प्रमुख संवाददाता
देहरादून। उत्तराखण्ड मे विधानसभा चुनाव से लेकर लोकसभा चुनाव मे करारी हार का सामना करने वाले अधिकांश कंाग्रेसी नेताओं का कांग्रेस भवन मे आगमन को लेकर लम्बे समय से मोह भंग दिख रहा था और राज्य के सबसे बडे कांग्रेस भवन मे अकसर नेताओं की गैर मौजूदगी मे वहां सूनापन देखकर ऐसा आभास ही नहीं होता था कि वह एक राष्ट्रीय पार्टी का भवन है? लम्बे समय से कांग्रेस भवन की ओर रूख न करने वाले काफी नेताओं को जैसे ही उत्तराखण्ड मे दो सीटों पर हुये उपचुनाव मे कांग्रेस प्रत्याशियों की जीत की गूंज सुनाई दी तो सुनसान दिखने वाले कांग्रेस भवन मे अचानक कांग्रेसी नेताओं और कार्यकर्ताओं का सैलाब उमड़ आया और समूचा कांग्रेस भवन पार्टी नेताओं-कार्यकर्ताओं से खचाखच भरा हुआ था और उनमे पार्टी प्रत्याशियों की जीत को लेकर जो एक नई आशा दिखाई दी उसके चलते वह पार्टी प्रत्याशियों की जीत से झूम उठे और एक दूसरे को वह बधाई देकर यही संदेश दे रहे थे कि अब एक नई ऊर्जा के साथ कांग्रेस को मजबूत करने के लिए सबने आगे बढऩा है।
उल्लेखनीय है कि उत्तराखण्ड कांग्रेस के कई छत्रपों ने अपने-अपने गुट बना रखे हैं और वह अपनी एकल राजनीति करके सिर्फ अपने को ही चमकाने के मिशन मे आगे बढ़ते रहे और कांग्रेस को मजबूत करने के लिए उन्होंने हमेशा कोई बडी पहल नहीं की जिसके चलते राज्य के अन्दर लम्बे अर्से से कांग्रेस हाशिये पर चलती चली गई और उसी के चलते उसे बार-बार हार का सामना करना पडा था? उत्तराखण्ड के बडे छत्रपों के बीच चले रहे अंर्तद्वंद चल रहा था उसकी गंूज बार-बार हाईकमान के सामने पहुंच रही थी और कांग्रेस के दिग्गज नेता का मौजूदा दौर मे लोकसभा मे नेता विपक्ष बने राहुल गांधी उत्तराखण्ड मे कमजोर हो रही कांग्रेस को लेकर एक नये अंकगणित पर चलते हुये कांग्रेस को ऊर्जावान बनाने की खोज मे आगे बढ़ रहे थे जिसकी गूंज कांग्रेस के काफी छत्रपों को जब लगी शुरू हुई तो उन्होंने आपसी गुटबाजी को खत्म करने का संकल्प लेते हुए उत्तराखण्ड मे बद्रीनाथ व मंगलौर सीट पर हुये उपचुनाव मे पार्टी प्रत्याशियों के लिए जोरदार प्रचार किया और वह पार्टी प्रत्याशियों को जीत के रथ पर सवार करने मे आखिरकार सफल हो गये।
हैरानी वाली बात है कि एक लम्बे दशक से राजधानी का कांग्रेस भवन जो कि नेताओं की गैर मौजूदगी के कारण हमेशा वहां वीरान दिखता था और वहां की विरानियत से यह सवाल खडे होते थे कि क्या कांग्रेस के दिग्गज नेताओं को इस बात का इल्म हो रखा है कि अभी भाजपा युग चल रहा है जिसके चलते राज्य के अन्दर कांग्रेस की एंट्री संभव नहीं है तो उन्होंने कांग्रेस भवन का लम्बे समय से मोह ही छोड दिया था? हालांकि कांग्रेस के कुछ राजनेता जरूर समय-समय पर कांग्रेस भवन मे आकर पार्टी नेताओं व कार्यकर्ताओं के साथ राज्य मे कमजोर हो रही कांग्रेस को लेकर चिंतन व मनन करते रहते थे लेकिन आपसी फूट के कारण कांग्रेस के दिग्गज नेताओं ने पार्टी को हाशिये पर लाकर खडा करने का जो एजेंडा अपनाया था उस एजेंडे को कांग्रेस हाईकमान ने करीब से पहचान लिया था और उसी के चलते आने वाले समय मे उत्तराखण्ड के अन्दर एक नई कांग्रेस का जन्म होते हुए देखा जा सकता है? उपचुनाव मे कांग्रेस प्रत्याशियों को मिली जीत के बाद अकसर कांग्रेस भवन से दूरी बनाकर रखने वाले काफी कांग्रेसी नेता और कार्यकर्ताओं ने जीत का जश्न मनाने के लिए वहां अपनी इस तरह से आज एंट्री कराई मानो कांग्रेसी प्रत्याशियों की जीत का रास्ता उन्होंने ही सुलभ किया हो? सवाल यह तैर रहे हैं कि मात्र सवा माह पूर्व उत्तराखण्ड मे लोकसभा की पांचो सीटे गवाने वाली कांग्रेस के कुछ छत्रपों को आखिरकार ऐसा कौन सा डर सता गया जिसके चलते उन्होंने एकसाथ आगे आकर पार्टी प्रत्याशियों को जिताने के लिए अपने कदम आगे बढाये? सुनसान रहने वाले कांग्रेस भवन में आज जिस तरह से वहां जीत का जश्न मनाया जा रहा था अगर इस जश्न को बरकरार रखने के लिए कांग्रेसी छत्रपों ने 2०27 मे विधानसभा चुनाव जीतने का संकल्प लिया तो यह तय है कि अब कांग्रेस हर मोर्चे पर भाजपा को सड़क से लेकर सदन तक ललकारने के लिए जरूर आगे खडी होगी?