तीरथ के जोश से कौन घबराया?

0
101

देहरादून। उत्तराखण्ड के नये मुख्यमंत्री तीरथ सिंह ने राज्य की जनता का दिल जीतने के लिए चंद समय में ही जिस तरह से 20-20 मैच की तरह एक के बाद एक बडे फैसले लेकर राज्यवासियों का दिल जीतना शुरू किया वह कहीं न कहीं किसी को इतना अखरता गया कि तीरथ सिंह रावत को राजनीति की पिच पर 20-20 मैच से टैस्ट मैच खेलने के लिए मजबूर किया जा रहा है? चंद समय में मुख्यमंत्री को विधानसभा चुनाव में जाना है और अगर वह टैस्ट मैच की तरह अपनी पारी खेलते रहे तो चुनावी रणभूमि में वह चारो खाने चित हो सकते हैं? ऐसे में भाजपा हाईकमान को चाहिए कि वह तीरथ पर भरोसा कर उन्हें राज्य में अपने हिसाब से सत्ता चलाने के लिए खुली छूट दे दें तो यह तय है कि तीरथ ंिसह रावत अपनी मधुर व स्वच्छ छवि से जनता के बीच अपनी पार्टी की राजनीतिक नैय्या को पार लगा देंगे?
उत्तराखण्ड के नये मुख्यमंत्री की कार्यशैली को लेकर भी उठने लगे सवाल ? 2017 में प्रचण्ड बहुत से सत्ता में आयी भाजपा सरकार के चार साल जिस मुख्यमंत्री के सहारे गुजारे उसको लेकर तक सवाल खड़े होते ही थे और चुनावी साल में भाजपा हाईकमान ने प्रदेश को नया मुखिया भी दे दिया। नये मुखिया व सांसद तीरथ सिंह रावत ने कुर्सी सम्भालते ही जिस प्रकार 20-20 मैच की तरह से अपनी पारी की शुरुआत की थी। उसको लेकर भाजपा के कार्यकर्ताओं में नया जोश भी आ गया था। जिस मंत्रिमंडल को त्रिवेन्द्र चार साल में पूरा नही कर पाए। उसे तीरथ सिंह रावत ने अपने पहले ही शपथ ग्रहण में पूरा कर लिया। उसके बाद कुम्भमेला में त्रिवेंद्र के उदासी भरे फैसलों को पलट कर मेला को नया रंग भी दिया। त्रिवेंद्र सिंह रावत के कई फैसलों को तुरंत बदल भी दिया। पूरी ऊर्जा के साथ तिरथ सिंह रावत मैदान में उतरे थे लेकिन अचानक से उनकी पारी टैस्ट मैच की पारी जैसी हो गयी है। जानकारों का मानना है कि तीरथ सिंह रावत तो 20-20 के अंदाज से ही अपना काम करने उतरे थे। उन्होंने स्लोगन भी दे दिया ‘समय कम-काम ज्यादा’ लेकिन कोरोना पॉजिटिव होने व कुछ विवादित बयानों के बाद नए मुख्यमंत्री तिरथ सिंह रावत पर आरएसएस का ही चाबुक चला है जिस कारण ही वो भी त्रिवेंद्र सिंह जैसे हालातों में दिख रहे हैं? जानकारों का मानना है कि तीरथ सिंह रावत अपने किसी भी कार्यकाल में इतने सिमटे नही रहे है। चाहे वे प्रदेशाध्यक्ष रहे हो, राष्ट्रीय सचिव रहे हो या सांसद रहते उनकी सक्रियता और जनता के बीच बने रहना ही उनकी अपनी लोकप्रियता का परिचायक रहा है। अब मुख्यमंत्री जैसी बड़ी जिम्मेदारी मिलने के बाद तीरथ सिंह रावत प्रदेश भाजपा को पुनः सत्ता में लौटा कर बड़ी उपलब्धि संगठन को देना चाहते थे परंतु जिस प्रकार से उनके ऊपर मोहरे बैठाएं जा रहे है,उनके बोलने पर अंकुश लगाया जा रहा है। ऐसे में इस हरफनमौला खिलाड़ी को भी आरएसएस अपनी चाबुक से त्रिवेंद्र की तरह ही अपने ही कार्यकर्ताओं के बीच विलेन न बना दें? तीरथ के सलाहकार दिल्ली