वन महकमें की हिटलरशाही के चलते तीरथ राज में बेजुबानों को भी मिल रही मौत!

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इंसान नहीं बचा पा रहे तो पशुओं को तो बचा लो हुजूर?
प्रमुख संवाददाता
देहरादून। उत्तराखण्ड के वन मंत्री हरक सिंह रावत आंसू बहा रहे हैं कि कोरोना काल में उनके अपने मौत के आगोश में चले गये और वह कुछ नहीं कर पाये। और तो और उन्होंने यहां तक अपना दर्द छलकाया कि सरकार ने कोरोना से लडने की तैयारी नहीं की जिसके चलते मरीजों की मौत से वह आहत हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि जहां सरकार इंसानों को मौत के मुंह में जाने से नहीं बचा पा रही है वहीं तीरथ राज में बेजुबानों को भी मौत मिल रही है जो कि सरकार पर सवाल खडे कर रहा है कि वह इंसानों को तो बचा नहीं पा रहे तो कम से कम वह बेजुबान पशुओं को तो मौत के मुंह में जाने से बचा सकती हैं? वन गुजरों के मन में सरकार के वन महकमें के एक अफसर को लेकर बडी नाराजगी है जो उन्हें पुरोला के जंगलों में उनके डेरे लगने व उनके पशुओं को वहां चरने के लिए प्रवेश नहीं दे रहा है? वन विभाग के मंत्री को इंसानी मौते तो नजर आ रही हैं लेकिन चारा न मिलने के अभाव में वन गुजरों के बेजुबान पशु जिस तरह से एक-एक कर मौत की नींद सो रहे हैं वह वन मंत्री के मीडिया के सामने बहाये जा रहे आंसू पर सवाल खडे कर रहा है कि क्या बेजुबान पशुओं के निकल रहे प्राणों का उन्हें दर्द महसूस नहीं हो रहा?
उत्तराखण्ड में कहने को तो प्रचंड बहुमत की सरकार है और उसे डबल इंजन का नाम दिया हुआ है लेकिन राज्य के अन्दर डबल तो क्या राज्यवासियों को चार साल बाद भी सिगल इंजन उत्तराखण्ड के अन्दर दौडता हुआ नजर नहीं आया। त्रिवेन्द्र राज में चार साल तक भ्रष्टाचार, धोटाला, फर्जी मुकदमों का तांडव, चंद पुलिस अफसरों की सलतनत से आवाम को जिस तरह से प्रचंड बहुमत की सरकार में राजशाही देखने को मिली उसने उनके मन में सरकार को लेकर एक बडी ज्वालामुखी का रूप दे रखा है? चुनावी बेला से पहले भाजपा हाईकमान ने त्रिवेन्द्र रावत को सत्ता से हटाकर तीरथ ंिसह रावत को सत्ता सौंपी तो ऐसा आभास हुआ कि मानो राज्य के अन्दर दागी व भ्रष्टाचार सिस्टम के साथ ही राजशाही का अंत हो जायेगा? हालांकि नये मुख्यमंत्री तीरथ ंिसह रावत ने अपने अभी तक के कार्यकाल में ऐसा कोई करिश्मा करके नहीं दिखाया जिससे राज्यवासियों को एक राहत मिलती कि अब राज्य में स्वच्छ लोकतंत्र का आभास होगा? हैरानी वाली बात है कि इन दिनों कोरोना काल में हजारों की मौत ने उत्तराखण्ड सरकार के दामन पर एक बडा दाग लगा दिया है कि उनके फेलियर सिस्टम के चलते हजारों लोगों को मौत की नींद सोना पड गया? उत्तराखण्ड सरकार के मुखिया तीरथ ंिसह रावत जहां कोरोना से हो रही इंसानों की मौत के आंकडे को कम करने में फेल होते जा रहे हैं वहीं उनके घृतराष्ट्रपन के चलते