पैरासिटामोल को तरसते पहाड़!

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उत्तराखण्ड में सफेदपोशों को मिला ‘रहस्यमय खजाना’
दर्जनों राजनेता कंगाल से बन गये करोडपति?
देहरादून(मुख्य संवाददाता)। उत्तराखण्ड बनने के बीस साल बाद भी पहाडी जनपदों के ग्रामीण छोटी से छोटी बीमारी का इलाज अपने इलाके में नहीं करवा पा रहे हैं और उन्हें हमेशा राजधानी की ओर अपने मरीज को लेकर दौडना पडता है। कितनी गजब बात है कि कोरोना काल में पहाडों के अधिकांश जिलों के गांव व दूरस्थ गांव में ग्रामीण एक पैरासिटामोल के लिए भी तरस रहा है और कुछ ग्रामीण इलाके ऐसे हैं जहां दो दिन के बुखार के बाद उन्हें मौत मिल गई? इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि उत्तराखण्ड में कहने को सिर्फ स्वास्थ्य महकमा है जबकि धरातल पर यह महकमा मैदान व पहाडी जनपदों में हमेशा धडाम ही नजर आता है और कोरोना काल में तो सरकार के स्वास्थ्य महकमें की कलई राज्यवासियों के सामने खुलकर सामने आ गई? गजब बात तो यह है कि जिन पहाडवासियों ने लाठी-डंडे व गोलियां खाकर राज्य का निर्माण करवाया उन्हें भले ही अपने गांव में बुखार की एक गोली सरकारी अस्पताल से न मिल पा रही हो लेकिन राज्य के दर्जनों सफेदपोश राजनेता ऐसे हैं जो राज्य बनने के बाद कंगाल दिखाई देते थे लेकिन उन्हें न जाने कौन सा रहस्यमय खजाना मिल गया जिसके चलते काफी संख्या में बडे सफेदपोशों के पास अकूत खजाना है और यह खजाना उन्हें कहां से मिला अगर देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भ्रष्टाचार पर प्रहार करने के अपने वचन को उत्तराखण्ड में भी निभाने के लिए आगे आये तो राज्य में दर्जनों सफेदपोश व बडी संख्या में अफसरों के पास इतनी बेनामी सम्पत्ति मिल जायेगी जिसका अंदाजा भी लगाना मुश्किल है?
देश के सबसे बडे प्रदेश मे उत्तर प्रदेश में पहाड़ी जिलों में विकास नहीं पहुँच रहा था,क्यों कि भौगोलिक स्थिति जटिलताओं से घिरी हुई थी। पर्वतीय जिलों के विकास के लिए अलग राज्य की सुगबुहाहट अंदर ही अंदर सुलगती रही,वैसे उत्तर प्रदेश से अलग राज्य बनाने के लिए बहुत से जन आंदोलन होते रहे। 1994 में पौडी गढवाल में आरक्षण के विरोध में छात्रों का आंदोलन शुरू हुआ तथा चिंगारी अलग राज्य के आदोलन के निर्माण की सुलग गयी,जिसमें अहम भूमिका मातृशक्ति की रही। पहाड़ों के सभी आंदोलनों में बिना मातृशक्ति के जीत संभव नहीं है। राज्य के आंदोलन में बहुत से घरों के चिराग बुझ गए, कई बहिनो के माथे से सिंदूर मिट गया तमाम तरह की ताडनाये झेलने के बाद एक नया राज्य भाजपा के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी जी ने सौगात के रूप में दी।
जिस अवधारणा के साथ राज्य का निर्माण हुआ, वह भी इतिहास के पन्नों में ही सिमट कर रह गया,जिनकी बदौलत राज्य बना वे पूर्व की भांति आज भी हाशिये पर है,और मौज दर्जनों सफेदपोश उनके गुर्गे व भ्रष्ट अधिकारी ले रहे है। देश में कोरोना महामारी भयावह स्थिति में है ओर दूरस्थ क्षेत्रों में हल्के से बुखार के लिए भी पैरासिटामोल दवा की गोली भी नहीं है,इससे बडा दुर्भाग्य इससे ज्यादा ओर क्या हो सकता है। आज राज्य भ्रष्टाचार के दलदल में धंसता हुआ चला जा रहा है,लेकिन इन भ्रष्टाचारियों पर नकेल कसने का साहस कोई भी सरकार नही कर सकी? आज राज्य निर्माण के लिए सब कुछ खोने वाले लुप्त हो चुके है और नेता जिनका राज्य के निर्माण में योगदान शून्य है मौज काट रहे है। सफेदपोश बनने से पहले कच्ची शराब, वन पातन का काम करते थे उनके पास अकूत संपत्ति कैसे आयी इस पर भी जाँच की जानी चाहिए। राज्य के वाशिदो को सरकारों ने फुटब्बाल बनाकर रख दिया है। आज भी राज्य में स्वास्थ्य, शिक्षा, सड़क व रोजगार पूर्व की भांति आज भी बादस्तूर कायम है। राज्य में रोजगार केवल 71 विधायकों व उनके चेले चपाटो को मिला। जिस अवधारणा के राज्य का गठन हुआ, एक दुर्स्वपन जैसा ही महसूस राज्य वासी महसूस करने लगे हैं। पहाड़ों की कलकल करती नदियाँ जो जीवनदायनी है सफेद पोशो की छरू इंच की जेबों में समा चुकी है। जिनसे मूल वाशिदे अकाल की मौत मर रहे हैं व जेब सफेद पोशो की भरी जा रही है। राज्य बनने से पूर्व यदि इन सफेद पोशो की सम्पत्ति की जाँच की जाय तो इन में अधिकतर दो जून की रोटी के लिए भी मोहताज थे लेकिन राज्य निर्माण के बाद इनके हाथो में अल्लाहदीन का चिराग आन पडा जो इनकी दौलतो में बेतहाशा इजाफा कर रहा है। आखिर इस पर भी सत्तासीन सरकार को सोचना पडेगा?

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