प्रचंड बहुमत सरकार पर हो रहे प्रहार कौन देगा मौतों का हिसाब!

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देहरादून(मुख्य संवाददाता)। उत्तराखण्ड में 2017 में हुये विधानसभा चुनाव के बाद भाजपा की प्रचंड बहुमत की सरकार आई और राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने ऐलान किया था कि डबल इंजन की सरकार उत्तराखण्ड को विकास की ऊंचाईयों पर पहुंचा देगी लेकिन कोरोना की पहली लहर में जिस तरह से सरकार का स्वास्थ्य महकमा कोरोना मरीजों का जीवन बचाने में फेल साबित हुआ उससे यह संभावना बनी थी कि सरकार पहली लहर से सीख लेकर राज्य के अन्दर स्वास्थ्य ढांचे को इतना मजबूत बना देगी कि किसी भी बीमारी से लडने के लिए वह रात-दिन तैयार रहेगी। आवाम की यह सोच राज्य के अन्दर उस समय चूर-चूर हो गई जब कोरोना की दूसरी लहर में मैदान से लेकर पहाडों में आये दिन मौत का तांडव मचा हुआ है और सरकार घृतराष्ट्र बनकर बैठी हुई है? सरकार कोरोना से हो रही मौतों को रोकने में क्यों फिस्ड्डी साबित हो रही है यह हैरान करने वाली बात है जबकि कोरोना मरीजों की संख्या में तो कमी का दावा किया जा रहा है लेकिन आये दिन सौ से ज्यादा हो रही मौतों ने सरकारी सिस्टम को आईना दिखा रखा है? सरकार भले ही आये दिन कोरोना से मजबूती के साथ जंग लडने का ढोल पीट रही हो लेकिन 2022 के विधानसभा चुनाव में उत्तराखण्ड की जनता सरकार से कोरोना से हुई हजारों मौतों का हिसाब लेने का मन बना चुकी है? ऐसे में प्रचंड बहुमत की सरकार 2022 के विधानसभा चुनाव में आवाम के बीच अपने डबल इंजन का क्या गुणगान गायेगी यह उसके लिए बिल्ली के गले में घंटी बांधने जैसा दिखाई दे रहा है?
राज्य में 2017 के विधानसभा चुनावों में मोदी के नाम पर वोट माँग कर 57 विधायक, विधानसभा की दहलीज तक पहुँचनेे में सफल रहे। आशा थी कि केद्र व राज्य में एक ही दल की सरकार होने से विकास तीव्र गति से दौड़ेगा,लेकिन विकास की धुरी रूक गयी,जनता के बीच मुखिया की कुनीति के कारण असंतोष पनपने लगा। आनन-फानन में भाजपा हाई कमान ने मुखिया तो बदला लेकिन पूर्व की तरह कर्ता धर्ता नही बदले,जिसने आग में घी की तरह काम किया। राज्य में कोरोना महामारी विकराल होने से सरकार की राजनीतिक चुनौती ओर भी ज्यादा बढ गयी है। कोरोना संक्रमण की विभीषिका के बीच जनता का सरकार के प्रति आक्रोश बढने लगा है। सरकार या सत्तारूढ भाजपा इस विपरीत हालात में भी जनता को सकारात्मक रहने की अपील कर रही है,लेकिन जमीनी हकीकत से न तो सरकार का मुखिया देख रहे है और ना ही उनके सलाहकारों द्वारा चेताया जा रहा है,हालात बेहद खराब हैऔर सरकार के पास महामारी से बाहर निकलने के रास्ते भी सीमित है। ऐसे में जनता का आक्रोश न्यायोचित ही है। सरकार ने बीमारी से निबटने के लिए टीकाकरण कार्यक्रम भी चलाया है लेकिन यह भी शुरू होने से पहले ही विवादों के घेरे में ही है। सरकार की सोशल मीडिया पर धज्जियां उड़ाई जा रही है,लेकिन सरकार मौन होकर जनता के मरने का तमाशा देख कर प्रफुल्लित हो रही है,आखिर जनता ने विपक्ष खत्म कर बहुमत से अधिक सीटे जो दी है। इन हालातों में पार्टी व सरकार 2022 के विधानसभा चुनावों में ष्मोदी है नाष् के भरोसे है। लेकिन अब स्थितिया बेहद खराब है। अब तो सरकार के ऊपर नकेल डालने का समय भी लगभग अंतिम दौर में ही है। सरकार कोरोना से निबटे या अपने अंदर के विभीषणो से यह तय तो तीरथ सिंह रावत को ही करना है,जनता तो केवल थाली,ताली ही पिटेगी?

