फटकार ‘खाती’ सरकार

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प्रमुख संवाददाता
देहरादून। वर्तमान साल के मार्च माह में भले ही उत्तराखण्ड की डबल इंजन सरकार के नेतृत्व में परिवर्तन हो गया हो लेकिन शासन की कार्यशैली में कोई बदलाव हुआ हो ऐसा प्रतीत नहीं होता, हां इतना जरूर है कि कुछ चेहरे तो बदले गए परंतु नए चेहरे भी उस उत्कृष्ठता के साथ कार्य करते नहीं दिखे जिसकी अपेक्षा की जा रही थी। पूर्व में जिस प्रकार से टीएसआर-1 के राज में लिए गए विचित्र निर्णयो को लेकर सरकार को उच्च न्यायालय से लगातार फटकार खाने को मिलती थी ठीक उसी प्रकार से टीएसआर-2 को भी मिल रही है। राज्य में बढ़ते कोरोना संकट का संज्ञान नैनीताल स्वत: ही ले रही और इसी के चलते वह हर मोर्चे पर राज्य से लेकर केन्द्र सरकार की निष्क्रियता और विफलताओं पर उन्हें फटकार लगा रही है। वैसे तो आबादी के अनुपात से उत्तराखण्ड ज्यादा बड़ा राज्य नहीं है बावजूद उसके यहां की स्वास्थ्य सुविधाएं बाकी छोटे राज्यो की तुलना में काफी बद्तर दिखाई दे रही है। पिछले कुछ दिनों को अगर एक तरफ रखा जाए तो यह देखने को मिलेगा कि उससे पूर्व राज्य में संक्रमण किस तेजी से फैल रहा था। सरकार के आलोचकों ेसे लेकर उच्च न्यायालय भी इस बात को लेकर सवाल खड़े कर रही है कि राज्य में टेस्टिंग प्रक्रिया काफी स्थिलता के साथ चल रही है, जिसके चलते संक्रमण के मामले संभवत: काफी कम आ रहे है? वहीं अब कोरोना महामारी के प्रकोप के साथ ब्लैक फंगस जैसा जानलेवा संक्रमण भी राज्य में अपने पैर फैला रहा है। इस संक्रमण को लेकर सरकार कितनी तैयार है, इसको लेकर अभी शायद कुछ कहा नहीं जा सकता? सवाल उठ रहे है कि अगर राज्य की जनता की भलाई को लेकर उच्च न्यायालय ने ही सारे फैसले लेने है तो आखिर प्रचंड बहुमत वाली डबल इंजन सरकार कर क्या रही है? चंद मीडिया घरानों से लेकर सोशल मीडिया में रोजाना प्रचार हो रहा है सरकार कोरोना महामारी से लडऩे के लिए फ्रंटफुट पर बैटिंग कर रही है जिसको लेकर यह सवाल उठने लाजमी है कि अगर वाकई में सरकार इतनी ही सजग है और अपने कर्तव्यों का निर्वाह्न पूरी निष्ठा के साथ करने में जुटी हुई है तो फिर उसे उच्च न्यायालय से फटकार खाने को क्यों मिल रही हैं?
