अरबो रुपयो की पावर परियोजनाओ से ‘खिलवाड़’

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डाकपत्थर विद्युत परियोजना पुल पर भारी वाहनों की आवाजाही के चलते ढहने की कगार पर
राज्य को हो सकती है करोड़ो रुपए के राजस्व की हानि
खनन व्यवसाइयों के आगे नतमस्तक पुलिस प्रशासन!
प्रमुख संवाददाता
विकासनगर। डाकपत्थर जल विद्युत परियोजना पावर कैनाल के ऊपर बने पुलों की सुरक्षा व्यवस्था राम भरोसे चल रही है है,डाकपत्थर बैराज का पुल कभी भी अपनी जीर्ण अवस्था के चलते ढह सकता है।जिससे प्रदेश को भारी राजस्व का नुकसान उठाना पड़ सकता है साथ ही प्रदेश व अन्य राज्यो की विध्यूत आपूर्ति भी लंबे समय तक बाधित हो सकती है साथ ही भारी जानमाल का नुकसान भी उठाना पड़ सकता है बावजूद इसके संबंधित विभाग मूकदर्शक बने तमाशा देख रहें है
डाकपत्थर बैराज का यह पुल लगभग 1950 के दशक में बना था जिसकी सुरक्षा व्यवस्था यूजेवीवीएनएल की है पुल के ऊपर से भारी वाहन ना गुजरे इसके लिए निगम ने बाकायदा एक बोर्ड लगाया हुआ है जिसमें लिखा है कि भारी वाहनों का प्रवेश वर्जित है निगम ने महज एक बोर्ड लगाकर अपनी जिम्मेदारी पूर्ण कर ली है अब चाहे पुल के ऊपर से कितने भी भारी वाहनों की श्रृंखला गुजर जाए अब इस पुल की किसी प्रकार की सुरक्षा व्यवस्था से कोई सरोकार निगम का नहीं रह गया। आपको बता दें कि इस पुल से लगातार खनन से भरे 10 टायरा और 12 टायरा जैसे भारी भरकम वाहन पूरा दिन और पूरी रात गुजरते रहते हैं इससे निगम को कोई फर्क नहीं पड़ता जबकि जल विद्युत परियोजना क्षेत्र के चलते इस प्रतिबंधित क्षेत्र में बना यह पुल अपने 70 दशक पूरे करने के बाद अपनी जीर्ण अवस्था में पहुंच चुका है।कई वर्ष पूर्व रुड़की से आई विशेषज्ञों की टीम ने इस पुल के ऊपर से किसी भी प्रकार के भारी वाहन के गुजरने पर पूर्णतया रोक लगाने को कहा था विशेषज्ञों ने चेतावनी भी दी थी कि यदि जल्द भारी वाहनों की आवाजाही पर रोक ना लगी तो यह पुल कभी भी ढह सकता है बावजूद इसके भारी वाहनों की आवाजाही पुल के ऊपर से बदस्तूर जारी है। यदि यह पुल ढह जाता है तो जल विद्युत परियोजना बाधित हो सकती है इससे विद्युत संकट तो उत्पन्न हो ही जाएगा साथ ही सरकार को भी रोजाना विद्युत उत्पादन से होने वाली लाखों करोड़ों रुपए की हानि का भी सामना करना पड़ेगा और साथ ही जल विद्युत परियोजना ढकरानी 33 मेगावाट और ढालीपुर 51 मेगा वाट ओर ढकरानी विध्यूत परियोजना भी बाधित हो जाएगी लेकिन इस बात से निगम को कोई फर्क नहीं पड़ता।
वही जब इस पुल की सुरक्षा व्यवस्था के बारे में यू जे वी एन एल के जी एम विपिन सिंघल से फोन पर बात की गई तो उनके द्वारा बताया गया कि हमने भारी वाहनों के प्रवेश को वर्जित कर एक बोर्ड लगाया हुआ है हम वाहनों को पुल के ऊपर आने जाने से रोक नहीं सकते इसमें आप लोग पुलिस प्रशासन और एसडीएम विकासनगर से बात करें यह कहकर उन्होंने फोन काट दिया यहां जीएम साहब अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ते हुए सीधे-सीधे पुलिस प्रशासन और एसडीएम पर ही सवाल खड़े कर गए और फिर कई बार फोन कॉल करने पर भी उनके द्वारा हमारा फोन नहीं उठाया गया। वही जब यू जे वी एन एल के जनसंपर्क अधिकारी विमल डबराल से फोन पर बात की गई तो उनके द्वारा भी यह कहकर गेंद पुलिस प्रशासन के पाले में डाल दी कि निगम ने कई बार भारी वाहनों की आवाजाही पर रोक लगाने के संबंध में पुलिस प्रशासन से पत्राचार किया जा चुका है लेकिन पुलिस प्रशासन के द्वारा कोई कार्यवाही अमल में नहीं लाई जाती उन्होंने कहा कि पूर्व में भी निगम ने एक बैरियर लगाया था जिसको पहली ही रात में खनन माफियाओं ने जेसीबी की मदद से तोड़ दिया था उन्होंने कहा कि निगम के अधिकार सीमित होने के कारण भारी वाहनों की आवाजाही पर रोक लगाना असंभव है। अब कौन बताएगा की पुल की सुरक्षा व्यवस्था की जिम्मेदारी आखिर किसकी है? यूजेवीएनएल की है या पुलिस प्रशासन की है? यहां सवाल यह खड़ा होता है कि जब निगम के द्वारा पुल के ऊपर से भारी वाहनों की आवाजाही पर रोक लगाने के लिए पुलिस प्रशासन से मदद मांगी गई तो स्थानीय पुलिस प्रशासन पुलों की सुरक्षा व्यवस्था सुनिश्चित करने में निगम को अपना सहयोग प्रदान करता है।
बताया यह भी जा रहा है क्षेत्र के कुछ गांवो के खनन व्यवसाइयों का सत्ताधारी दल के चंद नेताओ से अच्छा रिश्ता है ओर इन गांवो के लोग विधानसभा चुनाव में किसी भी प्रत्याशी की हार जीत में अहम भूमिका निभाते है जैसे ही इन खनन व्यवसाइयों पर कोई भी कार्यवाही करते है तो सत्ता पक्ष ओर विपक्ष के नेता इनके समर्थन में खड़े हो जाते हैं जिससे प्रशासन को अपनी कार्यवाही भी स्थगित करनी पड़ती है? कह सकते है कि राजनैतिक पार्टियो के चंद नेताओ ने अपनी राजनैतिक रोटियां सेकने के लिए प्रदेश की अतिमहत्त्वपूर्ण परियोजनाओ की बलि चढ़ाने का मन बनाया हुआ है कह सकते है कि यह पूरा खेल राजनैतिक पार्टियो के चंद नेताओ के संरक्षण में चल रहा है जिस वजह से संबंधित विभाग मूकदर्शक बने रहते हैं?

