दो माह में अपनी टीम तक नहीं बना पाये हुजूर
प्राईवेट अस्पतालों के अधिग्रहण से डरते मुखिया?
देहरादून। 2022 में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले तीरथ सिंह रावत को भाजपा हाईकमान ने यह सोचकर राज्य की सत्ता सौंपी की वह त्रिवेन्द्र रावत राज में हुये भ्रष्टाचार, घोटाले, हिटलरशाही व बेलगाम हो चुकी अफसरशाही पर नकेल लगाकर राज्य को एक नई दिशा देंगे और अपने अल्पकार्यकाल में वह राज्यवासियों का दिल जीतकर एक बार फिर भाजपा को सत्ता का स्वाद चखायेंगे। हाईकमान की यह सोच उत्तराखण्ड के अन्दर धरातल पर उतरती हुई नहीं दिखाई दे रही है। गजब बात यह है कि राज्य के मुख्यमंत्री अपने दो माह के पूरे होने जा रहे कार्यकाल में भी अपनी नई टीम गठित नहीं कर पाये और कोरोना काल में जिस तरह से अब तक हजारों इंसान आकाल मौत में समा गये हैं उसके बाद भी वह तीरथ सिंह रावत एक कडक शासक की भूमिका में आना ही नहीं चाह रहे या फिर वह कुछ अफसरों के कोकस द्वारा बिछाये गये जाल में फंस गये हैं जिससे वह बाहर निकलने का रास्ता शायद नहीं खोज पा रहे? हैरानी वाली बात है कि देहरादून, हरिद्वार व उद्यमसिंह नगर के काफी प्राईवेट अस्पतालों में जिस तरह से एक आईसीयू बैड हासिल करने के लिए आवाम को लाखों रूपये भेट स्वरूप देने पड रहे हैं वह तीरथ सरकार को कब नजर आयेगा यह सोचनीय विषय है? सवाल उठ रहे हेैं कि क्या तीरथ सिंह रावत इतने कमजोर मुख्यमंत्री बन गये हैं कि वह राजधानी के प्राईवेट अस्पतालों का अधिग्रहण करने से भी धबरा रहे हैं जहां कुछ प्राईवेट अस्पतालों में एक आम इंसान अपने मरीज को इसलिए भर्ती कराने से डरा हुआ है कि वहां का एक दिन का खर्चा तीस से चालीस हजार रूपये का बताया जा रहा है ऐसे में अगर सरकार आवाम का जीवन बचाने के लिए उसे एक आईसीयू बैड उपलब्ध नहीं करा पा रही है तो फिर राज्य में सरकार है कहां?
इसमें कोई दो राय नहीं है कि पूरे भारत में युद्ध काल जैसे हालात हो गए हैं भला युद्ध में भी इतने लोगों की जान नहीं जाती जितनी जान इस अदृश्य वायरस ने ले ली है उत्तराखंड की बात करें तो अब तक 3000 से ज्यादा लोग इस वायरस की वजह से अपनी जान गवा चुके हैं लेकिन अभी भी सरकार अपने पुराने ढर्रे पर ही चल रही है अगर ऐसा ही चलता रहा तो जैसा पिछले साल से अब तक हुआ है ऐसा ही साल 2021 से 22 तक होता रहेगा लिहाजा सरकार को चाहिए कि अपने तंत्र को और भी मजबूत करें और स्वास्थ्य व्यवस्थाओं को बेहतर बनाने के लिए अस्पतालों के निर्माण और मौजूदा समय में जो हालात हैं ऐसे में आम जनता को राहत दिलवाने के लिए तमाम प्राइवेट अस्पतालों का अधिग्रहण सरकार कर सकती है क्योंकि जिस किसी को भी कोविड-19 हो जा रहा है अगर वह अपनी जान बचाने के लिए पूरी जमा पूंजी भी लगा दे तो यह प्राइवेट अस्पताल संचालक उतने से भी संतुष्ट नहीं हो रहे हैं ऐसे में सरकार को चाहिए कि अपनी प्रजा को बचाने के लिए कोई बड़े कदम उठाए
क्राइम स्टोरी को सूत्रों के हवाले से मिली खबर के अनुसार देहरादून हल्द्वानी और हरिद्वार के बड़े अस्पताल मरीजों को भर्ती करने से पहले ही उनका बैंक बैलेंस चेक कर ले रहे हैं मतलब जैसा मरीज वैसा इलाज और अगर कोई व्यक्ति गरीब रथ भी जाए तो उसके बर्तन तक जब तक नाभिक जाएं तब तक उसे अस्पताल में ही भर्ती करके रख रहे हैं सरकार और सरकार का सिस्टम शायद इस ओर ध्यान बाद में दे जब कोविड-19 लोग भुखमरी और आर्थिक तंगी से अपनी जान लगाएंगे जब जब किसी भी देश में युद्ध हुआ है तब तक वहां की सरकारों ने तमाम तमाम सिस्टम को अपने हाथों में लिया है भले ही वह प्राइवेट सेक्टर हो या फिर सरकारी ऐसे में तीरथ सिंह रावत को चाहिए कि अपने सरकारी अस्पतालों की व्यवस्थाओं को सुधारने के साथ-साथ मोटे पेट वाले संचालकों के अस्पतालों का भी पूरा ब्यौरा मंगाए अगर जरूरत पड़ती है तो जो अस्पताल हजारों लाखों रुपए लेकर मरीज के लिए बेड बुक कर रहे हैं उनको अपने अधिग्रहण में लेकर सरकार चलाएं।
उत्तराखंड में स्वास्थ्य व्यवस्था के हालात क्या है याद से नहीं 21 सालों से सबको पता है उत्तराखंड बनने के बाद से आप आज तक स्वास्थ्य के क्षेत्र में कभी डॉक्टर को पहाड़ चढ़ाने के लिए सरकार को जद्दोजहद करनी पड़ती है तो कभी डॉक्टरों और नर्सों की भर्तियों के लिए पूर्व के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र हूं हरीश रावत हूं विजय बहुगुणा रमेश पोखरियाल निशंक बीसी खंडूरी तमाम नाम ऐसे हैं जिन्होंने स्वास्थ्य के क्षेत्र में कोई बड़ा काम नहीं किया अब जब लोग मर रहे हैं तब सरकार को ध्यान आ रही है कि हमें अस्पतालों में बैठ बड़ा नहीं है ऑक्सीजन के प्लांट लगाने हैं आदि आदि जब की हालत यह है कि कोविड-19 से पहले उत्तराखंड में ही सड़कों पर माताएं बच्चों को जन्म दे रही थी आज भी ऐसा ही हाल है लोग कंधों पर जब तक अस्पताल पहुंचते हैं तब तक मरीज की जान निकल जाती है ऐसे में सरकार का यह कहना कि व्यवस्थाएं चाक-चौबंद है यह बताता है कि सरकार सब कुछ देख कर भी आंख बंद करने पर ही आमादा है हैरानी की बात यह है कि सरकार के मुखिया को उनके अधिकारी या तो गलत फीडबैक दे रहे हैं या फिर अधिकारी भी जानते हैं कि जब तक ड्यूटी कर रहे हैं तब तक सलाम करें उत्तराखंड में मुख्यमंत्रियों का बदलना तो कपड़े बदलने जैसा हो गया है लिहाजा अधिकारी भी अब किसी मुख्यमंत्री को ज्यादा भाव नहीं देते।