हाईकोर्ट की कडी फटकार से कटघरे में सरकार!

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तो क्या शुुतुरमुर्ग बन गई उत्तराखण्ड सरकार?
प्रमुख संवाददाता
देहरादून। उत्तराखण्ड में कोरोना काल के दौरान जिस तरह से राज्य के अन्दर कोरोना मरीजों को आईसीयू बैड व वैल्टीनेटर बैड नहीं मिल पा रहे हैं उससे राज्य सरकार का सिस्टम चूर-चूर नजर आ रहा है। आईसीयू बैड न मिलने से जिस तरह से आये दिन राज्य के अन्दर मौत का मंजर देखने को मिल रहा है वह यह बताने के लिए काफी है कि चंद माह पूर्व राज्य की कमान संभालने वाले प्रदेश के नये मुख्यमंत्री तीरथ ंिसह रावत किस तरह से फले हो चुके हैं? सोशल मीडिया पर सरकार की नाकामी को लेकर लोगों के मन में एक बडा आक्रोश देखने को मिल रहा है और यह भी सवाल दागे जा रहे हैं कि आये दिन हो रही इन मौतों का जिम्मेदार आखिर कौन है? सरकार तो दम भर रही है कि उसने कोरोना से लडने के लिए समूचे इंतजाम कर रखे हैं लेकिन इन इंतजामों पर जिस तरह से नैनीताल उच्च न्यायालय ने बडा प्रहार करते हुए सरकार को शुतुरमुर्ग बताया है कि कोरोना काल में सरकार रेत में मुंह घसाये हुये है। उच्च न्यायालय की यह तलख टिप्पणी सरकार के सिस्टम को आईना दिखा गई। उच्च न्यायालय ने जिस तरह से उत्तराखण्ड के नये मुख्यमंत्री की सरकार पर कोरोना को लेकर जिस तरह से उनके सिस्टम पर सवाल उठाया है उससे यह बात शीशे की तरह साफ हो रही है कि राज्य सरकार कोरोना से निपटने के लिए किस तरह से फिस्ड्डी बनी हुई है?
उत्तराखण्ड में कहने को तो प्रचंड बहुमत की सरकार है लेकिन उसके चार साल के कार्यकाल में जिस तरह से भ्रष्टाचार, घोटाले, बेलगाम ब्यूरोक्रेसी देखने को मिलती रही है और दर्जनों घोटालों में जिस तरह से नैनीताल उच्च न्यायालय ने सरकार को कटघरे में किया था वह किसी से छिपा नहीं है। उत्तराखण्ड में चंद समय बाद विधानसभा चुनाव होने है और भाजपा हाईकमान ने नये मुख्यमंत्री के रूप में तीरथ सिंह रावत की ताजपोशी की थी तो ऐसा आभास हुआ था कि राज्य में लचर हो चुकी स्वास्थ्य सेवाओं, सड़क, बिजली-पानी के सिस्टम को ठीक किया जायेगा। इसी बीच राज्य के अन्दर कोरोना की दूसरी लहर शुरू हुई तो ऐसी उम्मीद थी कि सरकारी सिस्टम कोरोना मरीजों के लिए वरदान बनेगा लेकिन जिस तरह से राज्य के अन्दर कोरोना मरीजों को आईसीयू बैड व वैल्टीनेटर बैड सरकार का सिस्टम उपलब्ध नहीं करा पा रहा है उसी का परिणाम है कि राज्य के अन्दर कोरोना मरीजों की मौत का आंकडा आये दिन राज्यवासियों को पल-पल मौत का भय दिखाकर उन्हें डर में जीने के लिए मजबूर कर रहा है? सरकार ने दावा किया था कि दवाईयों की कालाबाजारी व अस्पतालों में ठगी करने वालों पर बडी नकेल लगाई जायेगी लेकिन सरकार का तंत्र सिर्फ छोटे-मोटे मेडिकलों स्टोरों व ऑक्सीजन की काला बाजारी करने वालों को पकडने तक ही सीमित होकर रह गया है। राजधानी में चंद प्राईवेट अस्पताल जिस तरह से एक आईसीयू बैड के लिए पचास हजार व वैल्टीनेटर बैड के लिए पर्दे के पीछे से एक लाख रूपये की मांग कर रहे हैं वह कालाबाजारी करने वाले सिस्टम को क्यों नजर नहीं आ रहा है यह हैरान करने वाली बात है? सरकारी सिस्टम पर उंगलियां उठनी शुरू हो गई हैं कि चंद प्राईवेट अस्पतालों पर इसलिए शिकंजा कसना नहीं चाहते क्योंकि उन्हें भी अपनो का इलाज कराने के लिए इन अस्पतालों की शरण लेनी पडती है? ऐसे में आवाम का सरकार से मोह भंग होता जा रहा है? उत्तराखण्ड में तीरथ सरकार जहां आये दिन कोरोना को लेकर मीडिया के सामने अपने सिस्टम को चुस्त दुरूस्त करने का जो ढोल पीट रही है उस पर उच्च न्यायालय नैनीताल ने एक बडा प्रहार करते हुए तलख टिप्पणी की है कि प्रदेश सरकार शुतुरमुर्ग बनी हुई है। उच्च न्यायालय की तलख टिप्पणी की कि वर्तमान में एक अदृश्य शत्रु के साथ तृतीय विश्व युद्ध चल रहा है लेकिन सरकार की ओर से अपेक्षित, गम्भीरता और तैयारी कहीं नजर नहीं आ रही है। इतना नहीं उच्च न्यायालय ने यह भी कहा कि सरकार शुतुरमुर्ग की तरह रेत पर सिर डालकर बैठी हुई नजर आ रही है। न्यायालय ने सरकार की ओर से कोरोना संक्रमण रोकने, कोविड अस्पतालों की व्यवस्था को अप्रर्याप्त और अधूरा बताया। न्यायालय ने सरकार द्वारा दिये गये शपथ पत्र पर जिस तरह से अपनी नाराजगी प्रकट की उससे तीरथ रावत सरकार कटघरे में आकर खडी हो गई है? उच्च न्यायालय ने कोरोना से निपटने में जिस तरह से सरकार के सिस्टम पर कडा प्रहार किया है और सोशल मीडिया पर जिस तरह से आवाम सरकार को निशाने पर ले रहा है वह तीरथ सिंह रावत के लिए 2022 में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए एक खतरे की घंटी बनता हुआ दिखाई दे रहा है?

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