कौन सरकार-किसकी सरकार?
देहरादून(मुख्य संवाददाता)। उत्तराखण्ड में कहने को तो प्रचंड बहुमत की सरकार है लेकिन कोरोना काल में सरकार आवाम की नजरों मंे फेल हो चुकी हैं उससे अब उनके मन में सरकार को लेकर एक ज्वालामुखी जल रहा है और वह यह कहने से भी नहीं चूक रहे कि राज्य में सरकार नाम की कोई चीज नहीं है और न ही नये मुख्यमंत्री का कोई इकबाल देखने को मिल रहा है जिससे साफ अंदाजा लगाया जा सकता है कि कौन सरकार और किसकी सरकार है? उत्तराखण्ड के हर जनपद में जिस तरह से आम इंसान के मन में घरों के अन्दर कैद होने के बावजूद भी पल-पल मौत का साया उन्हें डरा रहा है वह यह बताने के लिए काफी है कि राज्य में हर इंसान को इस बात का इल्म हो चुका है कि उनकी सरकार अभी कोमा में है और इस कोमा से वह कब तक बाहर आयेगी किसी को नहीं पता इसलिए उसे इस कोरोना महामारी की जंग में सिर्फ और सिर्फ अकेले ही जीवन को बचाने के लिए संघर्ष करना है? सरकार आवाम को झूठ परोस रही है कि उसके पास ऑक्सीजन बैड व आईसीयू बैड मौजूद हैं लेकिन जिनके परिजन आईसीयू बैड व वैल्टीनेटर बैड न मिलने के कारण पल-पल मौत के आगोश में जा रहे हैं उनके मन में अपनी अदृश्य हो चुकी सरकार को लेकर बडा आक्रोश पनपने लगा है और उनका साफ आरोप है कि सरकार तुम कहीं नहीं हो?
कोरोना की दूसरी लहर ने अपना विकराल रूप में दस्तक दे ही दी है । राज्य में शासन-प्रशासन, चिकित्सा व्यवस्था पूरी तरह विफल हो गई है। अब सूबे के मुखिया ने राज्य सरकार की मदद के लिए सेना से सहयोग माँगा है,तथा कोरोना से ठीक हुए मरीजों से अपील की है वे लोग प्लाज्मा दान करें।
कोरोना की दूसरी लहर का प्रभाव अब गांवों की तरफ दिखाई दे रहा है। लेकिन अभी तक गांव की ओर किसी का ध्यान नहीं गया हैं। गांव में चिकित्सा सेवाओं का ढांचा पूरी तरह चरमराया हुआ है। इसलिए न उनकी जांच हो पा रही है और न ही स्वास्थ्य सुविधाएं उन तक ही पहुंच पा रही हैं।
गांवों के गांव इन दिनों मौसमी बुखार से जकड़े हुए हैं। यह वाइरल फीबर है या फिर कोरोना,इसकी जांच करने की कोई व्यवस्था प्नरशासन के पास नहीं है। गांव में स्वास्थ्य विभाग का कोई ढांचा नहीं है, इसलिए वहां जांच नहीं हो पा रही है। गांव वाले जांच केंद्रों तक नहीं पहुंच पा रहे हैं और न ही प्रशासन गांव तक पहुंच रहा है। गांवों में कोरोना की दूसरी लहर ने प्रारंभिक दिनों में ही दस्तक देकर हजारो से अधिक लोगों को संक्रमित किया। यदि पूरे पर्वतीय जिलों की ओर नजरें इनायत की जाय तो इन जिलों में प्रति दिन हजारों में संक्रमित मरीज आ रहे हैं। पहली लहर के दौरान कुछ व्यवस्थाएं राज्य सरकार ने जिलाधिकारियों को दी थी जिसका असर स्पष्ट रूप से दिखाई भी दिया था। जैसे राज्य के बाहर या एक जिले से दूसरे जिले में जाने वालों की भी यदि कोरोना जांच हुई तो उन्हें आइसोलेट किया जा रहा था। किसी के भी दूसरी जगहों से घर आने पर उसे घर में आइसोलेट किया जा रहा था। उसके घर पर पोस्टर लगा दिया जा रहा था। इस बार हालत या व्यवस्थाये नहीं है,जिससे संक्रमित मरीजों की संख्या में बेतहाशा इजाफा हो रहा है। यदि कोई व्यक्ति संक्रमित है तो उसकी जांच की रिपोर्ट एक सप्ताह से अधिक दिनों में आ रही है,यदि रिपोर्ट पाजिटिव आयी तो वह दिनो कितने लोगों से मिला इस बीच उसने कितने लोगों को संक्रमित किया इसका लेखा जोखा किसी के पास नही है। इस अव्यवस्था की जिम्मेदारी न तो पुलिस प्रशासन, गांव का प्रधान कोई भी नहीं ले रहा है। पहली लहर में प्रधानो के द्वारा उत्कृष्ट कार्य किया लेकिन सरकार ने उन्हें कोरोना योद्धा नही माना तथा सम्मानित उन कर्मचारियों को किया जिन्होंने अपने घर से ही सारी जिम्मेदारी प्रधानो पर थोप कर मोटी कमाई की,जिससे प्रधान संगठनों ने इस बार काम नहीं करने का फैसला किया है। वही जन कल्याण के कार्यो में लगे लोगों का मानना है कि सूबे के मुखिया ने मदद माँगने में बहुत देर कर दी है यदि मुखिया के नीति निर्धारक व उनके किचिन कैबिनेट पहले से ही उन्हें सचेत कर देती तो वे वे नायक की भूमिका में जनता के दिलों पर राज अवश्य कर सकते थे।
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तो दो माह में ही फेल हो गये तीरथ?
भाजपा हाईकमान ने त्रिवेन्द्र रावत से सत्ता लेकर पौडी के सांसद तीरथ सिंह रावत को उत्तराखण्ड की सत्ता सौंपी थी तो आभास हुआ था कि राज्य के अन्दर चार साल में हुये भ्रष्टाचार, घोटाले व दागी अफसरों पर बडी नकेल लगेगी लेकिन दो माह के कार्यकाल में नये मुख्यमंत्री राज्य के अन्दर अपनी नई टीम तक का गठन नहीं कर पाये और कोरोना काल में जिस तरह से उन्हें अपने आपको बेहतर साबित करने के लिए रात-दिन एक कर भाजपा हाईकमान की आंखों का तारा बनना चाहिए था वहीं उन्होंने अपने कुछ अफसरों के दिखाये जा रहे हवाई मायाजाल को सच मानकर यह सोच लिया कि उनकी सरकार कोरोना के खिलाफ कितनी बडी लडाई धरातल पर लड रही है लेकिन राज्यवासियों की नजर में सरकार की यह लडाई सिर्फ वीडियो गेम पर लडने वाली लडाई की तरह ही नजर आ रही है और सोशल मीडिया पर भी वह अपना बखान करने से बाज नहीं आ रही। राजधानी में जब आईसीयू बैड व वैल्टीनेटर बैड कोरोना मरीजों को नहीं मिल पा रहे हैं तो उससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि पहाडों व अन्य जनपदों में कोरोना मरीज किस तरह से अपना जीवन बचाने के लिए हरपल मौत से लड रहे होंगे? अब तो राज्य की जनता व सोशल मीडिया पर भी यह शोर सुनने को मिल रहा है कि जिस नये मुख्यमंत्री से राज्यवासियों को एक आशा की किरण दिखाई दी थी वह तो दो माह में ही फेल हो गये?