कठिन है डगर पनघट की दागी अफसरों का मोह त्यागो सरकार?

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भ्रष्ट अधिकारियों पर कब लगेगी नकेल!
प्रमुख संवाददाता
देहरादून। उत्तराखण्ड में त्रिवेन्द्र सरकार के राज में भ्रष्टाचार व घोटालों की काली छाया ने राज्यवासियों के मन में प्रचंड बहुमत वाली सरकार को लेकर हमेशा एक बडी नाराजगी पाली और उनके मन में इतना आक्रोश था कि राज्य में लोकतंत्र की हत्या कर जिस तरह से राजशाही अंदाज में सरकार चल रही है उसका परिणाम भाजपा को 2०22 में भुगतना पडेगा? भाजपा हाईकमान ने राज्य में राजशाही अंदाज में सत्ता चलाने वाले पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत को गद्दी से हटाकर ईमानदार छवि के नेता तीरथ सिंह रावत को उत्तराखण्ड का मुख्यमंत्री बना दिया तो राज्यवासियों के मन में एक आशा की किरण जागी थी कि पूर्व मुख्यमंत्री के राज में जिन भ्रष्ट व दागी अफसरों ने भ्रष्टाचार का खुला तांडव कर रखा था उस पर नकेल लगाने के लिए नये मुख्यमंत्री तेजी के साथ हंटर चलायेंगे लेकिन काफी समय बीत जाने के बाद भी भ्रष्ट व दागी अफसरों की अभी भी बल्ले-बल्ले हो रखी है? बहस छिड रही है कि आखिर मुख्यमंत्री कब भ्रष्ट अधिकारियों पर नकेल लगायेंगे जिन्होंने त्रिवेन्द्र राज में राजशाही को पैमाना बनाकर राज्यवासियों को अपनी कुर्सी की ताकत दिखाने का खुला तांडव किया था। चर्चाएं शुरू होने लगी हैं कि मुख्यमंत्री कब दागी अफसरों का मोह छोडकर उन्हें महत्वपूर्ण पदों से हटाने का फरमान जारी करेंगे जिससे राज्य के अन्दर एक साफ संदेश जाये कि अगर राज्य में मुख्यमंत्री का चेहरा बदला है तो उसके साथ दागी सिस्टम को भी महत्वपूर्ण पदों से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया है?
तीन चार सालों मे अब बदला,तब बदला के बाद राज्य में नेतृत्व परिवर्तन तो हुआ फिर भी हालात नहीं बदले। भाजपा हाईकमान द्वारा प्रचंड जनादेश वाली सरकार की कमान त्रिवेंद्र सिंह रावत से वापस लेकर तीरथ सिंह रावत को सौंपने के बाद राज्य के हालात और भी बदतर हो चले हैं। राज्य का सिस्टम तो गर्त में है ही, सियासी ध्रुवों की सियासत के चलते राज्य में भाजपा की सियासी डगर भी कठिन होती जा रही है। उधर अचानक त्रिवेंद्र से राज्य की कमान हटाकर तीरथ को मिली तो त्रिवेंद्र को लेकर सहानुभूति का माहौल बनने लगा। ‘तीरथ से तो त्रिवेंद्र ही भलेÓ के सर्वे भी निकलने लगे लेकिन त्रिवेंद्र के लिए सहानुभूति उस वक्त खत्म होने लगी जब उनके करीबियों के कारनामे के खुलासे होने लगे। उनके सलाहकारों और करीबियों ने चार साल में किस तरह करोड़ों के वारे-न्यारे किए हैं, जिसके चलते ‘जीरो भ्रष्टाचार का नारा देने वाले त्रिवेंद्र खुद ही जाल में फंस गये।
प्रदेश में त्रिवेंद्र सिंह रावत की फोटो के साथ ‘बातें कम और काम ज्यादाÓ के बैनरो,होल्डिंगस् भी उखड चुके हैं। उनकी जगह अब तीरथ की फोटो के साथ ‘सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वासÓ नारे वाले ने ले ली है। राज्य में बदले नारों और बदले हुए प्रचार सामग्री ना सियासी बदलाव की पूरी कहानी अपने आप ही व्यक्त कर रही है। त्रिवेंद्र सरकार में एक जुमला खूब उछलाष्बातें कम काम ज्यादाष् ये जग जाहिर है कि पूर्व मुख्यमंत्री ने काम कम व बाते तो बंद ही कर दी थी। बेशक भाजपा शीर्ष नेतृत्व ने त्रिवेंद्र से सत्ता लेकर तीरथ को दे दी है,लेकिन अपने को जनता के बीच कैसे स्थापित करेंगे यह बहुत बडी चुनौती है। जिस प्रकार से पूर्व मुख्यमंत्री ने अपने पार्टी कार्यकर्ताओं की उपेक्षा की उससे नाराज चल रहे क्षत्रपो को अपने साथ लेकर चलना तीरथ सरकार के लिए टेढी खीर ही साबित होगा। दूरस्थ क्षेत्रों में दबी जुबान से पार्टी कार्यकर्ताओं ने कहना शुरू कर दिया है कि इस बार तो स्वयं ही विधायक व अन्य जिला पदाधिकारी ही जनता से वोट मांगेंगे,इसका अंदाजा यही है कि किस कदर कार्यकर्ताओं की उपेक्षा की गयी। मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत को पूर्व मुख्यमंत्री के चाटुकार सलाहकारों से मोह त्यागना पडेगा साथ ही साथ मोटी चमडी के उन भ्रष्ट अधिकारियों को भी पैदल करना होगा जो पूर्व में भी मलाईदार पदों पर आसीन थे। तभी एक विश्वास का सन्देश जनता के बीच जायेंगा।

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