त्रिवेंद्र की बोई फसल काटेगे तीरथ!

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देहरादून(प्रमुख संवाददाता)। उत्तराखण्ड में चार साल तक त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने सत्ता चलाई और इस दौरान जिस तरह से राज्य के अन्दर भ्रष्टाचार, घोटाले व ब्यूरोक्रेसी के हावी होने के कारण भाजपा को आवाम ने अपने निशाने पर ले रखा था उसी का परिणाम था कि भाजपा हाईकमान राज्य में भाजपा की तार-तार हो रही छवि को मैनज करने की दिशा में मंथन करने के लिए आगे आया और सत्ता को तीरथ सिंह रावत के हवाले कर दिया। चंद माह बाद तीरथ सिंह रावत की राज्य के अन्दर होने वाले विधानसभा चुनाव में अग्निपरीक्षा होनी है और जिस तरह से अब तक वह कोरोना काल में जहां आवाम की नजरों में फेल होते जा रहे हैं वहीं अब तक भ्रष्टाचार, घोटालेबाजांें व दागी अफसरों को हटाने के लिए आगे न आना इस बात की ओर संकेत कर रहा है कि त्रिवेन्द्र की बोई हुई फसल को विधानसभा चुनाव में तीरथ काटेंगे?
राज्य की जनता ने मोदी के लच्छेदार भाषणों में फंस कर 2017 के विधानसभा चुनावों में पूर्ण विश्वास के साथ पूर्ण बहुमत दिया,आशा रही कि राज्य का विकास तीव्र गति से होगा। स्वास्थ्य सेवाएँ आसानी से उपलब्ध होगी,रोजगार के अवसर आयेंगे और यातायात ओर भी बेहतर होगा। राज्य की जनता ने मान लिया था कि केद्र व राज्य में एक ही दल की सरकार होने से विकास तीव्र गति से दौड़ेगा। राज्य के नौवे मुख्यमंत्री की कमान संघ की पृष्ठभूमि के नेता त्रिवेंद्र रावत को सौपी गई। त्रिवेंद्र सरकार ने भी कम बातें, काम ज्यादा का नारे के साथ कदमताल शुरू कर दिया लेकिन उन्होंने राज्य के विकास के लिए कोई योजनाये धरातल पर नही उतार पाये।
राज्य में त्रिवेंद्र भ्रष्टाचार,निरकुश नौकरशाही का जो बीज बो चुके हैं उसकी कीमत मौजूदा मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत को भुगतनी पड़ेगी? अपने चार सालों के कार्य काल में तुगलकी फरमानो से जनता परेशान रही। तो वही राज्य में उघोग के नाम पर देवभूमि में शराब की फैक्ट्री ही खुल पायी। अब त्रिवेंद्र विक्रमादित्य की कुर्सी से उतर चुके हैं लेकिन अभी भी वही चंद भ्रष्टाचारी, चाटुकारो की बहार पहले की भाँति बह रही है? लेकिन भाजपा हाई कमान ने तीरथ को एक साल से कम समय के लिए सत्ता सौपकर एक तीर से अंदरूनी कलह को थामने का प्रयास किया लेकिन यह कितना थमा भविष्य के गर्भ में ही है। तीरथ के पास अपने को हाई कमान व जनता के बीच स्थापित करने के लिए बहुत अच्छा मौका मिला। क्यों कि राज्य में पार्टी अध्यक्ष सहित विभिन्न उच्च पदों पर आसन्न रहे लेकिन एक भी दाग उनकी खादी में नहीं लगे। सबका साथ, सबका विकास ओर सबका विश्वास का नारा कोसों दूर होता चला गया। पहली ही परीक्षा में फिसडी साबित हो रहे है। अभी तक उन्होंने अपने इर्द-गिर्द अनुभवी लोगों की सशक्त टीम नही बना पाये तो वही भ्रष्ट अधिकारियों की तैनाती भी अपने ही इर्द-गिर्द की जिससे जनता में अच्छा संदेश नहीं गया। कोरोना महामारी की दूसरी लहर में उनकी कठिन परीक्षा ली लेकिन वे चंद चाटुकार सलाहकारों के मोह में फंस कर राज्य मे लचर स्वास्थ्य सेवाओं को पटरी पर लाने में असमर्थ दिखाई दे रहे हैं ऐसी आशांकायें राय के अन्दर पनप रही हैं? राज्य की जनता दवाओं, आक्सीजन व बैड के लिए जूझ रही है तो वही मुनाफा खोर सरकार की नाक के नीचे चाँदी काट रहे है। राज्य में चुनावी वर्ष चल रहा है ओर कोरोना संक्रमण भी मुखिया की परीक्षा लेने के लिए आक्सीजन नहीं दे रहा है ऐसे में तीरथ सरकार जनता को कैसे विश्वास में लेकर पायेंगी, इसे तो उनके सलाहकार ही बताने में सक्षम होगे। जो भ्रष्टाचार व बेलगाम नौकरशाही का बीज त्रिवेंद्र बो कर गये हैं उसे तो तीरथ को काटना है जिसमें उनका भविष्य का फल भी है। आखिर यह तय तो राज्य की जनता ने अभी से कर दिया है।

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