सफेदपोश-खाकी-अपराधियों का गठबंधन!

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…तो क्या सिर्फ दो पुलिसकर्मी ही थे गुनाहगार?
‘खाकी को बदनाम’ करते चंद अफसर, पुलिसकर्मी-दरोगा
प्रमुख संवाददाता
देहरादून। उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री तीरथ ंिसह रावत को मात्र कुछ समय पूर्व ही सत्ता की कमान मिली है और गृह विभाग के भी वह मुखिया हैं इसलिए उन्हें इस बात की गोपनीय पडताल करानी चाहिए कि राज्य में कितने सफेंदपोशों का खाकी व अपराधियों से पर्दे के पीछे से बडा गठबंधन चल रहा है? हैरानी वाली बात है कि एक ओर तो सरकार नशा तस्करों पर नकेल लगाने का दम भर रही है वहीं धर्मनगरी हरिद्वार के ज्वालापुर थाने के दो पुलिसकर्मी जिस तरह से नशे की बडी तस्करी एक बडे नशा माफिया के इशारे पर लम्बे समय से कर रहे थे उसने खाकी को एक बार फिर देशभर में बदनाम कर दिया। बहस छिड रही है कि क्या नशा माफिया सिर्फ दो पुलिसकर्मियों के सहारे ही अपने नशे के नेटवर्क को चला रहा था? क्या नशा माफिया का साथ पर्दे के पीछे से कुछ छोटे अफसर नहीं दे रहे थे इसकी जांच के लिए कब कोई बडी टीम का गठन कर उसे इस नेटवर्क का काला चिट्ठा भेदने के लिए मैदान में उतारा जायेगा? सवाल यह भी उठ रहा है कि इस बात की भी बडी जांच होनी चाहिए कि क्या नशा माफिया इतना पॉवरफुल हो रखा था कि वह कुछ छोटे अफसरों का भी दुलारा बना हुआ था? नशे की तस्करी में पकडे गये पुलिसकर्मियों की सम्पत्तियों का भी आंकलन करना चाहिए कि उन्होंने जो सम्पत्ति नशे के काले कारोबार से कमाई है उसे राज्य सरकार में निहित करने के लिए बडी कार्यवाही की जाये? उत्तराखण्ड में जिस तरह से सफेदपोश-खाकी व अपराधियों का गठनबंधन सामने आता रहा है वह उत्तराखण्ड जैसे शांतप्रिय राज्य के लिए शुभ संकेत नहीं हैं? उत्तराखण्ड के कुछ सफेदपोशों के इशारे पर जिस तरह से खाकी के कुछ अफसर उनके विरोधियों के खिलाफ बडी-बडी फर्जी धाराओं में मुकदमा कायम कर उनके खिलाफ कार्यवाही करते आये हैं उन पर आखिर सरकार कब नकेल लगायेगी यह आज भी उत्तराखण्ड के अन्दर एक रहस्य ही बना हुआ है?
उत्तराखण्ड का जन्म हुआ तो राज्यवासियों के मन में एक आशा की किरण थी कि उनके नवोदित राज्य में ऐसा कुछ देखने को नहीं मिलेगा जो कुछ राज्यों के अन्दर हमेशा देखने को मिलता रहा है। हालांकि नये राज्य को लेकर प्रदेशवासियों ने जो सपना संजोया था वह लम्बे अर्से से चूर-चूर हो चुका है। सबसे घातक बात तो यह है कि राज्य में अकसर सफेदपोश, खाकी व अपराधियों का गठजोड़ सामने आता रहा है और इस गठबंधन पर प्रहार करने के लिए आज तक कोई भी सरकार सफल हुई हो ऐसा देखने को नहीं मिला है? सफेदपोश, खाकी व खनन माफियाओं का सिंडिकेट भी हमेशा राज्य के अन्दर एक बडा चर्चा का विषय बनता रहा है और बहस छिडती रही है कि सरकार नदियों से चोरी हो रहे अपने खनन को रोकने की दिशा में क्यों कोई बडा कदम उठाने के लिए पिछले चार साल से आगे आई है? चंद समय पूर्व ही हरिद्वार के ज्वालापुर थाने के दो पुलिसकर्मियों को एसटीएफ ने नशे की खेप के साथ पकडा तो खुलासा हुआ कि वे एक बडे नशा माफिया के गैंग के लिए नशा तस्करी व उनके लिए मुखबरी का काम कर रहे थे। ऐसे में उत्तराखण्ड पुलिस एक बार फिर राज्य व देशभर में बदनामी का दाग अपने ऊपर लगवा गई? बहस छिड रही है कि क्या नशा माफिया के लिए दो पुलिसकर्मी ही नशा तस्करी का काम कर रहे थे या कुछ और छोटे व बडे अफसर ऐसे थे जो नशा माफिया के हमराज बनकर उनका पर्दे के पीछे से साथ देने का खेल खेल रहे थे? खाकी व नशा माफिया का यह गठबंधन उत्तराखण्ड के लिए बडा घातक है इसलिए डीजीपी अशोक कुमार को आगे आकर इस पूरे मामले की चंद आईपीएस अफसरों के नेतृत्व में एक एसआईटी का गठन कर सच को सामने लाने की दिशा में बडा कदम उठाना चाहिए क्योंकि पुलिसकर्मियों को सिर्फ नशा तस्करी में जेल भेजकर वो सच कभी बाहर नहींे आ सकता जो उत्तराखण्डवासियों के लिए अभी भी घातक बना हुआ है? डीजीपी अशोक कुमार के नेतृत्व में नशा तस्करी में लिप्त पुलिसकर्मियों को भले ही बेनकाब करने का मिशन चला हो लेकिन नशा माफिया के कौन-कौन छोटे या बडे अफसर हमराज थे और उसे हमेशा बचाने का खेल खेल रहे थे उन्हें बेनकाब करना डीजीपी के लिए एक बडा टास्क होना चाहिए। उत्तराखण्ड के नये मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत को सफेदपोश, खाकी के बीच लम्बे समय से चले आ रहे गठजोड पर भी बडा प्रहार करना पडेगा क्योंकि चंद सफेदपोशों के काले कारनामों को छुपाने के लिए पुलिस के चंद छोटे व बडे अफसर जिस तरह से उनके विरोधियों को फर्जी मुकदमों में साजिश के तहत फंसाकर उन्हें जेल की सलाखों के पीछे पहुंचाते रहे हैं वह उत्तराखण्ड के लिए शुभ संकेत नहंी है। उत्तराखण्ड के डीजीपी कब इस बात की समीक्षा करेंगे कि राज्य में कौन-कौन छोटे व बडे अफसर ऐसे हैं जिन्होंने चंद राजनेताओं के इशारे पर कुछ लोगों के लिए फर्जी मुकदमें कायम कर उन्हें जेल भेजा और ऐसे मुकदमांे का हश्र न्यायालयों में खुलकर देखने को मिला जहां न्यायालय ने कुछ मुकदमों को फर्जी करार देते हुए एफआईआर तक को निरस्त कर दिया। ऐसे में जांच के आदेश देने से लेकर जांच करने व फर्जी गिरफ्तारी करने वाले बडे व छोटे अफसरों के खिलाफ डीजीपी ने आज तक क्या कार्यवाही अमल में लाई इसका जवाब उन्हें उसी तरह से सोशल मीडिया पर देना चाहिए जैसा वह पदभार संभालने के बाद हर मुद्दे पर आवाम को संदेश देते हुए दिखाई देते हैं?

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