चंद्र प्रकाश बुड़ाकोटी
देहरादून।यह संयोग है या प्रयोग इधर दिया पैसा उधर प्रमोशन और रुक गया ट्रांसफर। अगर यह प्रयोग है तो आने वाले समय में इसका कुछ अफसर भरपूर इस्तेमाल करेंगे और नुकसान सवा करोड़ उत्तराखंडियों का होगा। यह संयोग है तो प्रदूषण बोर्ड के एक अफसर के साथ ही बार बार क्यो हो रहा ? प्रदूषण बोर्ड ने जब मई दो हजार बीस में पचास करोड़ दिए ठीक इक्कीस दिनों बाद बोर्ड के सदस्य सचिव को आंतरिक पद भार नए नए बनाए गए जलवायु मंत्रालय का पहला निदेशक से नवाजा गया। अब जब सत्ताईस अप्रैल को उक्त सदस्य सचिव का ट्रांसफर नियमो के तहत किया गया, एक बार फिर बोर्ड ने बीस मई को पच्चीस करोड़ सरकार को और दे दिए फिर क्या था एक दिन पहले उन्नीस मई को ही उक्त सदस्य सचिव के ट्रांसफर पर तेईस दिनों बाद संसोधन आदेश जारी कर फिर से बोर्ड की कमान सौंपी गई ये संयोग या प्रयोग आप खुद तय करें? बताते चले कि उतराखण्ड प्रदूषण बोर्ड ने पिछले एक साल में बोर्ड के बीस से अधिक खातों को खाली कर सरकार की झोली में पिच्चत्तर करोड़ कोरोना महामारी से लडऩे के लिए दे दिए। सबसे बड़े दानी के रूप में सामने आए प्रदूषण बोर्ड ने किसी सीएम को नाराज नही किया तिर्बेन्द्र सरकार में पचास करोड़ बोर्ड का छह करोड़ ब्याज का नुकसान करवाकर दानी बने।और अब तीरथ सरकार में भी एक दर्जन खातों की एफडी को समय से पहले तोड़ कर दो करोड़ ब्याज का नुकसान कर पच्चीस करोड़ भेंट स्वरूप सरकार को दिए गए जिसका न कोई ऑडिट होना है न ही उपयोगिता प्रमाण लिया जाना है। पैसा सरकारी है जनता के टैक्स का है और जनहित में ही लगेगा। कोरोना महामारी में लोग खुलकर सरकार की मदद कर रहे है सो बोर्ड ने भी दे दिया एक बोर्ड के अफसर ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि अगर यू ही बोर्ड का पैसा खर्च किया जाता रहा तो आगे समय मे कर्मचारियों को सैलरी देना मुश्किल हो जाएगा।अगर अन्य अफसर भी यही प्रयोग करने लगे तो फिर क्या होगा समझ जा सकता है?