तिनकाभर बीमारी में भी कब तक दिखता रहा मौत का तांडव!

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देहरादून(संवाददाता)। 21वें साल में प्रवेश करने वाले उत्तराखण्ड की स्वास्थ्य सेवायें अभी भी जमीन पर रेंगती हुई नजर आ रही हैं? हैरानी वाली बात है कि राज्य में चंद वर्ष पूर्व जब डेंगू का कहर चला था तो उस समय भी कोरोना की तरह हर तरफ मौत का तांडव देखने को मिला था जिससे यह बात शीशे की तरह साफ हो गई थी कि उत्तराखण्ड सरकार छोटी से छोटी बीमारी पर नकेल लगाने में किस तरह से समय आने पर चारो खाने चित हो जाती है। अभी कोरोना का तांडव चल ही रहा है कि उत्तराखण्ड में ब्लैक फंगस की दस्तक ने राज्यवासियों के मन में एक बडा डर पैदा कर दिया है ऐसे में राज्य के अन्दर सरकार कैसे घातक बीमारियों की चपेट में आने वाले व्यक्तियों का जीवन बचा पायेगी यह समझ से परे है?
‘सूत न कपास, जुलाहों में लट्ठम लट्ठ’ अपने नवोदित राज्य में ये चरितार्थ हो रही है। जब कि राज्य में कोरोना व मौसमी बुखार से हाहाकार मचा हुआ है। राज्य में सत्ता दल के कैबिनेट मंत्री तक अपनी सरकार पर गुर्राने से परहेज नहीं कर रहे है,जबकि विपक्ष भी अपने उग्र तेवर अपनाये हुए है। राज्य में कुछ माह बाद ही चुनाव होने है ऐसे में जनता को इस आपदा से कैसे उभरा जाय या यूँ कहें कि सरकार चार सालों तक कुंभकर्णीय निद्रा में रही ओर अब एकाएक जनता प्रेम,ये भी गले नहीं उतर रही पा रही है। राज्य में आये दिन मौतों की खबरें आ रही है पहाड़ से लेकर मैदानों तक आंकड़ा निरंतर प्रगति पर है। पहाड़ों में तो अब पैरासिटामोल तक की दवा बाजारों में नही मिल पा रही है। अस्पताल स्वयं वेंटिलेटर पर हाँफ रहे हैं ऐसे में मरीजों का हाल बेहाल है। तीरथ सरकार ने जिन डाक्टरो पहाडों में चढाने के लिए समाचारों में सुर्खियां बटोरी, वे कही दिखाई नहीं दे रही है। गाँवों में बढते कोरोना संक्रमण,इलाज की कमी से जूझते लोग झोला छाप डाक्टरों से ही इलाज करवाने के लिए मजबूर है। राज्य के पहाड़ी जिलों में दो हफ्ते से अधिक समय से लगातार बारिश व बर्फबारी हो रही है। इन क्षेत्रों में संक्रमण की वजह से लोग बुखार की शिकायत कर रहे हैं।इस समय गाँवों के हालात बहुत ही नाजुक है। फाइलों में ही दवा व जाँच की रिपोर्ट शासन को भेजी जा रही है। इन लोगों को बुखार कैसे आया इसकी जांच की सुविधाएं भी मौजूद नही है।

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