कलयुग के ‘दानवीर त्रिवेंद्र’

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देहरादून(प्रमुख संवाददाता)। उत्तराखण्ड सरकार के पूर्व मुखिया त्रिवेन्द्र सिंह रावत इन दिनों कलयुग के दानवीर बने हुये हैं। जहां उन्होंने चंद दिन पूर्व अपनी विधायक निधि से एक करोड रूपया विवेकाधीन कोष में दान देने का ऐलान किया था तो वहंी अब उन्होंने राजधानी के कोरनेशन अस्पताल में कोरोना की दवाईयों को रखने के लिए अपने घर का एक लंगडा फ्रिज दान में देने का इस कदर बखान किया मानो उत्तराखण्ड सरकार कितनी गरीब हो गई हो जिसे दवाईयां रखने के लिए भी फ्रिज भिक्षा में मांगना पड़ रहा हो? चार साल तक सत्ता चलाने वाले त्रिवेन्द्र सिंह रावत आखिरकार किस एजेंडे के तहत उत्तराखण्ड सरकार के मुखिया को राज्य में फेल मुख्यमंत्री साबित करने के लिए ऐसे प्रपंच रच रहे हैं। इसका गणित समझने के लिए तीरथ सिंह रावत ने अगर कोई मंथन न किया तो 2०22 में भाजपा को चुनाव जीताना उनके लिए एवरेस्ट पर चढने के समान हो जायेगा? श्रीनगर की एक कथित ऑडियो जिस तरह से समूचे राज्य में सोशल मीडिया पर वायरल हुई उससे यह आशंका भी अब पनपने लगी है कि आखिर कुछ चेहरे ऐसे तो नहीं हैं जो सीएम के खिलाफ पर्दे के पीछे रहकर साजिशों का ताना-बाना बुनकर उन पर फेल मुख्यमंत्री का तमका लगाने का कुचक्र रच रहे हों?
राज्य वैश्विक महामारी की चपेट से घिर चुका है। लेकिन सूबे के मुखिया अभी भी कोरोना से आवाम का जीवन बचाने के लिए कोई बडा सिस्टम तैयार नहीं कर पाये हैं? उनके विश्वसनीय बजीर उन्हें प्रदेश की बदहाल हो चुकी स्वास्थ्य सेवाओं के संदर्भ में सही जानकारी नहीं दे रहे है। सोशल मीडिया पर गुरूवार को श्रीनगर स्थित बेस चिकित्सालय से वायरल वाइस मैसेज पर दिनभर प्रदेश में चर्चा होती रही। यदि वायरल वाइस मैसेज पर विश्वास किया जाय तो चार पहाड़ी जिलों का एकमात्र चिकित्सालय भी कोरोना महामारी से अछूता नहीं है। जहाँ पर मौतों का आकडा दहाई अंक पार कर चुका है लेकिन चिकित्सालय के सरकारी रजिटरो पर अंक इकाई तक ही सिमट है। गढवाल सांसद व भावी मुख्यमंत्री कोरोना महामारी को नजरअंदाज कर रहे हैं जो आने वाले दिनों में राज्य के लिए अभिशाप बन सकती है। इस विपदा की घडी में मुखिया को ताबड़तोड़ बल्लेबाजी कर अपने गुप्त विरोधियों व निकम्मे मुलाजिमो पर नकेल कसने का सही मौका भी था। जो राज्य के हित के लिए बहुत शुभ होता। लेकिन मुख्यमंत्री को धराशायी होती व्यवस्थाये दिखाई नहीं दे रही है जिससे जनता में असंतोष की भावना उछाल मारने लगी है? राज्य में चुनाव होने के लिए कुछ ही माह शेष बचे हैं, ऐसे में जनता की अपेक्षाओं पर खरा उतरना भी मुख्यमंत्री के लिए किसी चुनौती से कम नहीं है। जबकि उनकी ही पार्टी के मुखिया बनने की चाह रखने वाले नेता अभी से चुनावी विसात बिछाकर तीरथ सरकार को विफल करने का तिकडम बुन रहे है? जिस प्रकार से विरोधियों द्वारा चाटुकारो से घेराबंदी कर मुख्यमंत्री को छिटकने नहीं दे रहे हैं,जो अपने आप में रहस्यों का खजाना साबित हो सकता है?
तीरथ इन गिनें चुने माह में जनता की अपेक्षाओं पर कैसे खरे होगे यह यक्ष प्रश्न जैसा ही है,क्योंकि उनके अपने विश्वासपात्र सही सूचनाये देना नहीं चाहते जिसमें जनता का हित हो। पहाडी जिलों के जिला अधिकारी अपना अधिकांश समय कैम्प कार्यालयों में ही व्यतीत कर रहे हैं जबकि लाचार जनता की समस्याओं का निराकरण आज भी फाइलों में ही सिमट कर रह गयी है। कोरोना महामारी के इस दौर में जहाँ आमजन के पास दो जून की रोटी के लाले पडे है वही मुख्यमंत्री के शुभचिंतकों ने विघुत दरो में इजाफा कर जनता पर अतिरिक्त बोझ बढा दिया है जिसकी इस समय आवश्यकता नहीं है? इस समय तो सरकार को जनता के द्वार पर संसाधनों को उपलब्ध करना व गाँव में ही सुगम रोजगार उपलब्ध करना पहली प्राथमिकता होनी चाहिए थी,दूर दूर तक नहीं दिखाई दे रही है। ऐसे में 2०22 चुनाव परिणाम किस करवटे बैठेगे इस पर भी मुख्यमंत्री को अभी से सोचना होगा?

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