देहरादून(संवाददाता)। प्रगतिशील भोजनमाता संगठन, उत्तराखंड ने समान कार्य के लिए समान वेतन दिये जाने सहित अनेक मांगों के समाधान के लिए विधानसभा कूच किया और प्रदेश सरकार के खिलाफ नारेबाजी करते हुए जैसे ही वह रिस्पना पुल की तरफ बढे तो पुलिस ने बैरीकैडिंग लगाकर सभी को रोक लिया और इस दौरान पुलिस के साथ नोंकझोंक हुई और बाद में सभी वहीं धरने पर बैठ गई।
यहां प्रगतिशील भोजनमाता संगठन से जुडी हुई भोजनमातायेंं नेहरू कालोनी में इकटठा हुए और वहा ंसे समान कार्य के लिए समान वेतन दिये जाने सहित अनेक मांगों के समाधान के लिए विधानसभा कूच किया और प्रदेश सरकार के खिलाफ नारेबाजी करते हुए जैसे ही वह रिस्पना पुल की तरफ बढे तो पुलिस ने बैरीकैडिंग लगाकर सभी को रोक लिया और इस दौरान पुलिस के साथ नोंकझोंक हुई और बाद में सभी वहीं धरने पर बैठ गई। इस अवसर पर संगठन की महामंत्री रजनी जोशी ने कहा है कि समान कार्य के समान वेतन व स्थायी कर्मचारी घोषित किये जाने की मांग लगातार सरकार से की जा रही है लेकिन अभी तक इस ओर किसी भी प्रकार की कोई कार्यवाही नहीं की गई है। उन्होंने कहा कि भोजनमाताओं को 18 हजार रूपये का वेतन दिया जाना चाहिए और सरकार को इस ओर जल्द ही कार्यवाही करनी चाहिए, अन्यथा आंदोलन को तेज किया जायेगा। उन्होंने कहा कि भोजनमाताएं 18-19 सालों से सरकारी विद्यालयों में खाना बनाने का काम बहुत कम मानदेय में करती हैं। हमसे मात्र 2००० रूपये में खाना बनाने के अलावा चतुर्थ कर्मचारी का काम, फाइलें इधर-उधर ले जाना, चाय पिलाना, पानी पिलाना, सुबह स्कूल खोलना व शाम को बंद करना, स्कूलों के अलावा अन्य परीक्षाओं में ड्यूटी करना, सफाई कर्मचारी का काम, पूरे स्कूल में झाडूघ् लगाना, कुर्सी मेज की साफ-सफाई, शौचालय की साफ-सफाई, करना, स्कूलों के व अन्य परीक्षाओं में सीटें लगाना भी है। उन्होंने कहा कि यहां तक कि माली का काम, स्कूल की झाडिय़ां व पूरे मैदान की घास काटना, स्कूल में फूलवारी लगाना, साग-सब्जियां उगाना), चुनावों में ड्यूटी हो या कोविड सेंटरों में काम आदि कर रही हैं। उन्होंने कहा कि शुरूआती समय में हमें मात्र 25० रूपये का मानदेय दिया जाता था। अब इतने वर्षों बाद हमारा मानदेय प्रतिमाह मात्र 2००० रूपये किया गया है। वह भी हमें मात्र 11 माह का मानदेय ही मिलता है। उन्होंने कहा कि लॉकडाउन के समय में 12 महीने काम लिया गया लेकिन मानदेय 11 माह का दिया गया। उन्होंने कहा कि भोजनमाताओं के बीमार होने पर कोई अवकाश नहीं मिलता है। उन्होंनेे कहा कि अगर हम किसी भी कारण से अवकाश लेते हैं तो हमें विद्यालय से निकालने की धमकी दी जाती है। उन्होंने कहा कि पहाड़ों में छूआ-छूत के कारण मासिक धर्म के समय विद्यालयों में आने पर रोक है। ऐसे में हमें किसी दूसरी महिला को अपने स्थान पर पांच दिन खाना बनाने भेजना होता है।
उन्होंने कहा कि जबकि केरल, पडुचेरी, तमिलनाडू व अन्य कई राज्यों में भोजनमताओं को उत्तराखंड की भोजनमाताओं से कई गुना ज्यादा वेतन मिलता है। उन्होंने कहा कि हमारी मांग है कि भोजनमाताओं को न्यूनतम वेतन 18 हजार दिया जाय । उन्होंने कहा कि सभी भोजनमाताओं की स्थाई नियुक्ति की जाय। सरकारी कर्मचारी घोषित किया जाए। स्कूलों में 26 वें विद्यार्थी पर दूसरी भोजनमाता रखी जाय। उन्होंने कहा कि ईएसआई, पीएफ, पेंशन, प्रसूति अवकाश जैसी सुविधाएं भोजनमाताओं को दी जाय। इस अवसर पर प्रशासनिक अधिकारी के माध्यम से मुख्मयंत्री को ज्ञापन प्रेषित करते हुए ठोस कार्यवाही किये जाने की मांग की गई। इस अवसर पर अनेकों भोजनमातायें उपस्थित रही।