ऑक्सीजन के लिये तड़पते मरीज

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एक एक सांस की कीमत वसूलते मेडिकल माफिया!
रेमडेसीवीर की काला बाजारी चरम पर!
सरकार की फाईलों में भरपूर वैंटीलेटर!
देहरादून(प्रमुख संवाददाता)। कोरोना संक्रमण की इस आपदा में मेडिकल माफियाओं ने अवसर तलाश लिया है एक एक सांस की कीमत वसूली जा रही है? सांसो को जारी रखने के लिए इंसान कर्ज में दब जाएगा ये दौर कुछ इन्ही बातों के लिये भी जाना जाएगा। ऐसे में सरकार के मुखिया की इस कोरोना काल में एक बडी अग्निपरीक्षा माना जा रहा है कि वह किस तरह से मेडिकल माफियाओं पर नकेल लगायेंगे और किस तरह से कुछ अस्पतालों द्वारा वैंटीलेटर बैड न होने का जो प्रपंच रचकर गरीब व मध्यम वर्ग के मरीजों को मौत के मुंह में धकेलने का खेल खेल रहे हैं वह तीरथ ंिसह रावत खुद आगे आकर बेनकाब कर दें?
कोरोना संक्रमण के मौजूदा हालात में अब बात सिर्फ वायरस तक ही सीमित नही रह गयी है बात और खेल अब सड़ चुके सरकारी सिस्टम से आगे निकल कर किसी बड़े षड्यंत्र की और इशारा कर रहे हैं? दरसल ये सवाल आम और खास दोनो के दिलो दिमाग में किस लिए घूम रहें हैं। पहले यही समझने की कोशिश करते हैं कोरोना संक्रमण की अब दूसरी लहर पहले से ज्यादा खतरनाक दिख रही हैं। संक्रमण से मौत का आंकड़ा भयावह हो चला है हर तरफ हाहाकार मचा है। सरकारी कारिन्दे दफ्तरों में बैठ कर दावा कर रहे हैं कि सब ठीक हैं। कोविड सेंटर बनाये गए हैं बैड की कमी नही हैं, वेंटीलेटर भरपूर हैं, दवाईयों की काला बाजारी पर लगाम लगायी गयी है, ये बाते सरकार और उनके वेतनभोगी कारिन्दों से सुनने में भले ही सुकून देती हो लेकिन हकीकत में हालात और तस्वीर इससे अलग और भयावह हो चली है? सरकार के मुखिया तीरथ सिंह रावत ने ऐलान किया है कि जिस मेडिकल शॉप पर काला बाजारी होती पाई गई उसकी दुकान का लाइसेंस निरस्त कर दिया जायेगा लेकिन हकीकत में क्या ऐसा हो पायेगा यह एक बडा सवाल है? ये बात इसलिए कही जा रही है क्योकि जो अस्पताल डॉक्टर पहली कोरोना लहर में बेहतर इलाज कर रहे थे अचानक से दूसरी लहर में अस्पताल और डॉक्टर अब लापरवाही करते दिख रहें हैं। कही बैड नही, कही अस्पताल नही, कही डॉक्टर नही, कही दवाईयां नही, कही ऑक्सीजन नही, इन सबके बीच पहले लोगों को उम्मीद थी आस थी कि जल्द भारत वैक्सीन बना लेगा बड़े बडे विज्ञापन में दावे किए जा रहे थे कि जब तक दवाई नही तब तक ढिलाई नही। इसी बीच वैक्सीन भी आ गयी लेकिन हुआ ये की वैक्सीन आयी तो जरूर पर रिजल्ट के शुरुवाती दौर में ज्यादा कारगार नही दिखी जिन लोगो ने वैक्सीन लगवाई वो भी संक्रमित होते दिखाई दिये लेकिन वैक्सीन से एक उम्मीद की किरण नजर आयी। समय बीतने के साथ अब वैक्सीन में प्रोडक्शन की कमी अचानक से बतायी जा रही हैं सरकारी वैक्सिनेशन कार्यक्रम ठप पड़ते जा रहें हैं? चर्चाएं उठ रही हैं कि जिन लोगों ने पहली डोज ली दूसरी पता नही उनको नसीब होगी या नही लचर सिस्टम के हालात देखकर तो यही आभास होता है?
