नीलकंठ धामी!

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सीएम की मजबूत टीम ही दिलायेगी लोकसभा चुनाव में पांच शून्य का स्कोर
प्रमुख संवाददाता
देहरादून। उत्तराखण्ड में वर्ष 2007 में राज्य के अन्दर एक ही उद्घोष चल रहा था कि ‘भुवन चंद खण्डूरी हैं जरूरी’ उस दौर में राज्य की जनता के मन में यह विश्वास दिखाई दे रहा था कि खण्डूरी के नेतृत्व में भाजपा लोकसभा की पांचो सीट जीत जायेगी लेकिन भाजपा के ही कुछ दिग्गज नेताओं की आंखों मंे खटकने वाले भुवन चंद खण्डूरी के साथ उन्होंने ऐसा भीतरघात किया था कि राज्य में भाजपा पांचो लोकसभा सीटें हार गई थी। इसके बाद खण्डूरी को हटाने के लिए अपनो ने बगावत की और उसके बाद उन्हें मुख्यमंत्री पद से हटवा दिया गया था जो किसी से छिपा नहीं है? वहीं उत्तराखण्ड में धाकड अंदाज में सत्ता चला रहे पुष्कर सिंह धामी के साथ उनके ही कुछ अपनों ने खटीमा और बागेश्वर के उपचुनाव में पर्दे के पीछे से भीतरघात का जो जहर उगला उसे पुष्कर सिंह धामी ने अपने कंठ में समा लिया और उन्हें राज्य में कहीं न कहीं अब अपनों से ही लोकसभा चुनाव में खतरा जरूर बन सकता है क्योंकि मौजूदा दौर में नीलकंठ धामी को विपक्ष से नहीं बल्कि अपनों से ही राजनीतिक युद्ध लडने का अभ्यास करना पडेगा? राजनीतिक पंडितों का मानना है कि लोकसभा में पांच शून्य का स्कोर करने के लिए मुख्यमंत्री को अपनी एक मजबूत टीम तैयार करनी होगी जो सभी जनपदों में डबल इंजन के विकास का आईना और आवाम को दिखायें और उन राजनेताओं पर भी अपनी पैनी निगाह बनाकर रखे जिनके मन में हमेशा मुख्यमंत्री बनने की लालसा देखने को मिलती रही है?
आगामी लोकसभा चुनाव को देखते हुए सीएम धामी उत्तराखण्ड की पांचो लोकसभा सीटें जीतकर देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को गिफ्ट के रूप में देने के लिए अपने बडे एजेडें के साथ आगे बढने लगे हैं। अब राजनीतिक पंडितों का मानना है कि युवा चेहरे पुष्कर ंिसंह धामी को विपक्ष से नहीं बल्कि पार्टी के ही कुछ अपनों से सावधान रहने की जरूरत है क्योंकि उनके बढते कदम भाजपा के कुछ नेताओं को रास नहीं आ रहे हैं? यह बात भी अब उठने लगी है कि अगर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को लोकसभा में पांच शून्य का स्कोर करना है तो उन्हें अपनी एक विशेष टीम मजबूती के साथ मैदान में उतारनी होगी और अपने चुनिंदा अफसरों को राज्य में शुरू होने वाली विकास योजनाओं को तेजी के साथ आगे बढाना होगा जिससे राज्यवासियों के मन में डबल इंजन सरकार को लेकर एक बडा विश्वास बना रहे और वह पुष्कर सिंह धामी को गिफ्ट के रूप में पांचो लोकसभा सीट का तोहफा देने के लिए आगे खडी हुई नजर आये?
गौरतलब है कि उत्तराखण्ड के अन्दर जब भी भाजपा की सरकारें सत्ता में रही तो आधा दर्जन से अधिक ऐसे राजनेता देखने को मिलते रहे जिनमें राज्य का मुख्यमंत्री बनने की हमेशा लालसा बनी रहती थी और इसी लालसा को सच साबित करने के लिए पार्टी के ही कुछ नेता अपने ही पूर्व मुख्यमंत्रियों के खिलाफ बगावत करने की जो चौसर बिछाकर रखते थे उसी के चलते पार्टी के अन्दर साजिशों का बडा खेल होता था और उससे सरकार के मुखिया के सामने भी अपना राजपाठ बचाने की एक बडी चुनौती आ खडी होती थी? उत्तराखण्ड में सत्ता संभाल रहे युवा चेहरे पुष्कर सिंह धामी जो कि सरकार और संगठन को एक ही नाव में सवार करके आगे बढ रहे हैं वह भाजपा के ही कुछ राजनेताओं को रास नहीं आ रहा है और उनके मन में एक बडी हलचल मची हुई है कि आखिरकार जिस तरह से मुख्यमंत्री पुष्कर ंिसह धामी ने अपनी पारदर्शी सत्ता चलाने की शैली से देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उनकी किचन टीम को मंत्रमुग्ध कर रखा है उसके चलते पुष्कर सिंह धामी और पॉवरफुल हो रहे हैं। पुष्कर सिंह धामी के खिलाफ बगावत करने का किसी में कोई साहस इसलिए भी नहीं दिख रहा क्योंकि वह उत्तराखण्ड को आदर्श राज्य बनाने के लिए देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के मंत्र को धारण कर आगे बढ रहे हैं। मुख्यमंत्री पुष्कर ंिसह धामी देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के सखा और लाडले हैं इसलिए भाजपा के वो नेता जो हमेशा मुख्यमंत्री बनने का ख्वाब देखते हैं वह खामोश हैं। हालांकि खटीमा चुनाव में पुष्कर सिंह धामी के साथ भीतरघात कर उन्हें हरवाने की जो साजिश एक सोची समझी रणनीति के तहत की गई थी उसी का परिणाम था कि पुष्कर सिंह धामी वहां से चुनाव हारे लेकिन भाजपा हाईकमान को इस बात का इल्म हो चुका था कि जिस पुष्कर ंिसह धामी ने राज्य में मात्र छह माह के भीतर भाजपा को सत्ता में प्रचंड बहुमत के साथ लाकर खडा किया है उन्हें भीतरघात करके हरवाया गया है। पुष्कर सिंह धामी की हार का दृश्य भी पूर्व मुख्यमंत्री भुवन चंद खण्डूरी की शैली की तरह ही नजर आया था क्योंकि भुवन चंद खण्डूरी ने भाजपा को जीत के बहुत करीब लाकर खडा कर दिया था लेकिन भीतरघातियों ने उन्हें चुनाव हरवा दिया था? अब बागेश्वर में हुये उपचुनाव में भी पुष्कर ंिसह धामी के साथ भीतरघात का प्रपंच रचा गया लेकिन वहां की जनता ने पुष्कर सिंह धामी की सादगी और पारदर्शी नीति को देखते हुए उनकी झोली में बागेश्वर की जीत तोहफे के रूप में डाल दी थी। अब यह सवाल उठ रहा है कि आखिरकार धामी कब तक भीतरघात का जहर पीते रहेंगे और आवाम भी अब उन्हें नीलकंठ धामी कहने से नहीं चूक रही है जो अपनों का जहर अपने कंठ में लेकर उत्तराखण्ड को आदर्श राज्य बनाने की दिशा में आगे बढ रहे हैं?

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