से थोपे जा रहे है तो स्थानीय आरएसएस टीम भी अपने ही लोगो को मुख्यमंत्री की सेवा में बांधने में लगा है? इसी प्रकार चर्चा है मुख्यमंत्री के सलाहकारों व विशेष कार्याधिकारीयों के पद के लिये आरएसएस में लंबी चौड़ी लिस्ट पर मंथन हो रहा है? आशंकायें उठनी शुरू हो गई हैं कि आरएसएस के इन्ही फरमानों से मुख्यमंत्री के साथ-साथ मंत्री व भाजपा कार्यकर्ताओं में भी दबाव है? जो लोग सक्रिय राजनीति में नही होतें है उनकी इन नियुक्तियों से भाजपा का कार्यकर्ता हलकान महसूस करता है। तीरथ सिंह रावत जैसे जमीनी नेता का प्रदेश भर के कार्यकर्ताओं से सीधा सम्पर्क है लेकिन मुख्यमंत्री की अतिव्यस्तता के कारण हर कार्यकर्ता से मिल पाना बहुत मुश्किल भरा होता है। उसके लिए ही मुख्यमंत्री के सलाहकारों व विशेष कार्याधिकारियों की बड़ी टीम रहती है। जो अभी तक भी बनी नही है। जिन लोगो पर चर्चा हो रही है उनके कारण वही समस्या आएगी जो पूर्व में त्रिवेंद्र सिंह के चर्चित सलाहकारों के कारण भाजपा के कार्यकर्ताओं ने झेला है। आरएसएस की ये ही चाबुक ने त्रिवेंद्र को विलेन बनाया और अब चुनावी समर में तीरथ सिंह रावत भी शिकार होने वाले है? त्रिवेंद्र सिंह रावत भी राजधानी नही छोड़ते थे और अब तीरथ सिंह भी उसी राह पर चलते दिख रहे हैं। 2007 में भी भगत सिंह कोश्यारी की मेहनत पर भाजपा हाईकमान ने भुवन चन्द्र खंडूरी को सत्ता की बागडोर सौंपकर भाजपा कार्यकर्ताओं को हलकान किया था जिसको तीन वर्षों में ही विधायकों व कार्यकर्ताओं के आक्रोश के बाद हटाना पड़ा। उसके बाद डॉ०रमेश पोखरियाल निशंक को कमान सौंप कर कार्यकर्ताओं में पूरा जोश भरा जिस पर निशंक खरे भी उतर रहे थे। उस समय भी 2010 का कुम्भ सफल करा कर यूनेस्को तक को एक दिन में कुम्भ में जुटी भीड़ कर चौंकने पर मजबूर कर दिया था। ऐसे 2021 के कुम्भमेला के बीच में ही सन्तों के आक्रोश के कारण त्रिवेंद्र को हटाकर तीरथ को कमान सौंपी। तीरथ ने भी कमान संभालते ही 11 मार्च के स्नान पर ऐसा माहौल बनाया की चारों स्नान में सबसे अधिक भीड़ 11 मार्च के स्नान पर ही जुटी और कुम्भ का स्वरूप उत्साहजनक हो गया। अब ये ही आरएसएस की चाबुक तीरथ सिंह रावत के सामने भी डॉ० निशंक जैसे 2012 के हालातों में न पैदा हो जायें? 2012 में चुनाव से ऐन पहले खंडूरी के बगावती कारणों के कारण निशंक को हटाकर फिर। भुवनचंद्र खंडूरी को कमान सौंपी और नारा दिया ‘खंडूरी है जरूरी’। 2012 में हुये चुनाव में हालात ऐसे बने की सत्ता के लिये बहुमत की 36 सीटों के लिये भाजपा ने 35 सीटें अर्जित की लेकिन चुनावी चेहरा भुवनचंद्र खंडूरी को भाजपा व कांग्रेस के राजनीतिक दिग्जजों ने घेर कर परास्त कर दिया और खंडूरी चुनाव हार गये। भाजपा एक सीट की कमी के कारण 8 सीट कम वाली कांग्रेस के हाथों सत्ता गवां बैठी। 2022 में होने वाले चुनावों से ऐन पहले भाजपा हाईकमान व आरएसएस की इन चाबुक से ही प्रचण्ड सत्ताधारी भाजपा बाहर न हो जाये?

LEAVE A REPLY