दांव पर हरदा की राजनीति!

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प्रमुख संवाददाता
देहरादून। उत्तराखण्ड की राजनीति मे हरदा को कद्दावर राजनेता के रूप मे जाना जाता है और उन्होने केन्द्र से लेकर उत्तराखण्ड मे राजनीति की है। हरीश रावत को उत्तराखण्ड मे हमेशा कांग्रेस हाईकमान ने बडी जिम्मेदारी से नवाजा है और यही कारण है कि हरीश रावत हमेशा कांग्रेस हाईकमान के काफी करीबी माने जाते हैं इसी के चलते उन्हें उत्तराखण्ड का मुख्यमंत्री भी बनाया गया था लेकिन उन्होंने राजनीति मे हमेशा अपने को आगे रखकर जो राजनीतिक गोटियां फिट की उससे कांग्रेस के काफी नेताओं के साथ अंदरूनी रूप से उनका छत्तीस का आंकडा देखने को मिलता आ रहा है? हरीश रावत से उनके ही कुछ साथियों ने 2०16 मे सरकार का तख्ता पलट करने का जो मिशन चलाया था उसी मिशन के एक पार्ट मे वह अपने साथियों को वापस लाने के फेर मे स्टिंग के मकडजाल मे ऐसे फंसे थे कि उससे उनकी राजनीति पर एक बडा ग्रहण लग गया था? हरदा ने कांग्रेस के कुछ दिग्गज नेताओं से जिस तरह हमेशा अपनी दूरी रखी उसके चलते कांग्रेस के सभी छत्रप एक साथ खडे होने को कभी तैयार ही नहीं हुये और कांग्रेस का कुनबा जिस तरह से बिखरता चला गया वह कांग्रेसी कार्यकर्ताओं को एक दुखद अनुभव का आभास करा रहा है? लोकसभा चुनाव मे कांग्रेस के दिग्गज नेता चाहते थे कि हरीश रावत हरिद्वार लोकसभा सीट पर खुद चुनाव लडे लेकिन उन्होंने पुत्र मोह मे अपने आपको चुनाव से दूर रखकर अपने बेटे को चुनावी रणभूमि मे उतार तो दिया लेकिन वह इस चुनावी रणभूमि मे अपने बेटे के सारथी बनकर उसे विजय का सेहरा नहीं पहना पाये तो उससे हरदा की राजनीति पर हमेशा के लिए ग्रहण लग जायेगा और इस चुनाव हरदा की राजनीति दांव पर लगी हुई नजर आ रही है?
उत्तराखण्ड का जन्म होने के बाद से ही राज्य की राजनीति मे हरीश रावत हमेशा एक कुशल राजनेता के रूप मे आवाम के बीच अपनी पहचान बनाने मे कामयाब हो गये थे और उन्होंने कांग्रेस के अन्दर जिस तरह से अपना वर्चस्व कायम करने के लिए कांग्रेस के काफी बडे-बडे राजनेताओं को हमेशा अपने पाले मे संभालकर रखा उसके चलते कांग्रेस के अन्दर हमेशा गुटबाजी का दौर अंदारखाने देखने को मिलता रहा है? हरीश रावत को जब कांग्रेस हाईकमान ने उत्तराखण्ड का मुख्यमंत्री बनाया था तो ऐसी उम्मीद थी कि वह पार्टी के सभी बडे राजनेताओं को एक साथ लेकर चलेंगे लेकिन धरातल पर ऐसा देखने को नहीं मिला था और उनके शासनकाल मे एक-दो राजनेता ही हरीश रावत के सबसे करीबी माने जाते थे? हरीश रावत की सत्ता चलाने की स्टाइल ने उनके ही दल के काफी नेताओं को हमेशा नजर अंदाज किया और उसी के चलते 2०16 मे हरीश रावत सरकार का तख्ता पलटने के लिए उनके ही कुछ विधायकों ने बगावत का झण्डा उठा लिया था। इस बगावत को शांत करने के लिए जब हरीश रावत ने अपने विधायको को वापस लाने के लिए एक गोपनीय बैठक की तो उस बैठक में विधायकों को वापस लाने के लिए जो बातचीत का दौर हुआ वह बातचीत स्टिंग के चक्रव्यूह मे फंस गई और उसके चलते हरीश रावत इस स्टिंग के मकडजाल मे फंसकर कहीं न कहीं अपनी राजनीति पर एक बडा ग्रहण लगा गये थे? अब हरीश रावत ने हरिद्वार लोकसभा सीट से अपने बेटे वीरेंद्र रावत को चुनाव मैदान मे उतारा है। बेटे के लिए हरीश रावत उसके सारथी बने हुये हैं लेकिन वह हरिद्वार की दिलचस्प हो चुकी चुनावी रणभूमि मे अपने बेटे को जीत का सेहरा पहना पायेंगे या नहीं यह तो चार जून को पता चल जायेगा लेकिन यह चुनाव उनकी राजनीति को दांव पर लगा हुआ दिख रहा है?

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