स्वास्थ्य सेवाओं के चूर-चूर होने से तडफ रहा पहाड़!

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मृगतृष्णा’ न बनाये सरकार
देहरादून(मुख्य संवाददाता)। उत्तराखण्ड में बीस साल बाद भी राज्य की स्वास्थ्य सेवायें धडाम दिखाई दे रही हैं। प्रदेश के स्वास्थ्य महकमें के लिए कहने को तो बहुंत बडा बजट मौजूद रहता है लेकिन उसके बावजूद भी दर्जनों सरकारी अस्पताल ऐसे हैं जहां मरीजों को इलाज के लिए दवाईयां भी नसीब नहीं हो पाती। उत्तराखण्ड में स्वास्थ्य महकमें का धडाम होता सिस्टम किसी से छिपा नहीं है क्योंकि राज्य में डेंगू की दस्तक ने जिस तरह से आवाम को मौत के आगोश में लिया उससे साफ नजर आ गया था कि उत्तराखण्ड की स्वास्थ्य सेवायें सिर्फ एक शोपीस से ज्यादा कुछ नहीं है? पहाडों में किसी भी सरकार ने स्वास्थ्य सेवाओं को मजबूत करने की दिशा में कभी कोई पहल नहीं की जिसका खामियाजा पहाड के लोग 21 साल से भुगदते आ रहे हैं। उत्तराखण्ड के मैदानी जिलों में कोरोना महामारी ने जिस तरह से लाशों का अम्बार देखने को मिल रहा है उसने उत्तराखण्ड स्वास्थ्य महकमें की पोल खोलकर रख दी वहीं पहाडों के कई जनपदों में जिस तरह से कोरोना ने अपना ताडंव मचा रखा है वहां स्वास्थ्य सेवायें चूर-चूर होने के कारण पहाड तड़फ रहा है और उसकी इस तडफ को सरकार कब देखेगी यह तो भविष्य के गर्त में कैद है लेकिन जिस तरह से पहाड के कुछ जिलों में मामूली बुखार से भी लोगों की मौत का मंजर देखने को मिल रहा है उससे साफ नजर आ रहा है कि सरकार का तंत्र किस तरह से पहाडों में हो रही मौतों को लेकर घृतराष्ट्र बना हुआ है?
राज्य 21साल का युवा हो गया है । लेकिन आज भी स्वास्थ्य जैसी मूलभूत सुविधाओं का अकाल ही देखने के लिए मिल रहा है। राज्य में अभी तक के चुनावों में भी किसी भी दलों ने स्वास्थ्य सेवाएँ अपने घोषणा पत्र में नही रखकर राज्य के वाशिदो को दिन में ही तारे दिखाने जैसा ही है। देश में कोरोना महामारी एक बीमारी है,बीमारी देने वाला वायरस अदृश्य है,लेकिन बचाने वाली स्वास्थ्य सुविधाओं में पसरी सरकारी लाचारी दिखाई देती हैं। सरकार की कुनीति रूपी दुश्मन के हाथों हारने के लिए मजबूर किये जाते है। आखिर इस पर सियासी दलों ने अपने घोषणा पत्र में तब्बजो क्यों नहीं दी,इस पर भी राज्य के वाशिदो को सोचना होगा। 2002 के विधानसभा चुनावों में राज्य की सत्ता कांग्रेस के पास रही,मुखिया बने पं नारायण दत्त तिवारी जी, अपने अनुभवों से उन्हें स्वास्थ्य सेवाओं के लिए पटरी पर लाने का प्रयास किया,108 की सौगात मैदानों से लेकर पहाड़ों के दुर्गम इलाकों तक ले जाने में सफल हुए लेकिन वे भी चिकित्सकों को पहाड़ चढाने में नाकाम रहे। उसके बाद किसी भी दल के मुखिया ने इस सेवा से ही आँखे मूंद ली।
बेशक उत्तर प्रदेश के जमाने में पहाडों पर सजा के तौर पर चिकित्सको को चढाया जाता था, ये अलग बात है कि एलौपैथिक अस्पताल में आयुर्वेदिक चिकित्सक सेवा दे रहा हो लेकिन अब तो अस्पताल फार्मस्टि के भरोसे ही चल रही है,या जीवन बचाने के लिए भगवान के भरोसे जीवन दाव पर लगाना मजबूरी है। ताजा रिपोर्ट में राज्य का अन्य राज्यों की तुलना में स्वास्थ्य सेवाओं में 27वा स्थान रखता है,इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि राज्य में स्वास्थ्य सेवाएं की अच्छी है। इस समय वायरस रूपी बहुरूपिये ने मैदानों से लेकर पहाड़ों तक अपने शिकंजे में जकड़ा हुआ है ओर स्वास्थ्य सेवाएँ तार तार बनी हुई है। मैदानी क्षेत्रों में हाहाकार मचा हुआ है जहाँ पर आधुनिक सुविधाएं उपलब्ध है लेकिन दूरस्थ क्षेत्रों में हल्के से बुखार के लिए भी नीम हकीमो की शरण में जाने की मजबूरी है वैसे में यदि 2022 के विधानसभा चुनावों में राजनीतिक दलों ने अपने घोषणा पत्र में स्वास्थ्य सेवाओं को तब्बजो न दी तो ये पहाड़ी जनपदों के लिए डूब मरने की बात होगी। अभी तक सरकारों ने शराब की दुकानें ही पहाडों में खुलवाने को ही प्राथमिकता दी है।

 

 

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