संक्रमण की आपदा में मेडिकल माफियाओं ने ऐसा अवसर तलाश लिया कि लाशों पर बैठकर वो अपनी तिजोरियां भर रहे हैं और सरकार नाबीना अंधी हो गयी है? यही नही यहाँ से खेल मेडिकल माफियागिरी की हदंे तांडव मचा रही हैं? जो अस्पताल, डॉक्टर, ऑक्सीजन, दवाईयां और वेंटीलेटर, वैक्सीन कम दिख रही हैं जिनके लिये मरीज मारे मारे फिर रहें हैं  वो मेडिकल सुविधाएं शायद कम नही है दरअसल ये सब सुविधाए तो हैं लेकिन 10 गुना कीमत पर मिलने लगी हैं और मिल उनको रही है जिनके पास पैसा है जीवन रक्षक रेमडेसीवीर इंजेक्शन की काला बाजारी से अंदाजा लगा लजिये कि तीन हजार का इंजेक्शन तीस हजार में मिल रहा है वेंटिलेटर के लिये हॉस्पिटल में लोग मुँह मांगी कीमत देने को तैयार हैं मेडिकल माफिया यही तो चाहते थे जो अब हो रहा है अब एक एक सांस की कीमत वसूली जा रही है? ये भी समझना बेहद जरूरी है और आसान भी है कि पहले कोरोना संक्रमण जब आया तो सरकारी अस्पताल ईलाज में जुटे थे बेहतर ईलाज से लोग ठीक हो रहे थे कोई मारा मारी नही थी लेकिन जब से प्राइवेट लेब टेस्ट और अस्पतालों को  ईलाज की छूट मिली  पैसे वाले बड़े बड़े अस्पतालो में डॉक्टर की भारी फीस लेब टेस्ट कराकर मुहमांगी दौलत देकर अस्पतालो में भर्ती होकर ईलाज करा रहें हैं उनके लिये सब मुहय्या हैं उनको फर्क नही पड़ता कि रेमडेसिवर का इंजेक्शन 3 हजार का है या 30 हजार का है लेकिन आम आदमी छोटे मंझोले अस्पतालो में लुटता पीटता या  सरकारी अस्पतालो में मरीज को लेकर हांफता फिर रहा है? पॉकेट के हिसाब से उसको ईलाज मिल रहा है वो भी बेहताशा महंगा… पैसा है तो बैड डाक्टर अस्पताल वैक्सीन ईलाज सब है, पैसा नही तो धक्के खाता अस्पताल के बाहर तड़पता मरता मौत का सरकारी आंकड़ा बढा रहा है? उसी मिडिल लाचार गरीब कोरोना से मौत वाली तसवीरें  कैमरों में कैद होकर सबको डरा रही हैं और ये डर मेडिकल माफियाओं के लिए आपदा में अवसर ही तो है? ताकि किसी भी हद तक संक्रमित लोग खुद को बचाने के लिये कोई भी कीमत इन मेडिकल माफियाओं को देने के लिये मजबूर हो जाये? कभी कभी लाचार लोग उम्मीद में समाजसेवी लोगों पत्रकारों को फोन करते हैं कि डॉक्टर सही से ईलाज नही कर रहे या बिल कम करा दीजिए या उसके पिता या माँ या बच्चा भर्ती हुए तो काफी सही थे लेकिन सुबह बताया गया कि वो कोरोना से मर गए गुजर गए कम से कम उनकी बॉडी ही दिला दीजिये इस तरह के फोन कई  समाजसेवी पर अक्सर आते होंगे लेकिन सब मजबूर हैं उन सबकी मदद नही की जा सकती क्योंकि  सरकारी सिस्टम सड़ चुका बहरा हो चुका है? सरकार से हर उस छोटे इंसान को एक आशा बंधी हुई है जिसके पास आठ सौ रूपये का इजैक्शन तीस हजार रूपये में खरीदने की शक्ति नहीं है। ऐसे में सरकार को अपनी सारी मशीनरी को सिर्फ कोरोना के मरीजों को वैलटीनेटर बैड, आक्सीजन व अस्पताल उपलब्ध कराने के लिए झोंकना चाहिए जिससे कि राज्य में डरा रहे मौत के आंकडों पर अंकुश लगाया जा सके? सरकार को अगर कोरोना पर लगाम लगानी है तो उसे घर-घर जाकर युद्ध स्तर पर आयु सीमा की परिधि में आने वाले हर उस व्यक्ति को वैक्सीन लगानी चाहिए जिन्हें यह वैक्सीन लगाने के लिए सरकार ने उनकी आयु सीमा तय कर रखी है।

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