सरकार का कोरोना कर्फ्यू कालाबाजारी की ‘संजीवनी’

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प्रमुख संवाददाता
देहरादून। आपदा में अवसर तलाशना किसे कहते है इसका जीता जागता उदाहरण उत्तराखण्ड की अस्थाई राजधानी देहरादून में साफ देखा जा सकता। कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर के तेज होने का जैसे ही अंदेशा होने लगा तो दून के अधिकांश धन्ना सेठ व्यापारियों, दवाई विक्रेताओं तथा कुछ बडे चिकित्सीय संस्थानों के संचालकों ने कुछ इस प्रकार से कमर कसी कि मानो धन कमाने का इससे बड़ा अवसर उन्हें बाद में कभी नहीं मिल पाएगा। यहीं कारण रहा कि संक्रमण का प्रभाव बढऩे से पूर्व ही आपदा में अवसर तलाशते हुए इन महानुभवों ने हर चीज़ के दाम बढाने शुरू कर दिए। जिस प्रकार से अंतराल के के हिसाब से शेयर मार्केट उपर चढ़ता है ठीक उसी तरह से इन्होंने अपने-अपने समानों के दामो में बढ़ौतरी करनी शुरू कर दी। वैसे तो चिकित्सक को कलयुग का भगवान कहा जाता है क्योंकि इस युग में एक वे ही है जो किसी रोग से ग्रसित इंसान को नया जीवन देते है लेकिन उत्तराखण्ड के अंदर ऐसे कई चिकित्सीय संस्थान है जहां पर सिर्फ बेड के नाम पर गरीबों की जेबों पर डाका डाला जा रहा है? कोरोना संक्रमण के बढ़ते असर को देखते हुए उत्तराखण्ड सरकार ने इतिश्री करते हुए कोरोना कफ्र्यू का प्रवाधान शुरू किया है जो कुछ-कुछ दिनों की समयावधि में विस्तारित हो रहा हैं। हालांकि सरकार का यह कदम आम जनता के लिए कष्टदायी और कालाबाजारी करने वालों के लिए संजीवनी साबित हो रहा है क्योंकि आम जनता अल्प समय को देखते हुए तेजी के साथ अपनी जरूरत का सामान और दवाईयां लेने के लिए घरों से बाहर निकलकर जब इनके द्वार पर पंहुचती है तो उसे समान्य वस्तु के भी कई गुना ज्यादा दाम देने के लिए मजबूर होना पड़ता है। ऐसे में सवाल यह उठता है कि वैसे तो जिला प्रशासन से लेकर पुलिस प्रशासन प्रमुख मीडिया के साथ-साथ सोशल मीडिया में इस बात का बखान करने से पीछे नहीं हट रही कि वे कालाबाजारी को रोकने के लिए ठोस कदम उठा रहे है, बावजूद उसके राजधानी दून में कालाबाजारी का दानव लगातार विशाल होता हुआ क्यों नजर आ रहा है? यहां कहना गलत नहीं होगा कि अगर कालाबाजारी का यह दानव इसी तरह से विशाल होता रहा तो वह दिन दूर नहीं जब आम जनता को दो वक्त की रोटी के लिए भी मोहताज होना पड़ जाए और चिकित्सीय सेवाओं तक उनकी पंहुच संभव ही न हो?
उल्लेखनीय है कि कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर में जिस चीज का अभाव सबसे ज्यादा देखने को मिल रहा है वह है ऑक्सीजन सिलेंडर। ऑक्सीजन सिलेंडर की आपूर्ति के लिए सरकार कई ठोस कदम उठा रही है। वहीं पुलिस प्रशासन की कई टीमें इस बात पर नजर बनाए हुए है कि कोई व्यक्ति इन सिलेंडरों की कालाबाजारी तो नहीं कर रहा। साथ ही साथ रेमेडसिविर दवाई की कालाबाजारी को रोकने के लिए भी काफी मुस्तैद नजर आ रहे हैं। कितनी विचित्र विडंबना है कि शासन, प्रशासन व पुलिस का फोकस या तो सबसे उपर है और या फिर सबसे नीचे। मसलन या तो वे सिर्फ ऑक्सिजन सिलेंडर और रेमेडसिविर पर नजरें गढ़ाएं बैठे है या फिर बिना मास्क घूमने वालों के 5००-1००० रुपए के चलान काटकर अपना लोहा मनवा रहे है। संकट की इस घड़ी में कई और मूलभूत चीजें भी है जिनके लिए आवाम परेशान है। वैसे तो सरकार यह दम भरने से पीछे नहीं हट रही कि उसका सारा अमला कालाबाजारी रोकने में जुटा हुआ है लेकिन धरातल पर उतर कर देखना जाए तो उसका यह सारा दम फुस्स ही दिखाई दे रहा है। दून के कई धन्ना सेठ व्यापारियों ने संभवत: पूर्वनियोजित कार्यक्रम के तहत खाद्य सामग्रियों के दाम कई गुना बढ़ा दिए है, वहीं कई बड़ दवा विक्रेताओं का भी हाल कुछ ऐसा ही है जो आसानी से उपलब्ध होने वाली दवाओं को आम जनता देने में संकोच कर रहे है? चर्चा इस बात को लेकर अब तेज हो चली है कि इन चंद दवा विक्रेताओं ने बडे चिकित्सीय संस्थानों और कुछ रसूखदारों से इन दवाओं को लेकर बांड साइन कर लिया है जिसकी वजह से उन्होंनेे दवाओं की जमाखोरी शुरू कर दी है? वहीं दूसरी ओर कुछ चिकित्सीय संस्थानों ने अपने द्वार मानो आम व गरीब जनता के लिए बंद ही कर दिए हो और उनके यहां सिर्फ अमीर और मालदार लोगों का ही इलाज होगा? ऐसे अनेक कारण है जो इस बात से पर्दा उठाने के लिए काफी है कि सरकार के जो कुशल प्रशासन के दावे है वह वास्तव में हवा हवाई है?

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