कोरोना से लडने को सीएम को खोलना होगा ‘तीसरा नेत्र’
देहरादून(मुख्य संवाददाता)। उत्तराखण्ड के नये मुख्यमंत्री की ताजपोशी के बाद एकाएक राज्य के अन्दर जिस तरह से कोरोना ने अपना विकराल रूप ले रखा है उसने कहीं न कहीं तीरथ सिंह रावत की नींद उडा रखी है। अभी उत्तराखण्ड के सरकारी सिस्टम को मुख्यमंत्री समझ भी नहीं पाये थे कि कोरोना की दूसरी लहर ने आवाम के सामने उन्हें एक बडी अग्निपरीक्षा मंे धकेल दिया। मुख्यमंत्री खुद तो कोरोना से लडने के लिए चिंतन व मनन कर रहे हैं लेकिन राज्य का स्वास्थ्य महकमा मुख्यमंत्री की छवि को कोरोना काल में तार-तार करता हुआ नजर आ रहा है? एक ओर जहां कुछ माह बाद राज्य में विधानसभा चुनाव में तीरथ सिंह रावत की अग्निपरीक्षा होनी है तो वहीं मौजूदा दौर में कोरोना काल में उनके सिस्टम की जिस तरह से कोरोना से मौत होती हुई दिखाई दे रही है उसने भाजपा की प्रचंड बहुमत की सरकार को कटघरे में लाकर खडा कर दिया है? अगर अभी भी मुख्यमंत्री ने कोरोना से लडने के लिए अपनी एक नई बडी टीम का गठन कर उसे मैदान में न उतारा तो स्वास्थ्य महकमें के कुछ अफसर उत्तराखण्ड के अन्दर उन्हें फेल करने का तमका दिलवाने में कोई कसर नहीं छोडेंगे? राजधानी में जब स्वास्थ्य सेवायें टॉय-टॉय फिस्स हो चुकी हैं वहीं कुछ पहाडी जिलों में स्वास्थ्य सेवायें झोलाछाप डाक्टरों के हवाले है और अगर समय रहते सरकार के हाकिम ने कोरोना से लडने के लिए अपना तीसरा नेत्र न खोला तो 2022 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को इसके घातक परिणाम देखने को मिल सकते हैं?
राज्य के सिर्फ शहर ही नहीं बल्कि पहाडों में बसे गाँवों में भी कोरोना की रफ्तार बढ रही है। कोरोना संक्रमणां ने शांत गाँवों को डरावना बना दिया है। पहाड़ के गाँव मौसमी बुखार या कोरोना से जूझ रहे हैं, संसाधन विहीन गाँवों में प्रशासन व स्वास्थ्य महकमें की टीमों ने आकर खानापूर्ति के लिए जाँच कर इतिश्री कर चल दिए हैं। इन जाँचो मे जो निगेटिव रिपोर्टे वाले लोग है वे भी बीमार हो रहे हैं। इन लोगों के दुबारा जाँच करने के लिए भी डाक्टरों ने हाथ खडे कर दिए हैं।
संक्रमित मरीजों को प्रशासन की ओर से कोविड प्रोटोकॉल के तहत आधी अधूरी दवाये,सेनिटाइजर व मास्क देकर खानापूर्ति हो रही है। पूर्व में पहाडों में कोरोना महामारी नियत्रण में थी,लेकिन अब स्थिति बेकाबू होती जा रही है। अब कोरोना से मरने वालों की तादाद राष्ट्रीय दर से ज्यादा जा रही है,जो चिंतनीय है। सबसे ज्यादा मौतें अस्पतालों में भर्ती हुए मरीजों की है। लचर स्वास्थ्य सेवाओं के चलते ग्रामीण ईलाज हेतु अस्पतालों की ओर रूख नहीं कर पा रहे है,जिस कारण संक्रमण अधिक हो रहा है। जो लोगों की चिंताये बढा रहा है। राज्य की स्वास्थ्य सेवाएँ किसी से छिपी नहीं है। अब तो सरकार के कैबिनेट मंत्री भी सरकार को आँखें दिखाने से बाज नहीं आ रहे है। राज्य में नौकरशाही जरूरत से ज्यादा हावी है,सूबे के मुखिया को भी गलत सूचना देकर जनता के साथ खिलवाड़ करने से भी नही चूक रहे है। किसी भी राज्य में जब नौकरशाही, सरकार पर हावी हुई तब तब विकास का पहिया तो रूका ही है लेकिन भ्रष्टाचार भी अपने उत्कर्ष पर पहुंचने से सत्ता रूढ को सत्ताहीन करने में निर्णायक भूमिका रही है।
सरकार चिकित्सक व अस्पताल मुहैया नही करा पा रही है, स्पष्ट हो रहा है कि सरकार की भी जिम्मेदारी नही है कि वे अपने राज्य की जनता को बेहतर स्वास्थ्य सेवाएँ नहीं देना चाहती। अब तो मरीज कहने लगे हैं खि जो है उसे ही दे दे। स्वास्थ्य सुविधाओं को जरूरतमंद लोगों को उपलब्ध कराने के लिए इस वक्त जो जरूरत सरकार की ओर से किया जाना चाहिए था वह प्रबंधन काम ही नही कर रहा है,लगता है कि कोरोना के भय से ही उसकी भी मौत हो गयी।राज्य में अस्पताल है,बैड भी है,कुछ चिकित्सक व पैरामेडिकल कर्मचारी भी है,लेकिन जिनको इसकी आवश्यकता है उन्हे नही मिल रहे है।