भू-कानून बनाये जाने पर किशोर ने दिया जोर

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देहरादून(संवाददाता)। वनाधिकार आन्दोलन के प्रणेता व संस्थापक किशोर उपाध्याय ने कहा है कि वर्तमान संसद सत्र में केंद्र सरकार व संसद का ध्यान वनों पर पुश्तैनी अधिकार देने व भू-कानून बनाने के लिये ध्यानाकर्षण धरने का देश व्यापी असर हुआ है।
कोरोना की दूसरी लहर में संसद पर इस तरह के कार्यक्रमों के प्रतिबन्धों के बावजूद उत्तराखंड के सामाजिक संगठनों ने जन्तर-मंतर पर उपवास रखा और उसका असर यह हुआ कि अब सरकार को वहाँ पर अन्य को भी धरने-प्रदर्शन की अनुमति देनी पड़ी। पूर्व विधायक उपाध्याय ने आशा व्यक्त की कि राज्य सरकारें और केंद्र सरकार वनों पर आश्रित समुदायों के साथ न्याय करेंगी। उपाध्याय ने कहा कि उत्तराखंड का लगभग 93: भाग पहाड़ी है और लगभग 7: तराई व मैदानी है।लगभग 72: भूमि पर वन विभाग का कघ्ब्जा है। उन्होंने कहा कि लगातार प्रदेश की कृषि भूमि घट रही है। अब उत्तराखंडियों के सामने कुछ समय के उपरान्त नयी चुनौती आने वाली है। लोक सभा और विधान सभाओं का परिसीमन होना है।पहाड़ी राज्य के अवधारणा भविष्य में समाप्ति की ओर लगती है। इसलिये इस समय जब विधान सभा के चुनाव सन्निकट हैं राजनैतिक दलों पर वनाधिकारों, भू-कघनूनों और परिसीमन के मुद्दों पर दबाब बनाने की जरूरत है। भू-कानून की बात समग्रता से होनी चाहिये, मात्र 9 प्रतिशत भूमि की नहीं। आभासी भूल-भुलैय्या में पिछले 21साल बीत गये हैं, अब और समय बर्बाद नहीं किया जा सकता। वनाधिकार आन्दोलन शीघ्र ही वनाधिकारों, भू-कानूनों और परिसीमन के ज्वलन्त मुद्दों पर सघन अभियान की रूप-रेखा बना रहा है। कल अमर शहीद श्रीदेव सुमन जी की पुण्यतिथि पर इस अभियान पर सुमन जी की पवित्र जन्मभूमि “जौल” गाँव में विचार-विमर्श के उपरान्त 25 जुलाई को आगे की रूप-रेखा का निर्धारण किया जायेगा।

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