बेजुबान पशुओं को भी तडफ-तडफ कर मौत की नंीद सोना पड रहा है? राजाजी के वन गुजरों का प्रतिनिधित्व करने वाले इरशाद का कहना है कि 2013 में उत्तराखण्ड कैबिनेट ने प्रस्ताव पारित किया था कि राज्य के जंगलों में वन गुजरों को डेरे लगाने व उनके पशुओं को जंगल में चरने की अनुमति रहेगी उन्होंने बताया कि उच्च न्यायालय ने भी निर्देश दिये हैं कि पहले से जो वन गुजर जंगलों में अपना बसर करते हैं उन्हें राज्य के जंगलों मे पशुओं को चरने व उनके डेरे लगने से न रोका जाये। इरशाद का कहना है कि पुरोला के नितवाड, मोरी, रूपन, सुपन में वन गुजर हमेशा प्रवेश करते थे लेकिन अभी पुरोला के एक वन अधिकारी ने कोविड का बहाना करते हुए वन गुजरों को जंगलों में प्रवेश करने से दस किलोमीटर पहले ही रोक दिया है। वन विभाग के अफसर के कारण वन गुजरों के पशुओं की एक के बाद एक मौत हो रही है और उनके साथ मौजूद बच्चे व महिलायें भी मौत के पायेदान की तरफ अपने कदम बढाये हुये हैं। उन्होंने कहा कि कुछ अधिकारी वन गुजरों से बैर रखते हैं जिसके चलते चिला रेंज से हटाकर इन्हीं वन गुजरों को तीन साल पहले वहां से बाहर कर दिया गया था लेकिन इसके बाद शासन-प्रशासन के कुछ आला अधिकारियों ने इनकी पुनः मद्द की और इनकी सूची सत्यापित करके शासन को भेजी थी। उन्होंने बताया कि शासन से पुनः प्रस्ताव प्रमुख वन संरक्षक द्वारा मांगा गया है। उन्हांेने बताया कि मुख्यमंत्री के वरिष्ठ प्रमुख निजी सचिव के.के. मदान ने मुख्य वन संरक्षक वन जीव को बीते माह पत्र लिखा था कि घुमंतु वन गुजर समुदाय द्वारा ग्रीष्मकाल में गोविंद पशु विहार के साकरी, रूपीन, सूपीन रेंज के बफर क्षेत्रों में तथा शीतकाल में मोहंड, शाकुम्भरी, बडकला क्षेत्रों में निवास एवं पशु चुगान की अनुमति प्रदान किये जाने कि मुख्यमंत्री से अनुरोध किया है। वहीं मुख्य वन जीव प्रतिपालक उत्तराखण्ड ने उपनिदेशक गोविंद वन जीव विहार, राष्ट्रीय पार्क पुरोला को पत्र लिखा था कि शासनादेशा में दिये गये प्राविधानों के अनुसार पूर्व की भांति इस वर्ष भी सांकरी व रूपीन रेंज के अन्तर्गत ग्रीष्मकालीन चराई की अनुति प्रदान करने हेतु कार्यवाही कर उन्हें अवगत कराये। हालांकि अभी भी वन गुजरों को पुरोला के जंगलों में प्रवेश करने से रोक दिया गया और उनके डेरे में महिलायें बच्चे व बुजुर्ग खुले आसमान के नीचे प्रचंड बहुमत की सरकार द्वारा अपनाई जा रही तानाशाही का दंश झेल रहे हैं और पिछले कुछ दिनों में जिस तरह से उनके पशुओं की मौत हुई है उस पर मुख्यमंत्री तीरथ ंिसह रावत व वन मंत्री हरक सिंह रावत की खामोशी से यह सवाल तैरने लगे हैं कि जहां वह कोरोना से हजारों इंसानों का जीवन बचाने में नाकाम साबित हो गये वहीं कम से कम कुछ बेजुबान पशुओं व वन गुजरों पर आ रखे मौत के संकट से तो उन्हें बचा ही सकते हैं?

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