बुखार की गोली तक नहीं दे पा रही सरकार?
आईसीयूलेट के बाद पहाडों में टेस्ट पर ‘बैन’
देहरादून(मुख्य संवाददाता)। उत्तराखण्ड के पहाडों के विकास व वहां की स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर कभी भी सरकार ने कोई रोड-मैप तैयार किया हो ऐसा बीस साल बाद भी देखने को नहीं मिला। उत्तराखण्ड में प्रचंड बहुमत की सरकार ने चार साल पूर्व दावा किया था कि पहाड की जवानी और पानी को बर्बाद नहीं होने दिया जायेगा लेकिन सरकार का यह दावा सिर्फ एक जुमले से ज्यादा कुछ दिखाई नहीं दिया? पहाड़ी जिलों में रहने वाले लोग आज भी अपना जीवन पहाड की तरह जीने को मजबूर हैं और अधिकांश पहाडी जिलों के गांव में जहां स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर सरकार का कोई विजन आज तक देखने को नहीं मिला वहीं कुछ पहाडी जिलों के दुरस्थ गांव में ग्रामीणों को बुखार की गोली तक नसीब नहीं हो पाती ऐसे में अंदाजा लगाया जा सकता है कि डबल इंजन की सरकार पता नहीं राज्य में किस पटरी पर दौडती रही जिसके चलते उसके चलने की दिशा कभी भी पहाडवासियों को नजर ही नहीं आई? गजब बात तो यह है कि मैदानी जिलो ंमें कोरोना पर नकेल लगाने में फिस्ड्डी साबित हुई तीरथ सरकार के मन में पहाडों में तेजी से फैल रहा कोरोना डर पैदा किये हुये है और यही कारण है कि कोरोना के दौरान 14 दिन घर में आईसीयूलेट होने वाले ग्रामीण जब अस्पताल में अपना कोरोना टेस्ट कराने के लिए जा रहे हैं तो उन्हें एक ही पाठ पढाया जा रहा है कि अब ऊपर से आदेश हैं कि कोरोना टेस्ट पर बैन है। ऐसे में सरकार पहाडों में फैल रहे कोरोना के आंकडों को कम करने का जिस तरह से खेल खेलने में जुटी हुई है वह पहाडवासियों के लिए हर पल जीवन मरण का डर उनके मन में पैदा कर रही है?
महात्मा गाँधी ने कहा था कि भारत की आत्मा गाँव में बसती है लेकिन आत्मा को छोडिए क्या ग्रामीणों के शरीर के बारे में कुछ किया गया हो,वहां संक्रमण पहुँचे तो अस्पताल हो,स्वास्थ्य केंद्र हो,जाँच की व्यवस्था हो।लेकिन ये भी फाइलों में ही कैद है। यदि गाँव भूले तो शहर नहीं बचेगे,क्योंकि आज भी गांवो में आबादी का 70ः गाँवों में ही रहती है।कोरोना महामारी ने सरकार के हवा हवाई दावो की पोल खोल दी है। राज्य में स्वास्थ्य सेवाएं स्वयं वेंटिलेटर पर हाँफ रही है,इन 21 सालो में गाँवों में न तो डाक्टर पहुँच पाये है ओर न ही सरकार। सरकार ने एक जुमला खूब उछला ‘सरकार जनता के द्वार’ लेकिन ये जुमला भी मौज मस्ती तक ही सीमित रहा। कोरोना संक्रमण गाँव की पगडंडियो तक दस्तक दे चुका है,लेकिन बिना जाँच व दवाओं के इलाज कैसे संभव हो पायेगा यक्ष प्रश्न जैसा ही है प्रतीत होता है। अब तो गाँवों में बिना जाँच के ही ग्रामीणों को संक्रमित किया जा रहा है इसका ताजा उदाहरण रुद्रप्रयाग जनपद में देखने को मिला है,आखिर नौकरशाही इस तंत्र को कैसे चला रही है,सोचने के लिए विवश कर रही है।
कहावत है कि यदि रिश्तो में जान ओर मोबाइल पर नेटवर्क न हो तो लोग गेम खेलने लग जाते हैं। यही हाल पहाडों के वाशिदो के साथ सरकार कर रही है। राज्य के पहाड़ी जिलों में न तो डाक्टर है,यदि है भी उनकी तैनाती मैदानी क्षेत्रों में है ओर वेतन पहाडों के अस्पतालों से निर्गत की जा रही है, ये तो तब है जब इस महकमें की कमान सूबे के मुखिया ने स्वयं संभाली हुई है, अन्य महकमों के हालातों पर आप भी मनन करे। इलाज न मिलने की दशा में प्राइवेट अस्पताल मरीज के परिवार का खून चूसने में परजीवी से भी कम नही है। जबतक हल,खेत और गहने न बिक जायँ तब तक अस्पतालों के संचालक छोडते नही है क्यों कि अभी तक आपदा में इलाज की नीति भी नही सरकार नही बना पायी है? सूबे के मुखिया प्रतिदिन बैठके कर महकमें को दिशा निर्देश जारी कर रहे है,लेकिन धरातल पर डाक्टरों,नर्सिंग स्टाफ व पैरामेडिकल कर्मचारियों की नियुक्ति पर चुप्पी साधे हुए है ऐसे में अंदाजा लगाया जा सकता है कि सरकार पहाडों में किस तरह से शून्य हो गई है?