आ अब लौट चलें!
कंधों पर भार सहने का दम नही
देहरादून(मुख्य संवाददाता)। उत्तराखण्ड में प्रचंड बहुमत की सरकार प्रवासियों को उत्तराखण्ड के गांव में ही बसाने का बैंड चार साल से बजाती आ रही है और उसकी इस धुन पर कोरोना की पहली लहर आने ेके बाद हजारों प्रवासी अपने गांव में ही बस गये लेकिन कोरोना की दूसरी लहर में जिस तरह से कोरोना का तांडव पहाडों में भी मचना शुरू हुआ है तो उसे देखकर प्रवासी अब यह कहने से भी नहीं चूक रहे कि आ अब लौट चलें? उत्तराखण्ड के पहाडों में जिस तरह से स्वास्थ्य सेवायें चूर-चूर हो चुकी हैं और मामूली बुखार में भी पहाडवासियों को जिस तरह से मौत की नींद सोना पड रहा है उसे देखकर अब पहाडवासियों के मन में एक दर्द देखने को मिल रहा है और वह सरकार पर सवाल दाग रहे हैं कि पहाडों की लाशें या लाशों के पहाड़? पहाड़वासियों की इस पीडा से यह सवाल खडे हो रहे हैं कि शायद अब वह अपनों को मरते देख उनकी लाशों का भार सहने का दम भी छोड़ चुके हैं? उत्तराखण्ड की कमान संभालने वाले तीरथ सिंह रावत के सामने कोरोना से जंग जीतने के लिए उनकी अग्निपरीक्षा माना जा रहा था लेकिन वह पहाडों में कोरोना को क्या मात देंगे जब वह मैदानी जिलों में भी कोरोना मरीजों को आईसीयू बैड, वैल्टीनेटर बैड के साथ बेहतर स्वास्थ्य सेवायें देने में नाकाम साबित हो रहे हैं? अब पहाडों में जाकर वहां के अस्पतालों की व्यवस्था देखकर कौन सा पहाडों के अस्पतालांे में कोई दैवीय चमत्कार हो जायेगा यह अब पहाडवासी के दिल में एक सवाल तैर रहा है?
राज्य में संघ के प्रिय त्रिवेंद्र सिंह रावत को भाजपा हाई कमान ने हरीश रावत की राजनीति पर पूर्ण रूप से विराम लगाने के लिए कुर्सी सौंपी। लेकिन वे सत्ता के मोह में इतने लीन हो गये कि उन्होंने राज्य की जनता को कम व अधिकारियों को ज्यादा तब्बजो दी। अपने चार साल के कार्यकाल में चालीस से अधिक मलाईदार विभागों की कमान संभालने के बाबजूद भी ये विभाग केवल मेजों पर ही रेगते दिखाई दिये।
जनता के बीच पन्ने रहे असंतोष को पाटने के लिए राज्य की सत्ता संघ के प्रिय तीरथ सिंह रावत के पास सौपकर जनता में असंतोष को रोकने के लिए दी,लेकिन वे भी मात्र एक्सीडेंटल मुख्यमंत्री के तकमे उपाधि ही ले सके। जनता को लगा कि एक साल में अपने छात्र जीवन की राजनीति से सीख कर जनता के लिए विकास के द्वार खोलेगे लेकिन वे भी सत्ता के मकड़जाल मे फंसते चला गये। राज्य में कोरोना व ब्लैक फंगस की दस्तकें उनके राजनैतिक जीवन पर विराम न लगा दे,ऐसी चर्चाएं गाँव के नुक्कड़ो पर सुनाई देने लगी है।
मुख्यमंत्री ने स्वास्थ्य महकमा की जिम्मेदारी भी संभाली हुई है लेकिन आज भी जनता दवा,बैड,आईसीयू सहित जीवन रक्षक उपकरणों के अभाव में दम तोड़ रही है। ऐसा नहीं है कि मुख्यमंत्री के संज्ञान में ये न हो लेकिन दृढ़ संकल्प के अभाव में जनता के लिए अच्छे फैसले लेने की हिचकिहट है,कारण यदि है तो इसका जवाब भी मुखिया को 2022 में जनता के बीच देना पडेगा। तीरथ सरकार जनता के बीच कोई स्तंभ खडा नहीं कर पायी,वे अपने अढाई माह के कार्य काल में केवल भ्रष्ट अधिकारियों व चाटुकारो से व अपने मंत्रियों व विधायकों की आपसी खींचतान के बीच हो रहे है शीत युद्ध में फंसती चली गई। अब तो इतिहास के स्वर्णिम अक्षरों में ही लिखा जायेगा कि दुर्घटनाए बार बार नहीं आती है ओर बार बार किसी को मुखिया का ताज सुशोभित नही होता है। अब तो तीरथ सिंह रावत भी इतिहास के पन्नों में ही पलटें जायेगे।