राजहट त्यागें मुख्यमंत्री!

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प्रकृतेः क्रियमाणानि गुणैः कर्माणि सर्वशः। अहङ्कारविमूढात्मा कर्ताहमिति मन्यते।।
-उत्तराखण्ड में पनपने लगी सरकार के खिलाफ ‘नाराजगी’
तो क्या चंद अफसरों के बुने चक्रव्यूह में फंस गये तीरथ?
देहरादून(प्रमुख संवाददाता)। उत्तराखण्ड में सत्ता परिवर्तन होने के बाद राज्यवासियों के मन में एक आशा की किरण जागी थी कि जो काम त्रिवेन्द्र राज में चार साल के अन्दर नहीं हो पाये वह काम नये मुख्यमंत्री तीरथ ंिसह रावत अपने अल्पकार्यकाल में करके राज्यवासियों का दिल जीत लेंगे। पचास दिन से ज्यादा का समय हो गया लेकिन अभी तक सरकार के मुखिया अफसरशाही में बडा फेरबदल करने का साहस नहीं कर पाये। यही कारण है कि राज्यवासियों के मन में प्रचंड बहुमत वाली सरकार को लेकर बडी नाराजगी शुरू हो गई है? आवाम के दिल में इस बात को लेकर गुस्सा पनप रहा है कि तीरथ सिंह रावत राज्य में तेजी से पनप रहे कोरोना काल पर लगाम लगाने में अभी तक कामयाब नहीं हो पाये हैं और जिस तेजी के साथ राज्य के अन्दर कोरोना के मरीजों की मौत का मंजर राज्यवासियों के सामने आ रहा है उससे कहीं न कहीं यह संदेश भी जा रहा है कि मुख्यमंत्री राज्य के कुछ अफसरों के बुने चक्रव्यूह में सम्भवतः फंस गये हैं जिसके चलते वह राजहठ नहीं त्याग पा रहे हैं और धरातल पर कोरोना मरीजों को बचाने के लिए क्या खाका बनना चाहिए यह सिर्फ हवा-हवाई ही दिखाई दे रहा है? अगर मुख्यमंत्री अपनी समूची टीम के साथ धरातल पर उतर कर सभी सरकारी व प्राईवेट अस्पतालों में कोरोना मरीजों को मिलने वाले इलाज व आईसीयू बैड के साथ आक्सीजन का सच जानेंगे तो उन्हें वो सच सामने दिखाई दे जायेगा जो उनके अफसर मुख्यमंत्री को दिखाना ही नहीं चाहते? उत्तराखण्ड में विधानसभा चुनाव में सिर्फ कुछ माह का समय रह गया है और ऐसे में अगर मुख्यमंत्री कोरोना के इस संकट में राज्यवासियों के संकटमोचन न बन पाये तो राज्य में प्रचंड बहुमत वाली सरकार से आवाम का मोह भंग हो जायेगा और भाजपा को चुनाव में इसका बडा खामियाजा भुगतना पड जायेगा? अब तो राज्य में इस बात को लेकर बहस छिड गई है कि मुख्यमंत्री जिस तरह से किसी विधायक को स्वतंत्र स्वास्थ्य मंत्री न बनाने को लेकर राजहठ कर रहे हैं वह सरकार के लिए शुभ संकेत नहीं माने जा रहे?
उल्लेखनीय है कि प्रतिदिन नये-नये कीर्तिमान स्थापित कर रही कोरोना महामारी पर राज्य सरकार कोई ठोस कदम नहीं उठा पा रही है। राज्य में नौकरशाही कोरोना महामारी की तरह स्वयं मुख्यमंत्री को जकडे हुई दिखाई दे रही है। अब तो भारतीय जनता पार्टी के कुछ कद्दावर नेता दबी जुबान मे कहने से परहेज नहीं कर रहे है कि सरकार कोरोना से निपटने में विफल हो रही है? सरकार के पास कोई विजन नही है तथा तीरथ सिंह रावत सत्ता पर काबिज होने के बाद एक राजा की तरह अपनी प्रजा को बचाने के लिए उस जोश के साथ आगे नहीं आ रहे हैं जिस जोश के साथ उन्हें आगे आकर इस बीमारी के मकडजाल में फंसे मरीजों को बचाने के लिए उन्हें आगे आना चाहिए था? त्रिवेंद्र से तीरथ को सत्ता मिले पचास से अधिक दिन हो गये हैं लेकिन अभी तक उन्होंने अपने इर्द-गिर्द अनुभवी लोगों की सशक्त टीम नही बना पाये हैं जो उनकी कार्यप्रणाली पर भी प्रश्नचिन्ह लगा रही है? आज भी पूर्व मुख्यमंत्रियो को समय से पहले सत्ता की कुर्सी से उतारने वाले शकुनि आज भी तीरथ के साथ कदममताल कर रहे है?
राज्य के पहाड़ी जिलों में आज भी राज्य निर्माण के 21 साल बाद भी मूलभूत सुविधाओं का टोटा बना हुआ है। आये दिन किसी प्रसूता की अस्पताल पहुंचने से पूर्व ही मौत हो जाती है, जिला चिकित्सालय रेफर सेंटर बने हुए हैं,सरकार इस बात पर खुश है कि उन्होंने चिकित्सकों की अच्छी तादाद पहाडों में सेवा देने के लिए तैनात कर दी है,जो कि पहाडों के वाशिदो के लिए मात्र झुनझुना ही है? इस आपदा के दौर में मुख्यमंत्री ने स्वास्थ्य जैसा महकमा भी अपने पास रखा है जो गले नहीं उतर रहा है? इस समय तो उन्हें अपने विधायकों पर विश्वास जताकर उन्हें फ्रंटलाईन पर खडा करना चाहिए था तथा विभाग की जिम्मेदारी भी सौपकर मूल्यांकन करना चाहिए था लेकिन जिन सलाहकारों ने स्वच्छ छवि के पूर्व मुखिया नित्यानंद स्वामी,जनरल खंडूड़ी व राजनीति के चाणक्य निशंक व हरीश रावत को भी समय से पूर्व ही कुर्सी से उतारने दिया हो,उनसे भावी सरकार की नैय्या पार होगी कहना संभव नहीं है? वर्तमान हालातों पर गौर किया जाय तो मुखिया की झुंझलाहट भी साफ दिखाई दे रही है, महामारी पर लगाम नहीं लग पा रहा है,ये हाल तो उस जिले के है जहाँ पर पहाड़ी जिलों की जनता स्वास्थ्य लाभ की तमाम आधुनिक सुविधाओं के लिए उतरते है और वही राज्य के मुखिया भी विराजमान हैं,बाकी जिलों के क्या हाल है सोचनीय है? भाजपा के कुछ बडे से बडे नेता से लेकर बूथ स्तर के दर्जनों कार्यकर्ताओं के मन में भी अब यह प्रश्न उठने लगा है कि 2022 में जनता के बीच न तो मोदी का आ जादू चलेगा ओर न ही राज्य सरकार का? उत्तराखण्ड में जिस तरह से कोरोना काल में कुछ अफसर राज्यवासियों को गुमराह करने के लिए आये दिन ऐसे प्रपंच रचने लगे हेैं जिससे सरकार के मुखिया भी आवाम के निशाने पर आने लगे हैं कि कुछ अफसरों में शायद नये मुख्यमंत्री का कोई डर नहीं है जिसके चलते स्वास्थ्य महकमें के कुछ अफसर राज्यवासियों के सामने हवा-हवाई दावे परोस रहे हैं?

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