तख्त तो बदला,बदल नहीं पाये हाकिमो को
-सरकार द्वारा जारी सहायता नंबर भी नहीं उठा रहे हैं कर्मचारी
-अंदरखाने तीरथ सरकार को विफल करने का खेल तो नहीं चल रहा?
देहरादून(प्रमुख संवाददाता)। भाजपा हाईकमान ने राज्य में त्रिवेंद्र से सत्ता लेकर तीरथ को मौका देकर कि वे राज्य में पनप रहे असंतोष पर पूर्ण रूप से विराम लगाने में सफल होगे लेकिन उनके हर मोहरे शतरंज रूपी विसात पर ढेर हो रहे है, आते ही मुख्यमंत्री ने आनन-फानन में अधिकारियों का स्थानांतरण किया वह किसी के गले में नहीं उतरी,जो चंद भ्रष्ट व दागी अधिकारियों की जमात पूर्व में थी वह भी आज बेधडक राजा के गुण गा रही है? कोरोना काल में जहां मुख्यमंत्री की सबसे बडी अग्निपरीक्षा मानी जा रही है वहीं राज्य के कुछ अफसर धरातल पर काम करने के बजाए ए.सी कमरों में बैठकर कोरोना से जंग लडने का शिगुफा छोड रहे हैं और यही कारण है कि राज्य में कोरोना विकराल रूप ले चुका है और चारो ओर मौत का तांडव प्रचंड बहुमत की सरकार को हर मिनट कटघरे में खडा कर रहा है?
उत्तराखण्ड की जनता कोरोना महामारी से मर रही है वही दून की हसीन वादियों के बंद वातानुकूलित कमरों में बैठके व पत्रकार वार्ताये हो रही है, जबकि भौतिक धरातल पर काम शून्य ही है? सरकार ने जो सहायता नंबर 104 आम जनमानस के लिए दिया है उसे उठाने के लिए भी कोई तैयार नहीं है जिससे सरकार को हर इंसान अब शक की निगाह से देखने में लग गया है और उसका मानना है कि कोरोना से हो रही मौतों को सरकार का तंत्र किसी भी कीमत पर रोक नहीं पायेगा क्योंकि उनकी कोरोना से लडने की तैयारी सिर्फ हवाबाजी से ज्यादा कुछ नजर नहीं आ रही है? जनता को मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत से बहुत उम्मीदें थी कि वे बिना गुटबाजी के व जमीनी हकीकत से वाकिफ हैं तो स्वास्थ्य सेवाओं के लिए स्वर्णिम इतिहास लिखेगे, लेकिन ठीक इसके उलट तमाम उम्मीदों पर उनके अपने ही कुछ नौकरशाही ने पानी फेर कर रख दिया है? राज्य के सबसे बडे दून अस्पताल में भी पर्याप्त संसाधनों का ठोठा पूर्व की भांति आज भी बना हुआ है। कोरोना का डर खत्म हो या ना हो लेकिन बहुत से लोग असमय ही खत्म हो रहे है,आखिर सरकार की भी जिम्मेदारी बनती है कि समय समय पर औचक निरीक्षण किया जाय। ए.सी कमरों में बैठकर राज्यवासियों को संदेश देना कि सरकार ने कोरोना से लडने के लिए वैल्टीनेटर बैड, ऑक्सीजन व बैडों की बडी व्यवस्था कर रखी है लेकिन जब राजधानी में ही सरकारी तंत्र के यह दावे फर्जी दिखाई दे रहे हैं तो राज्य के अन्य जिलों में स्वास्थ्य सेवाओं का क्या हाल होगा इसका अंदाजा अपने आप लगाया जा सकता है। अब तो जनता कहने में संकोच नहीं कर रही है इनसे अच्छा तो पूर्व मुख्यमंत्री ही अच्छा था,कम से कम तुगलकी फरमानो को जारी तो करता था? वही दबे स्वर में यह आशंकाएं भी उठनी शुरू हो गई हैं कि तीरथ सिंह रावत को कोरोना काल में विफल करने की साजिश तो नहीं की जा रही? क्योंकि पूर्व में भी पंडित नारायण दत्त तिवारी को छोड़कर राजनीति के सारे महापंडित असमय ही कुर्सी से छिटक चुके हैं। राज्य में कोरोना महामारी से अधिक खतरनाक सूबे के कुछ भ्रष्ट अधिकारी हैं जिनके फन न कुचले गये तो 2022 बहुत दूर नहीं है, जब जनता प्रश्न करेगी या उससे पहले एक ओर परिवर्तन भी हो यह भी संभव है? उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत राजनीति के चाणक्य होते तो वह कुछ भ्रष्ट व दागी अफसरों के मायाजाल को अब तक भेदकर उन्हें महत्वपूर्ण पदों से बाहर का रास्ता दिखा देते लेकिन आज भी चंद दागी अफसर जिस शाही अंदाज में अपना राजपाठ चला रहे हैं वह तीरथ सिंह रावत के लिए शुभ संकेत नहीं माने जा सकते?