सरकारों का बजता रहा गपोड शंख!

0
86

=दर्जनों भ्रष्ट नेता-अफसरों पर कौन करेगा कार्यवाही? =प्रदेश में बंद हो भ्रष्टाचार मिटाने का ‘भौंपूÓ

मुख्य संवाददाता
देहरादून। उत्तराखण्ड का जन्म हुये बीस साल हो गये और इतने वर्षों में राज्य के अन्दर सत्ता संभालने वाली सरकारें राज्यवासियों को मुंगेरी लाल के हसीन सपने दिखाकर गपोड शंख बजाती रही कि राज्य भ्रष्टाचार मुक्त होगा और जो भी राजनेता व अफसर प्रदेश के अन्दर भ्रष्टाचार व घोटाले करने के लिए आगे आयेगा उसे इसका खामियाजा भुगतना पडेगा। सरकारों के इस गपोड़ शंख की तेज आवाज राज्यवासियों के कानों में ऐसे गूंजती रही मानो अब उन्हें स्वच्छ प्रशासन देने वाली सरकार का रूप देखने को मिलेगा लेकिन हर पांच साल बाद होने वाले चुनाव में जीत का स्वाद चखने वाली सरकार अपने वायदे से मुकर जाती है और यही कारण है कि 21वें वर्ष में प्रवेश करने वाले उत्तराखण्ड के अन्दर आज भी भ्रष्टाचार व घोटालों की काली छाया राज्यवासियों का पीछा नहीं छोड रही है? हैरानी वाली बात है कि चार साल पहले प्रचंड बहुमत की सरकार संभालने वाली भाजपा के पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने राज्य में भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस के तहत सत्ता चलाने का राज्यवासियों को खुली आंखों से सपना दिखाया और उनके कार्यकाल में खुद उन पर ही भ्रष्टाचार का इतना बडा दाग लगा कि उसकी गूंज देश के सर्वोच्च न्यायालय में गूंज गई और उन्हें आखिर में पद से हटना पडा लेकिन तीरथ रावत राज में भी भ्रष्टाचारी अफसर व राजनेताओं के काले कारनामों पर प्रहार करने के लिए कोई पहल हुई हो ऐसा तो अब तक देखने को नहीं मिला है। अब भले ही सत्ता की कमान तीरथ सिंह के हाथों में हो लेकिन राज्यवासी अब मुंगेरी लाल के हसीन सपने देखने से परहेज कर रहे हैं और उनका मानना है कि जब भ्रष्ट अफसरों व राजनेताओं पर शिकंजा कसा ही नहीं जाना तो फिर सरकार को भ्रष्टाचार मुक्त उत्तराखण्ड देने का भौंपू बंद कर देना चाहिए?
उल्लेखनीय है कि उत्तराखण्ड पूर्णत: पहाड़ी राज्य है, राज्य की परिकल्पना मातृशक्ति ने इसी लिए की थी कि अपने पहाडों की सरकार होगी,राज्य की राजधानी पहाडों पर होगी, संसाधनों का विकास होगा, स्कूल में शिक्षक होगे,डाक्टर साहब भी पगडंडियाँ नापेगे लेकिन ये भी मुंगेरी लाल के सपने की तरह ही निकले। प्रौढ़ हो चुके राज्य में शिक्षा का हाल पूर्व की भांति चल रहा है, शिक्षकों का ध्यान अध्यापन में कम व जीवन बीमा पॉलिसी की बिक्री पर अधिक है तो वही भगवान के दर्जे से सम्मानित डाक्टर ने पहाडों को केवल नियुक्ति तिथि पर ही देखा,तनख्वाह पहाडों से व सेवा अपने निजी क्लीनिको पर जब देश कोरोना नामक दैत्य के हाथों में तडप रहा है। चारों ओर कोहराम मचा हुआ है, न दवा मिल पा रही है और न ही प्राण वायु तो इससे विकट स्थिति क्या हो सकती है इसकी कल्पना शायद किसी ने की हो। इस महामारी ने राज्य सरकार की लचर स्वास्थ्य सेवाओं की पोल खोल दी है, तमाम दावों के बावजूद भी दूरस्थ गाँवों में पैरासिटामोल की एक गोली तक नही पहुँचा सकी है तो अन्य जीवन यापन की आवश्यक सामग्री पहुँची होगी यह तय अपने आप ही कर ले। राज्य की राजधानी दून से एक स्वयं सेवी संस्था द्वारा पवन मार्ग से अपने खर्चे पर चार जिलों में दवा व आवश्यक रसद पहुँचा कर सरकार के कोरे दावों को पटकनी देकर जनता की बंद आँखों को अवश्य ही खोल दिया है। पहाडों में गाँव जीवित रहेंगे तो शहर जीवित रहेंगे। सवाल खडे हो रहे हैं कि उत्तराखण्ड बनने के बाद कभी किसी सरकार ने दावा किया कि प्रदेश को स्वीजरलैण्ड की तर्ज पर विकसित करेंगे तो कभी किसी सरकार ने दम भरा कि उत्तराखण्ड को ऊर्जा प्रदेश बनाया जायेगा तो किसी सरकार ने शिगुफा छोडा कि आयुष प्रदेश बनाया जायेगा वहीं भुवन चन्द्र खण्डूरी ने अपने शासनकाल में उत्तराखण्ड को भ्रष्टाचार मुक्त बनाने का सपना राज्यवासियों को दिखाया और लोकायुक्त बनाकर भ्रष्ट अफसरों व राजनेताओं पर प्रहार करने के साथ बेनामी सम्पत्तियों को सरकार में निहित करने की हुंकार लगाई लेकिन यह सभी दावे मुंगेरी लाल के हसीन सपने की तरह ही नजर आये? उत्तराखण्ड में डबल इंजन की सरकार ने राज्य को भ्रष्टाचार मुक्त बनाने का भौंपू बजाया लेकिन इस भौंपू में भ्रष्टाचार के इतने छेद दिखाई दिये कि उसकी गंूंज देश की अदालतों तक सुनाई दी। अब तीरथ सिंह रावत त्रिवेन्द्र सरकार के चार साल के भ्रष्ट तंत्र का खामियाजा कोरोना काल में भुगतते हुये नजर आ रहे हैं? कोरोना काल की दूसरी लहर में जिस तरह से हजारों राज्यवासियों को मौत के मुंह में जाना पडा उससे राज्यवासियों के मन में सरकार की नाकामियों को लेकर बेहद नाराजगी है? 2०22 में चुनावी बिगुल बजेगा तो जरूर लेकिन सत्ता के मोह में कौन दल सत्ता भोगने में सफल होगी उसे तय तो अभी से जनता ने कर लिया है?

LEAVE A REPLY