जंगल की ओर से आ रही ये हवाऐं कागज का यह शहर न उड़ जाए…?

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देहरादून(मुख्य संवाददाता)। राज्य में कोरोना महामारी थमने का नाम नहीं ले रही है और राज्य सरकार अपने बेहतर सुविधाएं मुहैया कराने का डिढोरा पिटवाने में कोई कसर नहीं छोड़ रही है। कोरोना मरीजों को जहां आईसीयू बैड व वैल्टीनेटर बैड नसीब न होने के कारण उन्हें आये दिन मौत के सफर पर जाना पड रहा है उसने राज्यवासियों के मन में हर समय मौत का एक डर पैदा कर दिया है? हैरानी वाली बात है कि सरकार ने रायपुर स्पोर्ट्स कॉलेज में कोविड अस्पताल बनाकर ऐसा गीत गाया मानो कोरोना से लडने के लिए कितना एतिहासिक कदम उठा लिया हो लेकिन इस अस्पताल को वह आज तक आईसीयू बैड में क्यों तब्दील नहीं कर पाई है यह उसकी इच्छाशक्ति का सच बताने के लिए काफी है? कोविड अस्पताल बनाने का औचित्य क्या है क्योंकि जब कोरोना मरीज खुद ही घर में आईसीयूलेट हो रहे हैं तो फिर इन अस्पतालों का होना न होना कोई मायने नहीं रखता ? उत्तराखण्ड के सभी सरकार व प्राईवेट अस्पतालों में आईसीयू बैड फुल हैं और उसकी वजह से कोरोना मरीजों की मौत का आंकडा देशभर में उत्तराखण्ड को कटघरे में खडा कर रहा है तो उससे राज्य के अन्दर यही आवाज सुनाई दे रही है कि जंगल की ओर से आ रही यह हवायें कागज के शहर को उडा न ले जायें?
बेशक सरकार अखबारों की मोटी मोटी हैडिंगो के साथ कोरोना महामारी पर विराम लगाने में सफल हो रही हो लेकिन सच्चाई इसके ठीक विपरीत है। राज्य में स्वास्थ्य सेवाएं लचर पूर्व की भांति आज भी लचर बनी हुई है। पहाड़ों में आज भी न तो डाक्टर, न ही नर्सिंग कर्मचारियों, दवाओं सहित तमाम सुविधाओं का अकाल पहले की भाँति बना हुआ है। जो थोडे बहुत चिकित्सक सेवायें दे रहे थे, उन्हें कुंभ ड्यूटी पर भेजा गया उसके बाद वे भी अपनी सत्ता के गलियारों में ऊँची पहुँच के कारण वापस नही लौट सके। आखिर पहाडी जिलों के वाशिदे समय से पूर्व ही मौत की शय्या पर लिटा दिये जायेंगे जो सरकार की उदासीनता का प्रत्यक्ष प्रमाण है। सीमांत जनपद चमोली के ग्रामीणों मरीजों का सबसे अधिक दवाब कर्णप्रयाग चिकित्सालय में है,इसके अंतर्गत पिंडर घाटी,पोखरी व जोशीमठ सहित सभी विकास खंड लाभ के लिए आते है,वहां पर भी केवल दो डाक्टर दम्पतियो के सहारे अस्पताल चल रहा है।वही रुद्रप्रयाग जनपद में भी स्वास्थ्य सेवाएँ बहुत ही लचर स्थिति में है। जहाँ पर मुख्य चिकित्सा अधिकारी,जिला चिकित्सा अधीक्षक बीमार हो रखे है वही आधे दर्जन चिकित्सक भी संक्रमित है। जिले में सेवाएं दे रहे पाँच चिकित्सकों को इस विनाशकारी आपदा में हरिद्वार में अटैच कर दिया गया है,ऐसे में तो यही लग रहा है कि सरकार को पर्वतीय जिलों को कुछ देना नही केवल लेना ही लेना है चाहे जनता को मूलभूत सुविधाओं से वंचित ही क्यों न करना पडें।

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