सरकार को लगता चूना!

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प्रमुख संवाददाता
देहरादून। कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर बड़ी तेजी के साथ अपना प्रभाव दिखा रही है। आंकड़ों की बात करें तो बीते वर्ष के मुकाबले इस वर्ष के आंकड़े काफी भयावह है। कोरोना के चलते पिछले वर्ष जनता को जिन दुश्वारियों से रूबरू होना पड़ा था ठीक वैसी ही दुश्वारियों से मौजूदा समय में भी होना पड़ा रहा है। पिछले साल लॉकडाउन के विभिन्न चरण देखने को मिले थे तो इस साल नई बोतल में पुरानी शराब की तर्ज पर लॉकडाउन का नाम बदलकर कोरोना कफ्र्यू रख दिया गया जिसे कुछ दिनों के अंतराल में नाटकीय ढंग से बढाया जा रहा है। उत्तराखण्ड राज्य में बीते वर्ष लगे लॉकडाउन में खाद्य व अन्य जरूरी सामग्रियों के साथ सरकार के राजस्व की कुंजी कहे जाने वाली शराब की जमाखोरी और कालाबाजारी भी खूब हुई थी। आलम यह था कि चार सौ से पांच सौ रुपए में बिकने वाली शराब की बोतल तीन से चार हजार में बिकी थी और जिस बात ने सबसे ज्याद हैरान किया था वह यह थी कि शराब की यह बोतलें उत्तराखण्ड की ही थी न कि किसी और राज्य से तस्करी कर लाई गई? सवाल उठे थे कि इतनी महंगी शराब बिकने पर क्या इससे सरकार को कोई राजस्व प्राप्त भी हुआ था या नहीं जिसका जवाब आज तक नहीं मिल पाया? फिलवक्त उत्तराखण्ड में कोरोना कफ्र्यू लागू हो रखा है और इस समय सीमा में भी नजारे पिछले साल के लॉकडाउन वाले ही नजर आ रहे है। अपने कर्तव्यों की इतिश्री करते हुए सरकार ने शराब की दुकानों को बंद कर रखा है लेकिन बीते वर्ष की भांति आज भी राज्य के विभिन्न शहरों के गली कूचों में महंगा सोमरस बिक रहा है और वह भी उत्तराखण्ड मार्का, जो उत्तराखण्ड के आबकारी महकमे के धुरंधर अधिकारियों के अपने कर्तव्यों के प्रति मुस्तैदी की गाथा को ब्यां करने के लिए काफी है? सवाल उठ रहे है कि पिछले साल तो आबकारी विभाग लॉकडाउन में तस्करी के रूप में बिकी शराब ब्योरा नहीं दे पाया था तो क्या मौजूदा कोरोना कफ्र्यू से पूर्व में दुकानों में रखी हुई शराब का ब्योरा दुकानें खुलने के बाद खंगाला जाएगा या फिर शराब तस्करी से सरकार को चूना लगता रहेगा और कोई कुछ नहीं बोलेगा?
उत्तराखण्ड सरकार के राजस्व की रीढ़ कहे जाने वाला आबकारी विभाग काफी लंबे समय से सुप्त अवस्था में ही नजर आ रहा है। आम दिनों में राज्य में बाहरी राज्य से होने वाली शराब तस्करी को रोकने के लिए वह कोई ठोस कदम उठाता हुआ तो नजर नहीं आता लेकिन है अगर किसी जनपद की पुलिस शराब तस्करी पर नकेल कसते हुए शराब तस्करों को दबोचकर उनसे भारी मात्रा तस्करी की शराब पकड़ती है तो आबकारी विभाग के कई वरिष्ठ अधिकारी उनके गुडवर्क में अपनी संलिप्ता को दर्शाने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ते। अब जबकि कोरोना महामारी की वजह से राज्य में कोरोना कफ्र्यू लगा हुआ है और सरकार के आदेश पर शराब की दुकानें बंद है, उसके बावजूद भी प्रदेश के जनपदों में शराब बिक रही है और उससे भी ज्यादा हैरान करने वाली बात यह है कि वे उत्तराखण्ड मार्का की ही है। राज्य की सीमाएं सील है जो इस बात पर मुहर लगाती है कि शराब बाहर से तो आ नहीं सकती। चर्चाओं का बाजार गर्म है कि राज्य के लगभग प्रत्येक जनपद में बंदी के इस दौर में भी शराब बिक रही है। सूत्र बताते है कि उत्तराखण्ड की अस्थाई राजधानी दून के विभिन्न थाना क्षेत्रों में शराब की बिक्री प्रचंड महंगे दामों में बदस्तूर जारी है। चर्चा यह है कि प्रचंड महंगी शराब बेचने वालों में से कुछ ने पूर्व में ही स्टॉक रख लिया था तो कुछ की सेटिंग सीधे शराब ठेकों से है जहां से उन्हें भले ही महंगे दाम में लेकिन आसानी से शराब की पेटियां उपलबध हो रही है? सीधी सी बात है जो खरीदेगा महंगा तो वह बेचेगा भी महंगा। यहीं कारण है कि मौजूदा समय मेंं आमतौर पर 6०० से 7०० रुपए में बिकने वाली शराब बोतल ढाई से तीन हजार रुपए की बिक रही है? लगातार दो वर्षों से वैश्विक आपदा के दौरान महंगे दाम पर बिकने वाली शराब से आखिर फायदा किसको हो रहा है? इस सवाल का जवाब शायद आबकारी महकमे के पास ही मिल सकता है लेकिन क्या वे जवाब देंगे यह अब सबसे बड़ा यक्ष प्रश्न है? हैरान करने वाली बात यह भी है सरकार का भी इस ओर संभवत: कोई ध्यान नहीं जा रहा है क्योंकि अगर जाता तो वे जरूर अपने राजस्व की महत्वपूर्ण कुंजी का संज्ञान लेते हुए यह सुनिश्चित करती कफ्र्यू के दौरान तस्करी से बिकने वाली शराब का राजस्व आखिर किसे प्राप्त हो रहा है?

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