 

तो क्या परियोजना पर मंडरा रहे खतरे पर सीएम की जायेंगी नजरें!
उत्तराखण्ड की अस्थाई राजधानी में स्थित चंद पॉवर परियोजनाओं को लेकर जिस तरह से एक बडा खिलवाड किया जा रहा है और शासन से लेकर सारा सरकारी तंत्र चुप्पी साधे बैठा है वह राज्य के लिए शुभ संकेत नहीं है इसलिए अब सबकी नजरें राज्य के नये सीएम पर जा टिकी हैं कि वह परियोजनाओं पर मंडरा रहे खतरे को लेकर सख्त रूख अपनाने के लिए आगे आयेंगे? सवाल यह भी उठ रहा है कि जब डाकपत्थर बैराज पर भारी वाहनों के प्रवेश पर प्रतिबंध लगा हुआ है तो फिर कैसे इस बैराज के पुल से खनन के ट्रक रात-दिन तेजी के साथ दौड रहे हैं। बहस छिड रही है कि क्या इस परियोजना पर मंडरा रहे खतरे को लेकर कभी भी खुफिया एजेंसी ने सरकार को यह आगह नहीं किया कि अगर इस कमजोर हो चुके पुल से इसी तरह से बडे वाहन आते-जाते रहे तो वह कभी भी एक बडा खतरा पैदा कर सकते हैं? अब राज्य के नये सीएम तीरथ सिंह रावत को पछवादून में चल रही विद्युत परियोजनाओ को लेकर गहन मंथन करना चाहिए और इस बात की भी समीक्षा करनी चाहिए कि आखिरकार किसके आदेश पर कमजोर पुल से आये दिन खनन के सैकडों ट्रक आये दिन दौड लगा रहे हैं जिससे कभी भी इस विद्युत परियोजना को बडा खतरा पैदा हो सकता है?

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