राजेश शर्मा
देहरादून। कोरोना काल मे जब जनता को सबसे ज्यादा राहत की उम्मीद सरकार से है, तब सारे सरकारी दावे फेल होते नजर आ रहे है। सचिव स्वास्थ्य रोज मीडिया को जानकारी दे रहे है कि सभी व्यवस्थाएं दुरुस्त है, लेकिन जनता तब भी त्रस्त नजर आ रही है। इसके क्या मायने निकाले जाय। अगर अधिकारियों की नजर में सब व्यवस्थाएं सही है, तो जनता परेशान नजर क्यो आ रही है। सोशल मीडिया के माध्यम से हर कोई अपने परिचित के लिए कुछ न कुछ मदद मांग रहा है। उत्तराखण्ड की सत्ता संभालने वाले तीरथ सिंह रावत को इस कोरोना काल में कुछ अफसर सच का आईना नहीं दिखा रहे हैं जिस कारण समूचे राज्य में कोरोना बेकाबू होता जा रहा है। राजधानी में ही अगर सरकार के मुखिया कोरोना से लडी जा रही जंग की सच्चाई अपने अफसरों के बजाए अपनी चुनिंदा टीम से कराने में विश्वास रखेंगे तो उन्हें यह सच भी पता चलेगा कि किस तरह से 108 एम्बुलेंस कोरोना मरीजों को एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल तक ले जाने के लिए घंटो सडकों पर अपनी दौड लगा रही हैं और एम्बुलेंस में रखी आक्सीजन खत्म होने के बाद उम्रदराज कोरोना मरीजों की उसी में दर्दनाक मौत हो रही है ऐसे में राजधानी के अन्दर ही कोरोना का तांडव मचा हुआ है इसकी सच्चाई अगर समय रहते हुए भी मुखिया ने देखने की कोशिश न की तो उत्तराखण्ड में हालात इतने बेकाबु हो जायेंगे कि सरकार के हाथ से सबकुछ फिसलता जायेगा? अगर कोरोना को रणनीति के तहत काबू में करने के लिए मुख्यमंत्री ने अपना तीसरा नेत्र न खोला तो वह भी राज्य के कुछ अफसरों के हवाई दावों के चक्रव्यूह में फंसकर अपनी भविष्य की राजनीति को खतरे में डाल देंगें?
अब सवाल तैरने लगे हैं कि कही ऐसा तो नही है कि अधिकारी कागजी कलाबाजी दिखा कर मुखिया को गुमराह कर रहे है। एक सवाल ये भी है कि दिल्ली और उत्तराखंड के आसपास के राज्यो में बहुत से लोगो को कोविड उपचार नही मिल पा रहा है। ऐसे में एक आशंका ये भी है कि ऊँचा रसूख रखने वाले उत्तराखंड के आईएएस और आईपीएस को फोन कर उत्तराखंड के अस्पतालों ने भर्ती हो रहे है। मुखिया को ये भी जानकारी जुटानी चाहिए कि उत्तराखंड के अस्पतालों खासकर देहरादून में उत्तराखंड के कितने मरीज भर्ती है और अन्य राज्यो से आये कितने मरीज भर्ती है। उत्तराखंड में कोरोना से निपटने के लिए अभी तक कोई हाई लेबल कमेटी नही बनाई गई है, जैसे कि यूपी में मुख्यमंत्री योगी ने टीम 11 के नाम से एक समिति बनाई है, जो हर रोज मुख्यमंत्री को जानकारी देती है। उत्तराखंड में आईएएस और विभिन्न विभागों के अधिकारियों के बीच समन्वय की भी कमी देखी जा रही है। जिसका नतीजा ये है कि दिल्ली और यूपी में लागू होने वाले नियम उत्तराखंड में भी लागू कर दिए जा रहे है, जबकि यहाँ की भौगोलिक स्थिति अन्य राज्यो से अलग है। उत्तराखंड के मुख्यमंत्री को ये देखना होगा कि अधिकारी कही केवल अपने हित मे तो मुखिया को गुमराह नही कर रहे है।