देवभूमि हुई कलंकित!

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देहरादून/कोटद्वार(संवाददाता)। उत्तराखण्ड में महत्वपूर्ण मंत्रालय संभालने वाले सूबे के मुखिया को उनके मुलाजिम क्या गुल खिलवा रहे है, इससे वे अनभिज्ञ ही है? दिल्ली पुलिस की टीम द्वारा पौडी जिले के कोटद्वार शहर में नकली दवा फैक्ट्री का काला कारोबार करने वाले गैंग के आधा दर्जन दवा माफियाओं को दबोचकर उनके कब्जे से जिस तरह से जीवन रक्षक इंजेक्शन, उसके रेपर बरामद किये हैं उसने उत्तराखण्ड सरकार के सिस्टम की कलई खोलकर रख दी है? नकली इंजेक्शन के लिए उत्तराखण्ड को चुनना यह साबित कर गया कि माफिया तंत्र राज्य में किस कदर अपने आपको सुरक्षित महसूस करता है? इस फैक्ट्री के पकडे जाने से जहां पुलिस, खुफिया तंत्र, एसटीएफ का सारा तंत्र धडाम दिखाई दे गया उससे उत्तराखण्ड पर समूचे देश में एक बडा दाग लग गया कि दिल्ली की क्राईम ब्रांच तो उत्तराखण्ड आकर नकली दवाईयां बनाने वाले गैंग को पकड ले गई लेकिन उत्तराखण्ड का पुलिस, खुफिया तंत्र, एसटीएफ, नारकोटिक्स व स्वास्थ्य महकमे को इसकी भनक तक नहीं लग पाई? गजब बात तो यह है कि यह सारे विभाग खुद मुख्यमंत्री के पास है और अगर उनके महकमें भी इस कोरोना काल में माफिया तंत्र पर नकेल लगाने में शून्य हो रहे हैं तो उससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि मुख्यमंत्री किस तरह से राज्य के अन्दर इस बीमारी से लडने के लिए अपने अधिकारियों की हठधर्मिता के आगे बेबस बने हुये हैं? सवाल खडे हो रहे हैं कि तीन दिन पूर्व जब दिल्ली क्राईम ब्रांच ने हरिद्वार व रूडकी से नकली रेमडिसिवर बेचने वाले दो दवा माफियाओं को दबोचा था तो फिर उत्तराखण्ड पुलिस व खुफिया तंत्र का सारा सिस्टम कहां सो रहा था? यह भी सच है कि धर्मनगरी से दो दवा माफिया तो पकडे ही गये हैं तो फिर समूचा सिस्टम फेल नहीं था तो और क्या है?
ये कहावत ‘एक तो कोढ ऊपर से खाजÓ चरितार्थ हो रही है। ये पहली घटना नहीं है जब मुखिया की नाक के नीचे कुछ घटा हो और मुखिया को इसकी जानकारी तक न हो पाई हो? अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि राज्य में कभी भी किसी मुख्यमंत्री की कुर्सी डगममा सकती है लेकिन मुख्यमंत्री के सुरक्षा, गुप्तचर विभाग को भी कोई सटीक जानकारी नही होती है। आखिर ये भेदिया केवल नाममात्र के है? वर्तमान हालातों पर गौर किया जाय तो कोरोना महामारी से जहाँ जनता हताश और निराश है वही सूबे की सियासत में बहुत बडे उलट पलट की बू आती हुई नजर आ रही है। गुरुवार को ही सोशल मीडिया पर श्रीनगर से वायरल वाइस मैसेज प्रदेश में कैसे वायरल हो जाता है तथा उसी दिन कोटद्वार में नकली दवा फैक्टरी पकडी जाती है इस पर भी सूबे के मुखिया को दिमाग पर जोर डालना पडेगा? राज्य में बाहर की पुलिस कार्रवाई कर देती है तब जाकर राज्य की पुलिस जागती है? राज्य में स्पेशल टास्क फोर्स का काम भी केवल बुझे हुए कारतूसो पर ही लगा रहता है? सूबे के मुखिया को कुछ सख्त रूख इख्तिहार कर पूरी टीम को बदल देने मे मुखिया व राज्य का हित है। क्योंकि अभी तक मुखिया के सामने जो खाका उनके विभीषण रूपी सलाहकार दिखा रहे हैं सच्चाई उससे भी ज्यादा क्रुर है। दिल्ली क्राईम ब्रांच के सीपी का एक ट्वीट सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है जिसमें दावा किया गया है कि कोटद्वार में नकली दवाई की फ्रैक्ट्री में बनाये जा रहे नकली रेमडिसिवर इंजेक्शन बरामद किये गये हैं जिन्हें पच्चीस हजार रूपये प्रति इंजेक्शन बेचा जा रहा था और इनसे 196 रेमडिसिवर इंजेक्शन बरामद होने की बात सामने आ रही है तथा यह भी कहा जा रहा है कि दो हजार इंजेक्शन यह बेच चुके थे और उनके पास से तीन हजार इंजेक्शन के रेपर भी बरामद हुये हैं। इस ट्वीट को पीएमओ को भी किया गया है। वहीं आज क्राईम ब्रांच की एक टीम सुबह कोटद्वार उस दवाई फैक्ट्री में पहुंची जहां नकली इंजेक्शन बनाये जाने की बात की जा रही है? वहीं कोटद्वार की ए.एसपी मनीषा जोशी का दावा है कि दिल्ली क्राईम ब्रांच ने कोटद्वार में स्थित दवाई की फैक्ट्री से कोई नकली इंजेक्शन बरामद नहीं किये हैं। ऐसे में सवाल उठता हे कि पुलिस मुख्यालय के आला अफसर इस गिरफ्तारी पर अभी तक क्यों चुप्पी साधे हुये हैं और वह क्यों यह दावा नहीं कर रहे हैं कि जो ट्वीट दिल्ली पुलिस के सीपी का सामने आने की बाद की जा रही है वह सच नहीं है? ऐसे में यह शंका प्रबल हो रही है कि दिल्ली की क्राईम ब्रांच ने कोटद्वार में नकली दवाई की फैक्ट्री का जो भंाडाफोड किया है वह सच है?

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