अब सासंद नही सरकार हो हुजूर!

0
94

देहरादून(मुख्य संवाददाता)। उत्तराखण्ड के पौडी से सांसद तीरथ सिंह रावत को दो माह पूर्व भाजपा हाईकमान ने उत्तराखण्ड की सत्ता सौंपी इसके बाद राज्यवासियों को उम्मीद थी कि मुख्यमंत्री उत्तराखण्ड में धडाम हो चुके सरकारी सिस्टम से लेकर सड़क, स्वास्थ्य के क्षेत्र को विकसित करने की दिशा में बडा कदम उठायेंगे लेकिन दो माह के कार्यकाल के दौरान तीरथ सिंह रावत सांसद की भूमिका में ही नजर आ रहे हैं जिससे राज्यवासियों ने सवाल खडे करने शुरू कर दिये हैं कि सांसद महोदय अब आप सरकार हो इसलिए सरकार की तरह काम करो जो कि अब तक आप राज्य के अन्दर कर नहीं पा रहे हो? अगर अभी भी मुख्यमंत्री ने बेलगाम दिख रहे सरकारी सिस्टम पर अपनी भोहें न तानी तो उनका सत्ता में रहना या न रहना कोई मायने नहीं रखेगा?
राज्य के निर्माण का श्रेय भारतीय जनता पार्टी को जाता है। लेकिन वे इसे भुनाने में असफल ही रहे। सत्ता के सुख की लालसाएं हमेशा ही हिल्लौरे मारती रही। 2002 मे भाजपा को राज्य की जनता ने नकार दिया। देश के प्रधानमंत्री का उत्तराखंड से आध्यात्मिक रिश्ता रहा है। 2017 के विधानसभा चुनावों में गढवाल के श्रीनगर में रैली के लिए आये तो जनता की अपार भीड़ को देखकर वे गदगद हुए। देश के प्रधानमंत्री से गढवाल की जनता को भी बहुत आशायें रही। अपने लच्छेदार भाषणों में जनता को फंसा कर मोदी ने जनता से अपील की वे उत्घ्तराखंड में सरकार बनाना चाहते हैं। लेकिन कांग्रेस को सबक सिखाने के लिए नहीं, बल्कि उत्घ्तराखंड में विकास की बहार लाने के लिए। जनता ने भी थोक के भाव से वोट देकर 57 विधायकों को विधानसभा की शोभा बढाने के लिए चुना। लेकिन विकास नामक अलख आजतक दूर दूर तक नहीं दिखाई दी। अपने केद्र व संघ के प्रिय रहे त्रिवेंद्र रावत को सत्ता सौपकर राज्य का विकास तो नहीं हुआ लेकिन उन्होंने अपने चेहतो का विकास खूब किया। एक बार पुनः भाजपा हाई कमान ने त्रिवेंद्र से सत्ता लेकर गढवाल सांसद तीरथ सिंह रावत को सौपी,वे राज्य में भाजपा के महत्वपूर्ण पदों पर आसन्न रहे है,उन्हे गढवाल सांसद इसी तर्ज पर जीताकार दिल्ली की गरिमा के लिए भेजा,अब वे सासंद के साथ साथ राज्य के मुखिया की जिम्मेदारी भी संभाल रहे है।
राज्य में कोरोना आये दिन चौगुनी रफ्तार से बढ रहा है। लेकिन मुख्यमंत्री कुंभकर्णीय निद्रा में है,स्वास्थ्य सेवाएं न के बराबर है और अपने जयचंद्रो से घिरे रहने वाले मुख्यमंत्री को ये सब राज्य की राजधानी में भी दिखाई नहीं दे रहा है। आखिर इतने निठुर मुख्यमंत्री तो उत्तर प्रदेश के जमाने में भी नही रहे है,उन्होंने ने भी पर्वतीय जिलों के लिए पर्वतीय विकास मंत्रालय बनाया था, जो उप मुख्यमंत्री कहलाता था। मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने अपने दो माह के कार्य काल में जनता के बीच कोई उपलब्धि नहीं ला सके है,अब तो जनता में तो असंतोष तेजी से पनप रहा है वही सरकार के मंत्री भी अपनी ही सरकार पर गुर्राने से परहेज नहीं कर रहे आखिर उन्हें भी वोट के लिए जनता के बीच जो जाना है। राज्य में दवाओं,राशन,सब्जियों के आसमान छूती कीमतों के साथ-साथ प्राण वायु सहित, आईसीयू व बैड के लिए जूझते मरीजों के तीमारदारो की जेबों पर डाका डालते निजी अस्पतालों पर भी नकेल कसने में असफल हो रहे है। जिस प्रकार से राज्य में महामारी दिनोंदिन भयावह स्थिति मे है उसमें मुखिया ने अभी तक अपने को मुखिया की भूमिका जनता के सामने पेश नही कर सके है या हो सकता है कि मुखिया अभी तक अपने को गढवाल सांसद ही समझ रहे हो। अब तो विकास के कुचक्र में फंसी जनता भी कह रही है कि मान्यवर आप सासंद नही,सरकार है। आखिर कब खोलेगे अपने नेत्र!कही ये सत्ता मोह आपके राजनीतिक जीवन में प्रश्न चिन्ह न लगा दे। वही संघ के शिक्षण संस्थानों में कार्यरत आर्चोयो ने भी दबी जबान में मान लिया है कि जनता के बीच अच्छा संदेश नहीं जा रहा है,नौकरशाही, भ्रष्टाचार चरम पर है,लोग असमय ही अकाल को जा रहे है,ऐसे में मुख्यमंत्री जनता के लिए सुखद फैसले लेने में असक्षम क्यों है? इस मे भी तख्त पलटने की षंणयंत्र की बू आ रही है,जिस तरह से आँखें मूंद कर मुख्यमंत्री ने अपने जयचंद्रो पर विश्वास कर जनता के प्रति कोई सहानुभूति नहीं रखी है उससे यही प्रतीत होता है।

LEAVE A REPLY