छह सौ की बोतल बारह सौ रूपये में
दिलबाग-गोल्डन भी बिक रहा दुगनी कीमत पर
प्रमुख संवाददाता
देहरादून। उत्तराखण्ड सरकार का सिस्टम किस तरह से फुस्स होता जा रहा है इसकी बानगी राजधानी में ही देखने को मिल रही है। गजब बात है कि प्रशासन ने शराब के ठेके तो बंद करा दिये लेकिन उसके बावजूद भी जगह-जगह शराब की तस्करी कैसे और किसकी शह पर हो रही है यह हैरान करने वाली बात है? गजब बात तो यह है कि अब जो शराब तस्करी हो रही है वह चण्डीगढ़ या हरियाणा ब्रांड की नहीं है बल्कि उत्तराखण्ड के ठेकों में बिकने वाली ही शराब कैसे तस्करी हो रही है इसका जवाब आखिर कौन देगा इसका पता नहीं? शराब ठेके बंद होने से जो शराब की बोतल छह सौ रूपये की बिका करती है वह तस्करी करके दुगने दामों पर बेची जा रही है ऐसे में तो सवाल उठ रहे हैं कि जब शराब की तस्करी हो ही रही है तो फिर क्यों न शराब ठेकों को भी दोपहर बारह बजे तक खोल दिया जाये जिससे कि तस्कर अपने खेल को अंजाम न दे सकें। शराब के साथ दिलबाग व गोल्डन भी दुगने दामों पर बेचे जा रहे हैं और सरकारी सिस्टम घृतराष्ट्र बना हुआ है जिसे इस बात का पता ही नहीं है कि राजधानी में कर्फ्यू के दौरान भी आम आदमी को किस तरह से लूट का शिकार बनाया जा रहा है।
उल्लेखनीय है कि कोरोना की पहली लहर में जब सरकार ने शराब ठेके बंद किये थे तो उसके बाद शराब तस्करी का बडा तांडव देखने को मिला था और शराब की एक बोतल तीन गुना दामों पर बेची जाती थी जिसके चलते तस्करी करने वालों ने कोरोना काल का खूब फायदा उठाया और इस खेल को खेलते हुए उन्होंने मोटी धनराशि अपने खजाने में भरी। बतादें कि उस दौरान कोतवाली क्षेत्र में नकली शराब कांड में सात-आठ लोगों की मौत हो गई थी और उसके बाद सरकार को समूचे राज्य में आवाम की नाराजगी का शिकार होना पडा था। इस कांड का जब खुलासा हुआ तो पता चला कि शराब से मरने वाले लोगों ने शराब ठेकों की ही शराब पी थी ऐसे में सवाल उठे थे कि आखिर जब शराब ठेकों से तस्करी करके लाई गई थी तो फिर वह जहरीली कैसे हो गई थी? इस शराबकांड का रहस्य आज भी जस का तस बना हुआ है। अब एक बार फिर राजधानी में कोरोना कर्फ्यू लगाया गया है और आवश्यक वस्तुओं की दुकानों में शराब की दुकानों को भी कुछ घंटों के लिए खोला गया था जिसके चलते शराब तस्करी पर नकेल लगी हुई थी लेकिन जैसे ही जिला प्रशासन ने शराब की दुकानों को सम्पूर्ण रूप से बंद करने का आदेश दिया तो शराब तस्करों की बांछे खिल गई और शहर के अन्दर जो शराब की बोतल छह सौ रूपये में बिका करती है उसे शराब तस्कर बारह सौ रूपये तक में बेच रहे हैं। ऐसे में अगर शराब तस्कर नकली शराब बनाकर उसकी तस्करी करने के खेल में आगे आ गये और इसे पीने से फिर कोई बडा हादसा हो गया तो तीरथ रावत सरकार पर एक बडा ग्रहण लग जायेगा? बतादें कि शराब ठेके बंद होने से कच्ची शराब तस्करी करने वालों के भी हौसलें बुलंद हो जाते हैं और वह अपने धंधे को बडे पैमाने पर करने के लिए अपनी पूरी टीम के साथ मैदान में उतर जाते हैं। कुछ वर्ष पूर्व कच्ची शराब पीने से धर्मनगरी हरिद्वार में जिस तरह से काफी लोगों की मौत का मंजर उत्तराखण्ड सरकार को देखना पडा था उससे शायद सरकार ने अभी तक कोई सबक नहीं लिया है इसलिए सरकार को मंथन करना चाहिए कि शराब तस्करी पर नकेल लगाने व कच्ची शराब माफियाओं के इरादों को सफल न होने देने के लिए उन्हें चंद घंटों के लिए शराब ठेकों को उसी तरह से खोलना चाहिए जिस तरह से वह कुछ समय पूर्व तक खुलते रहे हैं? अगर ऐसा न हुआ तो जिला प्रशासन की आंख के नीचे शराब तस्कर अपनी तस्करी का तांडव पर्दे के पीछे से खेलते रहेंगे और कर्फ्यू में रोजी-रोटी के लिए तरसने वाले लोग शराब की लत के चलते अपने परिवार का पेट काटकर महंगे दामों पर शराब खरीदने का खेल खेलते रहेंगे जो कि सिस्टम के लिए शुभ संकेत नहीं है। हैरानी वाली बात है कि जो दिलबाग पांच रूपये का मिला करता है वह कर्फ्यू के इस दौर में पन्द्रह रूपये का बिक रहा है और दस रूपये की गोल्डन के दाम दुगने लिये जा रहे हैं ऐसे में सरकार को अपने सारे सिस्टम को अलर्ट कर ऐसी तस्करी व कालाबाजारी पर रोक लगाने के लिए आगे आना पडेगा नहीं तो ऐसे तांडव करने वाले अपने मिशन में सफल होते रहेंगे।