 

गांव तक पहुंचा कोरोना ‘कौन है जिम्मेदार’
देहरादून। उत्तराखण्ड सरकार कोरोना के तांडव को रोकने में किस तरह से नाकाम साबित हो चुकी है इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है जहां मैदानी क्षेत्रों में आये दिन कोरोना मरीजों की मौत ने आवाम के मन में मौत का एक डर पैदा कर रखा है वहीं हालात इतने बदतर हो चुके हैं कि पहाडों के दूर दराज के गांव में सरकार बुखार की दवाई तक भी उपलब्ध नहीं करा पा रही है जिस कारण मौत का आंकडा आये दिन पहाडों में बढता दिखाई दे रहा है? हैरानी वाली बात यह है कि पूर्व मुख्यमंत्री का सरकारी सिस्टम जो पहली कोरोना लहर में फेल दिखाई दिया था वही सिस्टम तीरथ ंिसह रावत के राज में भी कोरोना से युद्ध करने के लिए काल्पनिक रूप से मैदान में डटे रहने का ढोल पीट रहा है? सरकार को समझ ही नहीं आ रहा ंिक अपने लचर सिस्टम के चलते वह आवाम के बीच क्यों अपनी छवि को विलेन के रूप में स्थापित करती जा रही है? अगर अभी भी सरकार ने कोरोना से हो रही मौतों को लेकर अपने स्वास्थ्य महकमें के अफसरों को जिम्मेदार मानते हुए उन्हें इस जंग से अलग करने का मन न बनाया तो सरकार के लिए पहाडी जनपदों में भी अपनी छवि को बचाये रखने की एक बडी लडाई लडनी पड सकती है?
अफसरों की लापरवाही अब राज्य के गांव को भारी पड़ने लगी है। गाँव तक कोरोना पहुंच गया है। दिन प्रतिदिन पहाड़ी जिलों में कोरोना के मामले बढ़ रहे है, जो चिंता की बात है। सोचने वाली बात है कि अप्रैल से के महीने से कर्फ्यू लग गया, लेकिन पहाड़ी जिलों में संक्रमण न पहुंचे, इसके लिए कोई ठोस कार्ययोजना तैयार नही की गई, जबकि पिछले साल प्रशासन द्वारा क्वारंटीन सेंटर अलग से चिन्हित किये गए थे, ताकि बाहर से आने वाले व्यक्ति सीधे गांव में न जाकर पहले क्वारंटीन सेंटर में रहे। लेकिन इस बार ऐसी व्यवस्था न बनाकर लोगो को सीधे अपने गांव में जाने की अनुमति दी गई। जिलों के बॉर्डर पर भी लोगो की पूरी जांच नही की गई, जिससे भी संक्रमण की रफ्तार बढ़ी है। प्रदेश के मुखिया को भी अफसर लगातार गुमराह कर रहे है। मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत लगातार काम कर रहे है, लेकिन उनकी टीम उन तक सही जानकारी नही पहुंचा पा रही है। मुख्यमंत्री को चाहिये कि वो जल्द से जल्द अपनी मजबूत टीम बनाये और लापरवाह अफसरों को चिन्हित कर हटाये। उत्तराखंड के अफसर अपने पड़ोसी राज्य हिमाचल राज्य से भी नही सीख पा रहे है, कि कैसे उन्होंने अपने राज्य में कोरोना पर नियंत्रण पाया है। सरकार को पर्वतीय क्षेत्रों के लिए जल्द ही कुछ ठोस निर्णय लेने होंगे, ताकि गांव में और ज्यादा संक्रमण न फैले।

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