देहरादून(संवाददाता)। उत्तराखण्ड में सर्व पक्षीय धरने व उपवास कार्यक्रम में सूबे के पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष व वनाधिकार आन्दोलन के प्रणेता किशोर उपाध्याय ने कोविड-19 की घातक बीमारी में सरकार की अकर्मण्यता, संवेदनहीनता और आकंठ भ्रष्टाचार में डूबी हुयी प्रवृति को देखते हुये सरकार को इस्तीफा देने को कहा है। उपाध्याय ने कहा कि सरकार पूरे एक साल सोयी रही और स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार के लिये सरकार ने कोई काम नहीं किया, कोई पहल नहीं की।
अस्पतालों में ऑक्सिजन नहीं है, दवाईयाँ नहीं हैं, बेड्स नहीं हैं, आईसीयूएस नहीं हैं, सीसीयूएस नहीं हैं। स्वास्थ्य सुविधाओं के नाम पर जीरो बटा सन्नाटा है। राज्यपाल के कहने पर मरीज को एक बेड उपलब्ध नहीं हो पा रहा है तो आम आदमी का क्या हाल होगा? आप सोच सकते हैं। जनता ने भाजपा को इसलिये प्रचंड बहुमत नहीं दिया था कि मरीज को एक साँस देने के लिये उत्तराखंडी दर-दर भटकेंगे? राज्य के पर्वतीय क्षेत्र की तो हालात और भी खघ्राब हैं, पर्वतीय क्षेत्र में स्वास्थ्य सेवाओं का दम निकला हुआ है और जब तक मरीज नीचे मैदानी क्षेत्र में आता है, वहाँ की हालात देखकर वैसे हाई दम तोड़ देता है। उपाध्याय ने कहा कि उन्होंने 5 मई को पत्र के माध्यम से मुख्यमंत्री जी को कुछ सुझाव दिये थे, उन्होंने उस पर कोई ध्यान नहीं दिया, जिसमें पूर्ण कालिक स्वास्थ्य मन्त्री नियुक्त करने का भी सुझाव था।अमदजपसमजंते धूल फाँक रहे हैं। फ्रीज खराब हो रहे है और शव गृहों में शव सड़ रहे हैं यह अमानवीयता व संवेदनहीनता की पराकाष्ठा है और ऐसी सरकार को एक क्षण भी सत्ता में रहने का नैतिक अधिकार नहीं है, सरकार के रहने पर यदि लोगों की नियति में कष्टकारी अकाल मृत्यु है तो ऐसी निर्लज हत्यारी सरकार के बजाय अगर सरकार न हो तो ज्यादा अच्छा है। स्वास्थ्य मन्त्रालय भ्रष्टाचार का काला महा सागर बन गया है, उसके पिछले चार सालों की जाँच होनी जरूरी है। किशोर उपाध्याय ने कहा कि सरकार में अगर जरा भी लाज-शर्म बची है तो तुरन्त त्यागपत्र दे।