मुख्य संवाददाता
देहरादून। कोरोना की दूसरी लहर से पूरा देश जूझ रहा है। उत्तराखंड भी इस समस्या से जूझ रहा है। इस बार के संक्रमण से आम आदमी ज्यादा परेशान नजर आ रहा है। सरकार के दावे हवा हवाई साबित हो रहे है। अभी केवल पिछले एक हफ्ते के ही आंकड़े देखे जाय तो हर दिन कोरोना से मरने वालों का आंकड़ा 100, 120, 90, 151 हो रहा है, जो किसी भी सरकार के लिए चिंता की बात होनी चाहिए। अब तो राज्य के अन्दर यह आशंकाएं भी उठने लगी हैं कि सरकार जो मौत का आंकडा बता रही है वह सही नहीं है क्योंकि शमशान घाटों पर आये दिन लाशों का ढेर कुछ और ही कहानी बयां कर रहा है? मुख्यमंत्री के लिए यह भी एक ंिचतन का विषय होना चाहिए कि जिस तरह से उनके दो माह के कार्यकाल से पहले ही सोशल मीडिया पर उनके खिलाफ आवाम के मन में आक्रोश भडकने लगा है और राज्य में अब सोशल मीडिया पर जिस तरह से उत्तराखण्ड में राष्ट्रपति शासन लगाये जाने की मांग उठ रही है वह तीरथ ंिसह रावत के लिए शुभ संकेत नहीं है और 2022 में विधानसभा चुनाव में यह आक्रोश भाजपा को एक बडे संकट में डाल सकता है?
उत्तराखंड में लगता है कि सरकारी अफसर केवल कागज पर ही कोरोना को नियंत्रण और व्यवस्था पूरी होने का दावा कर रहे है। मुख्यमंत्री भी इन अफसरों पर ही निर्भर हो गए है। अगर सरकार ने जल्द ठोस कदम नही उठाये तो हालात और भी बुरे हो सकते है। कोरोना से मृत्यु दर लगातार बढ़ रही है। अधिकारी मुखिया को भी गुमराह कर रहे है। रोज नए नए आदेश जारी किए जा रहे है, जिससे जनता में और ज्यादा डर पैदा हो रहा है। अभी कल देहरादून डीएम ने एक आदेश जारी किया, की राशन की दुकानें सप्ताह में केवल दो दिन खुलेगी, अब कोई पूछे कि क्या इन दो दिन में दुकानों में भीड़ नही हो जाएगी एक साथ सामान लेने के लिए। जबकि सरकार को 12 बजे तक दुकानें खोले रखने चाहिए थी, ताकि दुकानों में भीड़ भी न होती। इस तरह से कुछ अव्यवहारिक निर्णय कोरोना में लेने से परिणाम और बुरे हो सकते है। सरकार को या तो 10 दिन का पूरा सवबाकवूद लगा देना चाहिए या भी जनता को राहत देने वाले फैसले लेने चाहिए। मुख्यमंत्री भी इस दौर में कोई खास निर्णय नही ले पा रहे है, केवल कुछ चुनिदा अफसरों के भरोसे ही काम कर है। अफसरशाही का हाल ये है कि व्यवस्था के नाम पर इतने नोडल अधिकारी बना दिए है, जिनका आपस मे कोई समन्वय ही नही है। यही नही सभी नोडल अफसरों के फोन नम्बर सार्वजनिक कर दिए है, अब ये बेचारे अफसर काम करे या फोन सुने। अच्छा होता सरकार एक कॉल सेंटर बनाती जिसमे सभी लोगो की समस्यओं को सुना जाता और ये नोडल अफसर अपना काम करते।