उत्तराखण्ड की टीएसआर-2 सरकार ने राज्य में कोरोना कफ्र्यू लगाया हुआ है, जिसे वह कुछ-कुछ दिनों के अंतराल में लगातार बढ़ा रही है। इस कोरोना कफ्र्यू के परिणामों को भले ही सरकार साकारात्मक समझ रही हो लेकिन क्या वह इसके नाकारात्मक पहलुओं को भी समझ रही है? कोरोना महामारी के पहले चरण के दौरान पिछले साल लगे लॉकडाउन में खाद्य सामग्रियों की कालाबाजारी और जमाखोरी बड़े पैमाने में हुई थी और उसको रोक पाने में टीएसआर-1 सरकार सफल होती हुई नजर नहीं आई। मौजूदा समय में भी हालात काफी हद तक पिछले साल लगे लॉकडाउन जैसे ही नजर आ रहे है और मौजूदा टीएसआर-2 सरकार के सिपाहसलार इस पर ब्रेक लगाने में सक्ष्म नजर नहीं आ रहे? सूबे में अपना राजनीतिक अस्तित्व तलाश रहे कांग्रेस व उक्रांद जैसे राजनीतिक दल लगातार सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल रहे है लेकिन उनकी हुंकार समाचार पत्रों के एक कोने तक ही जाकर थमती हुई नजर आ रही है। ऐसे में उत्तराखण्ड की जनता को उनका हक दिलाने के लिए एक बार फिर उच्च न्यायालय को ही प्रमुख भूमिका निभानी पड़ रही है। बता दें कि उत्तराखंड हाईकोर्ट ने राज्य और केंद्र सरकार को निर्देश दिए हैं कि रोजाना होने वाली कोरोना जांचों की संख्या राज्य तेजी से बढ़ाएं क्योंकि आईसीएमआर के निर्देशों के अनुरूप राज्य सरकार टेस्ट की संख्या घटा नहीं सकती है। अदालत ने केंद्र सरकार को आदेशित किया है था कि वह राज्य सरकारों के लिए ऑक्सीजन का कोटा 183 मीट्रिक टन से बढ़ाकर 3०० मीट्रिक टन किए जाने पर गंभीरता से विचार करे। हाईकोर्ट का कहना है कि उतराखंड का बहुत बड़ा हिस्सा पर्वतीय क्षेत्र है। वहां निरंतर ऑक्सीजन सप्लाई किए जाने की आवश्यकता पड़ेगी। ऐसे में केंद्र सरकार उत्तराखंड सरकार की उन मांगों पर गंभीरता से निर्णय लें, जिसमें उसने केंद्र से 1०००० ऑक्सीजन कंसंट्रेटर, 1०००० ऑक्सीजन सिलेंडर 3० प्रेशर स्विंग ऑक्सीजन प्लांट, 2०० सीएपी, 2०० बाइपेप मशीन तथा एक लाख पल्स ऑक्सीमीटर की मांग की थी। कोर्ट ने यह भी कहा था कि केंद्र सरकार राज्य सरकार के उस आवेदन पर एक सप्ताह में निर्णय ले जिसमें राज्य सरकार ने अपने ऑक्सीजन के कोटे का प्रयोग अपने ही उत्पादन से करने देने की अनुमति मांगी थी।
उल्लेखनीय है कि वर्ष 2०17 में जब भाजपा की डबल इंजन सरकार सत्ता में आई थी तो उसने दावा किया था कि वह राज्य स्वास्थ्य व्यवस्थाओं में सुधार करते हुए उसे बुलंदियों तक पंहुचाएगी लेकिन बीते चार सालों में उत्तराखण्ड से स्वास्थ्य व्यवस्थाओं की जो तस्वीरें आवाम के सामने आई है वह यह बताने के लिए काफी है कि यहां स्वास्थ्य व्यवस्थाएं कितने चरमरा रखी है और यहीं कारण रहा कि स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर डबल इंजन सरकार लगातार नैनीताल हाईकोर्ट के निशाने पर रही। अब जबकि कोरोना संक्रमण तेजी के साथ मैदानों से लेकर पहाड़ों में फैल रहा है, उसको लेकर भी सरकार से ज्यादा उच्च न्यायालय ही चिंितत नजर आ रहा है और यहीं कारण है कि वहा लगातार केन्द्र व राज्य सरकार को इस संक्रमण को लेकर नसीहत दे रहा है और उनके द्वारा पूर्व में हुई त्रुटियों से सबक लेते हुए उनकी पुर्नावृत्ति न हो इसके लिए भी फटकार लगाते हुए समझा रही है। रह रहकर सवाल यही उठ रहा है कि आखिर कब न्यायालय की फटकार खाती रहेगी सरकार?

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