। उत्तराखण्ड के पूर्व डीजीपी अशोक कुमार के सेवानिवृत्त होने के बाद मुख्यमंत्री पुष्कर ंिसह धामी ने अपने विशेषाधिकार का प्रयोग करते हुए आईपीएस अभिनव कुमार को उत्तराखण्ड का कार्यवाहक डीजीपी बनाकर उन्हें राज्य में अपराधियों के खिलाफ एक बडी जंग के लिए मैदान में उतार दिया था। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के विजन को धरातल पर उतारने के लिए डीजीपी अभिनव कुमार ने अपने अब तक के कार्यकाल में जिस आक्रामक पुलिसिंग से अपराधियों और माफियाओं को रूबरू कराया है उससे आज अपराध जगत के खूंखार भी मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से अपनी जान की भीख मांग रहे हैं। डीजीपी अभिनव कुमार के कार्यकाल में दो बडे अपराध हुये जिनमें उधमसिंहनगर में नानकमत्ता गुरूद्वारे के डेरा प्रमुख बाबा तरसेम सिंह की हत्या थी तो वहीं हरिद्वार में सुनार की दुकान में डकैती प्रकरण मुख्य था जिसके खुलासे के लिए खुद डीजीपी अभिनव कुमार ने मोर्चा संभाला था और दोनो वारदातों को मात्र दस पन्द्रह दिन के भीतर पुलिस ने खोल दिया था और दो कुख्यात बदमाशों को पुलिस ने मुठभेड में मार गिराया था। डीजीपी अभिनव कुमार की आक्रामक पुलिस से अपराधियों में हाहाकार मचा हुआ है और उन्हें यह इल्म हो चुका है कि उत्तराखण्ड में अब अपराध करना समझो भगवान से मुलाकात करने जैसा बन गया है। उत्तराखण्ड के डीजीपी को लेकर दिल्ली यूपीएससी में बैठक हुई और उस बैठक के अन्दर जो कुछ हुआ वह भले ही किसी ने देखा नहीं लेकिन उत्तराखण्ड की मुख्य सचिव राधा रतूडी ने डीजीपी की डीपीसी को लेकर बैठक में अपना सख्त रूख अपनाया यह भी इन दिनों चर्चा का विषय बना हुआ है? सवाल यह है कि किसी भी राज्य में कौन मुख्य सचिव और डीजीपी तैनात होगा इसका फैसला यूपीएससी नहीं बल्कि राज्य के मुख्यमंत्री तय करते हैं। मुख्य सचिव और डीजीपी बनाने का विशेषाधिकार मुख्यमंत्री के पास होता है और चंद दिन पूर्व ही मुख्य सचिव राधा रतूडी को एक बार फिर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने छह माह का सेवा विस्तार देकर उन्हें राज्य में सेवायें देने के लिए अपनी मोहर लगाई थी। बात दें कि मुख्यमंत्री अपने मिजाज के अफसरों को ही मुख्य सचिव और डीजीपी इसलिए बनाते हैं कि वह उनके विजन को धरातल पर उतारें। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने जबसे राधा रतूडी को राज्य का मुख्य सचिव बनाया है तबसे वह मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के विजन को धरातल पर उतारने के लिए हर दिन आगे बढकर काम कर रही हैं और राज्यहित में जिन विकास योजनाओं को धरातल पर उतारा जाना है उसको लेकर वह अफसरों को साफ संदेश दे रही हैं कि मुख्यमंत्री के विजन को धरातल पर उतारने में कोई भी अफसर आनाकानी करते हुए न दिखाई दे।

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