प्रमुख संवाददाता
देहरादून। उत्तराखण्ड में सत्ता परिवर्तन होने के बाद भाजपा हाईकमान ने तीरथ सिंह रावत को राज्य की कमान सौंपी है और जिस तरह से नये निजाम पूर्व मुख्यमंत्री के एक के बाद एक आदेश पलटते आ रहे हैं उससे राज्यवासियों के मन में एक आशा की किरण जागी है कि चार साल से जिन दागी व भ्रष्ट अफसरों ने आवाम को एक बडा दर्द दे रखा है उन अफसरों की फौज को नये निजाम कब तक बदलेंगे? दर्जनों अफसरों ने तो पूर्व मुख्यमंत्री के कार्यकाल में अपने आपको ही सरकार समझ रखा था और जिस तरह से वह आवाम का फोन उठाने से भी परहेज करते थे वह इन दिनों जरूर विचलित दिखाई दे रहे हैं अब ऐसे तानाशाह बने अफसरों को अगर महत्वपूर्ण पदों से बाहर का रास्ता न दिखाया गया तो उससे राज्य के अन्दर नये निजाम की कार्यशैली को लेकर फिर एक बहस छिडनी शुरू हो जायेगी?
उल्लेखनीय है कि उत्तराखण्ड के पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत के कार्यकाल में राज्य के अन्दर दर्जनों अफसर इतने पॉवरफुल बने हुये थे कि वह राज्य के कुछ मंत्री व सत्ता के विधायकों को भी अपनी ताकत का एहसास कराने से पीछे नहीं हटते थे। यही कारण था कि कई बार सत्ता के ही चंद मंत्री व विधायकों ने पूर्व मुख्यमंत्री के सामने अपना दर्द रखा था कि कुछ अफसर तो अपने आपको सरकार समझ रहे हैं और जिस तरह से राज्य के अन्दर सरकार पर ब्यूरोक्रेसी हावी हो रखी है वह राज्य के लिए शुभ संकेत नहीं है लेकिन पूर्व मुख्यमंत्री के कार्यकाल में दर्जनों अफसर इतने पॉवरफुल बने रहे कि उन्होंने अपनी हठधर्मिता से हर वो काम किया जो लोकतंत्र में तानाशाही ही माना जाता है? उत्तराखण्ड में अब स्वच्छ छवि के मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने सत्ता संभाल ली है और उनके लिए सबसे बडा टास्क राज्य में बेलगाम हो चुकी ब्यूरोक्रेसी पर नकेल लगाने का है जिससे कि राज्य की जनता के सामने संदेश जा सके कि अब तक जो अफसर अपने आपको सरकार समझते थे वह महत्वपूर्ण पदों से पदमुक्त कर दिये जायेंगे। उत्तराखण्ड के नये निजाम की अब अग्निपरीक्षा होनी है कि वह उन दर्जनों अफसरों को कब महत्वपूर्ण पदों से बाहर का रास्ता दिखायेंगे जिन्होंने राज्य की जनता को अपना गुलाम समझ रखा था? राज्य के अन्दर अभी भी इस बात को लेकर शंकाओं का दौर चल रहा है कि जो दर्जनों अफसर पूर्व मुख्यमंत्री के कार्यकाल में अपने आपको पॉवरफुल समझकर राज्य की जनता को हाशिये पर रखे हुये थे आखिरकार उन्हें महत्वपूर्ण पदों से हटाने में नये निजाम को आखिर क्या परेशानी आ रखी है?