प्रदूषण बोर्ड में आईएफएस पर मेहरबान हुई सरकार!
ट्रांसफर के तेईस दिनों बाद निकाला संसोधन आदेश पूर्व पद ही दी पोस्टिंग
चंद्र प्रकाश बुड़ाकोटी
देहरादून। होना तो यह चाहिए था आदेश न मानने वालों पर कार्रवाई हो, लेकिन उतराखण्ड में पुरष्कृत किया जाता हैं। पूर्व सीएम त्रिबेन्द्र की परिपाटी को सीएम तीरथ रावत भी आगे बढ़ाते दिख रहे है।अभी 27 अप्रैल को सत्रह वन अफसरों के ट्रांसफर किये गए थे।स्थानांतरण नियमावली को मानने वाले अधिकारियों ने आदेश मिलते ही नई जगह ज्वाइन कर लिया। लेकिन एक अफसर जो चार सालो से प्रदूषण बोर्ड में है और अभी मलाई दार प्रदूषण बोर्ड को छोड़ने के लिए तैयार ही नही,उनके लिए सरकार ने तेईस दिनों बाद संसोधन आदेश निकाल दिया। अब सवाल यह खड़े होते है कि जब उतराखण्ड में स्थानांतरण नियमावली है उसके मुताबिक तीन साल पूरे होने पर स्वतःही ट्रांसफर हो जाएगा। ऐसा क्या है कि एक दो अफसरों के लिए नियमावली का मखौल उड़ाया गया,और आदेशो पर यू टर्न लिया गया? गौरतलब है कि सत्ताईस अप्रैल को अन्य आईएफएस अफसरों के साथ प्रमुख वन संरक्षक एस सुबुद्धि को प्रदूषण बोर्ड से हटाकर अपर प्रमुख वन संरक्षक पद पर स्थानांतरण किया गया। वही प्रदूषण बोर्ड के सदस्य सचिव व राज्य पर्यावरण संरक्षण एवम जलवायु परिवर्तन निदेशालय में रिक्त पद पर मुख्य वन संरक्षक इंद्र पाल सिंह को सदस्य सचिव के साथ निदेशालय का प्रभार दिया गया उंन्होने इतने दिनों तक क्यो नही ज्वाइन किया यह भी बड़ा सवाल है? पूर्व आदेशो में तेईस दिनों बाद संसोधन कर एक बार फिर उतराखण्ड सरकार विवादों में घिर गई है। एक तो एनजीटी व सुप्रीम कोर्ट के पूर्व आदेशों की अवहेलना की गई और दूसरा सिर्फ इन दो अफसरों की पोस्टिंग आदेशों में संसोधन तेईस दिनों बाद कर अपने ही बनाये नियमो का मखौल उड़ाया गया। क्या शाशन में बैठे अफसर मंत्री और सीएम की बिना सहमति के पहले ट्रांसफर हुए थे ? अगर अनुमति ली गई तो संसोधन क्यो अगर नही ली गई तो यह बड़ा गंभीर है। तेईस दिनों से बोर्ड में रिक्त चल रहे पद जैसा कि इंद्र पाल सिंह के ट्रांसफर आदेश में लिखा गया है।इस तेईस दिनों में सदस्य सचिव व जलवायु मंत्रालय की फाइलों पर हस्ताक्षर किसने किए क्या इसकी जांच होगी क्योंकि यह पद रिक्त था ? इस पूरी प्रक्रिया से अन्य वन अफसर खासे नाराज बताए जा रहे है।शाशन से लेकर वन बिभाग तक चर्चा तो यहाँ तक है कि मोटी थैली है मनचाहा पद और जब तक चाहो मलाई दार बिभाग में बने रह सकते हो। बोर्ड के इस अफसर का उदाहरण दिया जा रहा है।
प्रदूषण बोर्ड में एक सदस्य सचिव को दुबारा फिट करने के लिए उतराखण्ड सरकार विवादौ में घिर गई है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाबजूद सरकार तय मानकों का पालन ही नही किया है बल्कि अपने ही बनाये ट्रांसफर आदेशो की और सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की भी धज्जियां उड़ा दी है।प्रदूषण बोर्ड में अध्यक्ष और सदस्य सचिव पद पर प्रदूषण विशेषज्ञों की तैनाती करने के सुप्रीम कोर्ट ने राज्यो के मुख्य सचिव को दो हजार सत्रह में आदेश दिए थे,इसके बाबजूद भी उतराखण्ड सरकार ने पालन नही किया।कुछ महीनों पहले कोर्ट ने अवमानना नोटिस भी मुख्य सचिव उतराखण्ड को जारी किया था।सब कुछ जानने के बाबजूद भी सरकार ने ऐसे आदेश जारी किए। भ्रस्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने वाले रघुनाथ नेगी ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट को इसका तत्काल संज्ञान ले कार्रवाई करनी चाहिए।