लोकयुक्त में पेंडिंग शिकायतों की जांच हो तो दर्जनों नेता सैकड़ो अफसर होंगे जेलों में
अकूत दौलत कमाने वाले नेता-अफसरों पर आखिर कौन लगायेगा नकेल?
चंद्र प्रकाश बुड़ाकोटी
देहरादून। उत्तराखण्ड का जन्म होने के बाद राज्य के दर्जनों भ्रष्ट अफसरों व बडी संख्या में सफेदपोशों ने भ्रष्टाचार व घोटालों का इतना बडा खेल खेला कि वह अकूत दौलत के मालिक बन गये इतना सबकुछ होने के बावजूद भी उत्तराखण्ड में सत्ता चलाने वाली सरकारें ऐसे भ्रष्ट अफसरों व राजनेताओं की दौलत के राज को बेनकाब करने के लिए कभी भी आगे नहीं आई इसी का परिणाम है कि राज्य के अन्दर दर्जनों बडे अफसरों व काफी संख्या में राजनेताओं के मन में किसी भी सरकार का कोई भय नहीं दिखा और वह अपने खजाने को जिस तेजी के साथ भरते चले आ रहे हैं उससे यही आभास हो रहा है कि शायद उत्तराखण्ड राज्य ऐसे अफसरों व राजनेताओं का खजाना भरने के लिए ही बना था? उत्तराखण्ड के पूर्व मुख्यमंत्री भुवन चन्द खण्डूरी ने भ्रष्ट अफसरों व भ्रष्ट राजनेताओं पर शिकंजा कसने के लिए राज्य में लोकायुक्त का गठन किया था लेकिन उनकी सत्ता जाने के बाद इस लोकायुक्त का हश्र राज्य की जनता वर्षों से देखती आ रही है। गजब बात तो यह है कि 2017 में भाजपा ने दम भरा था कि अगर राज्य में उनकी सरकार आई तो सौ दिन के भीतर लोकायुक्त का गठन कर दिया जायेगा लेकिन उत्तराखण्ड के पूर्व मुख्यमंत्री बयानबाजी में तो लोकायुक्त का निर्माण करने का दम भर गये लेकिन एकाएक वह भी लोकायुक्त के गठन को लेकर ऐसे चुप्पी साध गये मानो अगर यह लोकायुक्त बन गया तो सरकार के सामने न जाने कौन सा संकट आकर खडा हो जायेगा? बहस छिड रही है कि अगर सरकार के नये मुख्यमंत्री राज्य के अन्दर स्वच्छ प्रशासन देने के लिए वचनबद्धता दिखा रहे हैं तो उन्हें ऐतिहासिक फैसला लेते हुए राज्य के अन्दर लोकायुक्त का गठन कर उत्तराखण्ड की जनता के सामने अपने आपको राजनीति का रियल हीरो साबित कर देना चाहिए अन्यथा विधानसभा चुनाव में सरकार किस एजेंडे को लेकर जनता के बीच जायेगी यह एक बडा सवाल अभी से ही खडा होना शुरू हो गया है?
उतराखण्ड में जिस प्रकार से भ्रष्टाचार घपले घोटाले इन बीस सालों से हो रहे है वह किसी से छिपा नही। भ्रस्टाचार पर अंकुश लगाने के लिए लंबे समय से राज्य में लोकायुक्त नियुक्ति की मांग सड़क से लेकर सदन तक लगातार उठती रही। लेकिन प्रदेश की सरकारों ने इसे कभी भी गंभीरता से नही लिया। अफसरों सफेदपोश की जुगलबंदी और जेल जाने का डर हमेशा से लोकायुक्त पर रोड़ा अटकाता रहा। दो हजार सत्रह चुनाव के समय सरकार आने पर सौ दिन में लोकायुक्त को देने का वायदा करने वाली भाजपा पूरे चार साल त्रिबेन्द्र रावत के नेतृत्व में भ्रष्टाचार के आकंठ में डूब, लोकायुक्त को सिरे से नकार कर जीरो टालरेंस का राग अलापती रही। जबकि उसकी नाक के नीचे सैकड़ो करोड़ के घोटाले घपले होते रहे। भले ही पूर्व सीएम मेजर जरनल भुवन चंद खंडूरी एक ठोस लोकायुक्त की बात कर चुके है। लेकिन जिस प्रकार से राज्य के दसवें सीएम तीरथ रावत और उनकी कैबनेट के कुछ मंत्री भ्रष्ट अफसरों के साथ खड़े दिखाई दे रहे है उससे लगता नही की तीरथ रावत अपने गुरु खंडूरी के लोकायुक्त के सपनो को साकार कर पाएंगे।
पंद्रह सौ से अधिक शिकायते है पैंडिंग
दो हजार तेरह से उतराखण्ड में लोकायुक्त का पद खाली है, इस अबधि मे एक हजार के करीब शिकायतें लोकायुक्त कार्यालय को प्राप्त हुई,जबकि पहले से लंबित को मिला दे तो कुल डेढ़ हजार से अधिक शिकायतें पेंडिंग है,जिसमे अधिकांश गंभीर भ्रष्टाचार की है। सूत्र बताते है कि अगर इन सभी शिकायतों पर जांच हो जाय तो दर्जनों नेता सौकड़ौ अफसर सलाखों के पीछे होंगे।