देहरादून(संवाददाता)। यह समय भी अजब है,चारों ओर हाहाकार मचा है लेकिन इस हाहाकार में भी कुछ लोग मुनाफा कमाने से नही चुक रहे है। एक तरफ ऐसे लोग हैं,जो हर हाल में लोगों की मदद करना चाहते हैं,मदद करने के नए-नए रास्ते निकाल रहे हैं तो दूसरी तरफ ऐसे लोगों हैं,जो आपदा में मुनाफे का अवसर तलाश रहे हैं।
कोरोना के उपचार के लिए प्लाज्मा थेरेपी को महत्वपूर्ण बताई जा रही है,यह कितनी महत्वपूर्ण है या नहीं ये विशेषज्ञ ही बता सकते है। आज की स्थिति यही है कि कोरोना संक्रमण से ठीक हो चुके लोगों के प्लाज्मा की वर्तमान संक्रमितों के उपचार के लिए अत्याधिक मांग है। उन में बेड,ऑक्सीजन आदि की जितनी मांग है,लगभग उतनी ही प्लाज्मा की भी है। संक्रमण से उबर चुके लोगों से आगे आने की अपील की जा रही है। कुछ दिन पहले स्वयं को संक्रमित घोषित करने के बाद अब स्वस्थ हो चुके नेताओं पर तंज कसा जा रहा है कि वे प्लाज्मा दान के लिए सामने क्यूं नहीं आ रहे हैं, कुल मिला कर कोरोना संक्रमण से उबर चुके लोगों के प्लाज्मा की अत्याधिक मांग है और ऐसा प्रतीत होता है कि उस अनुपात में लोग सामने नहीं आ रहे हैं। इसकी कमी है तो बहुतेरों के लिए यह प्रचार का अवसर है और बहुतेरों के लिए व्यापार का ! इसमें चंद बड़े अस्पतालों की भूमिका पर सवाल खड़ा हो रहा है। देहरादून के चंद बड़े अस्पतालों के बारे में यह जानकारी सामने आई है कि वे प्लाज्मा के लिए लिख रहे हैं और प्लाज्मा डोनर मिलने पर इस बात पर जोर दे रहे हैं कि प्लाज्मा डोनेशन की प्रक्रिया उनके अस्पताल में हो? देहरादून में आईएमए ब्लड बैंक में जहां प्लाज्मा डोनेशन की प्रक्रिया के छह हजार पाँच सौ रुपये लिए जा रहे हैं,वहीं कुछ बड़े अस्पताल बारह हजार से पंद्रह हजार रुपए तक इस प्रक्रिया के ले रहे है ऐसी चर्चाएं आये दिन सामने आ रही है? इस तरह बड़े अस्पतालों में मरीज को प्लाज्मा के लिए आईएमए ब्लड बैंक के मुकाबले दो गुना शुल्क चुकाना पड़ रहा है, अस्पताल तो कोरोना संक्रमितों से भरे हुए हैं तो प्लाज्मा डोनर के पुनः संक्रमण का खतरा भी वहां अधिक है,लेकिन अपने मुनाफे को देखते हुए अस्पताल अपने यहाँ ही प्लाज्मा डोनेशन कराने पर जोर दे रहे हैं। यह भी आशंका प्रकट की जा रही है कि जिस मरीज के लिए डोनर प्लाज्मा देने आ रहा है,उसकी जरूरत से अधिक खून अस्पताल निकाल ले रहे हैं ताकि वे अतिरिक्त प्लाज्मा का व्यवसायिक उपयोग कर सकें? जानकारों का कहना है कि चंद बड़े अस्पताल इस मौके को भी अपना प्लाज्मा बैंक बनाने में इस्तेमाल कर रहे हैं। प्लाज्मा डोनर्स की लिस्ट सार्वजनिक होने के बाद बिचौलियों का तंत्र भी खड़ा होने की खबरें हैं, जो डोनर को मरीज से मिलवाने में ही पैसा बना रहे हैं? खून में व्यापार वाले हृदयविहीन तबके द्वारा खून का यह व्यापार इतने बारीक तरीके से चल रहा है कि नियामक एजेंसियों की निगाह क्यों नहीं जा रही है यह हैरान करने वाली बात है? ऐसे चेहरों को भी बेनकाब करने के लिए सरकारी सिस्टम को आगे आना चाहिए जिससे कि कोरोना काल में अपने मरीजों का जीवन बचाने के लिए हर परिवार अपना सबकुछ निछावर करने के लिए आगे खडा हुआ है।