तो क्या चेहरे से चुनाव फतह करेगी भाजपा?

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कोरोनाकाल में आवाम से दूर दिख रही सरकार!
प्रमुख संवाददाता
देहरादून। पश्चिम बंगाल में हुये विधानसभा चुनाव के नतीजे जिस तरह से सामने आ रहे हैं उसने भाजपा दिग्गजों के माथे पर बल डाल दिये हैं और यह सवाल भी खडा हो गया है कि अब राज्यों में होने वाले चुनाव भ्रष्टाचार- विकास के मुद्दे पर ही लडे जायेंगे और जो सरकार अपने कार्यकाल में अच्छा काम करेगी उसे जनता बार-बार चुनकर उस पर विश्वास जतायेगी। पश्चिम बंगाल के आ रहे नतीजों ने कहीं न कहीं उत्तराखण्ड के अधिकांश भाजपा दिग्गज नेताओं के माथे पर चिंता की लकीरें डाल दी हैं। उत्तराखण्ड में चार साल तक सत्ता चलाने वाले पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत के राज में जिस तरह से भ्रष्टाचार, घोटाले व तानाशाही का तांडव राज्यवासियों ने देखा है वह नये मुख्यमंत्री तीरथ ंिसह रावत के लिए शुभ संकेत नहीं माना जा रहा? बहस छिड रही है कि नये मुख्यमंत्री के पास राज्यवासियों का दिल जीतने के लिए सिर्फ कुछ महीनों का ही समय है और उसके बाद उन्हें विधानसभा चुनाव में जाना है ऐसे में आवाम के बीच तीरथ ंिसह रावत अपनी सरकार की क्या उपलब्धि उन्हें बतायेंगे यह एक बडा सवाल खडा हो गया है? उत्तराखण्ड में भले ही मुख्यमंत्री का चेहरा बदल गया हो लेकिन सिस्टम में आधा दर्जन से अधिक दागी अफसर आज भी ऐसे हैं जो नये मुख्यमंत्री की टीम में शामिल हैं ऐसे में सिर्फ मुख्यमंत्री का चेहरा बदलने से राज्य की जनता भाजपा के पक्ष में 2022 में मतदान करने के लिए आगे आयेगी यह अभी भविष्य के गर्त में कैद है लेकिन जिस तरह से कोरोना काल में राज्यवासियों को दवाईयों की काला बाजारी के शिकार होने से लेकर आईसीयू बैड व आक्सीजन सिलेण्डर तक नहीं मिल पा रहे हैं उसनेे राज्यवासियों के मन में सरकार के प्रति एक बडी नाराजगी पैदा कर दी है और यह नाराजगी विधानसभा चुनाव में भाजपा के लिए खतरे की घंटी बन सकती है इसमें कोई दोराय नहीं है?
एकबार फिर बंगाल की जनता ने अपनी दीदी ममता बेनर्जी पर भरोसा जताकर भाजपा के सूरमाओं को चारो खाने चित्त कर अगले साल हो रहे उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड व पंजाब चुनावों पर भी सोचने के लिए मजबूर कर दिया? ताजा रुझानों से ममता बहुत आगे चल रही है और देशभर में यह रूझान भाजपा के लिए भविष्य में एक बडे खतरे की घंटी बन सकता है? उत्तराखण्ड की बात की जाए तो तीरथ सिंह रावत सरकार को सल्ट उपचुनाव में जीत तो मिल रही है लेकिन यह जीत ऊँट के मुँह पर जीरा ही साबित होगी। असल परीक्षा तो 2022 से पहले कोरोना महामारी से हो रही मौतों, अस्पतालों में दवाओं की कमी,जीने के लिए प्राण वायु सहित बेड उपलब्ध न होने से पनप रहे अविश्वास को रोकने में सफल हो पाते है की नही? तमाम सुविधाओं से युक्त राज्य के स्मार्ट शहरों से लेकर दूरस्थ हिमालय की चोटी तक तमाम जगह स्वास्थ्य सुविधाएं लचर है? राज्य की जनता के बीच तीरथ का सौम्य चेहरा भाजपा ने उतारा था कि त्रिवेंद्र से बने असंतोष को पाटा जा सके लेकिन जिन चंद सलाहकारों से स्वयं घिरे है उनसे ये वैतरणी पार नही हो सकती? कदम दर कदम मुखिया बनने की चाह रखने वाले कद्दावर नेता व भ्रष्टाचार में लिप्त कुछ सफेद कालर उन्हें चक्रव्यूह से बाहर निकलने नही दे रहे है?
दून की शांत फिजाओ व महकती बासमती की खुशबू मौतों की संडाध मे घुल गयी है,जो मुखिया के नथुनो को महसूस तक नहीं हो रही हैं? राज्य की परिकल्पना मातृशक्ति, युवाओं व तमाम बुद्धिजीवियों ने इसलिए की थी कि अपना प्रदेश की जनता तरक्की करेगी साथ ही साथ दुर्गम क्षेत्रों में आसानी से सुविधाएं मुहैया होगी लेकिन इन इक्कीस सालो में सरकारो ने अपनी जेबों में न जाने कलकल करती नदियाँ, गाड गधेरो, वनों व खनन को समा दिया हो? तीर्थ सरकार क्या इतनी बेबस व हताश है कि जनता के लिए कुछ सकारात्मक फैसले लेने में असक्षम हैं? अब राज्य के अन्दर बहस शुरू हो गई है कि नये मुख्यमंत्री के कार्यकाल में अब तक ऐसा क्या बदल गया जिससे कि राज्यवासी प्रचंड बहुमत की सरकार की आरती उतारते हुए उसे एक बार फिर 2022 के विधानसभा चुनाव में उसके माथे पर जीत का सेहरा सजा देंगे?

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