त्रिवेन्द्र राज में हुये भ्रष्टाचार-घोटालों पर तीरथ की खामोशी!

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भ्रष्टाचारियों पर चाबुक न चला तो 2022 के चुनाव में दिखेगा संकट?
कहीं वो पास आकर तंत्र का न खेल दें खेल!
प्रमुख संवाददाता
देहरादून। उत्तराखण्ड में 2017 में हुये विधानसभा चुनाव के प्रचार-प्रसार में देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने हर मंच से ऐलान किया था कि प्रदेश में भ्रष्टाचार चरम सीमा पर है और भाजपा की सरकार सत्ता में आने के बाद भ्रष्टाचार पर नकेल लगायेगी। उत्तराखण्ड में प्रचंड बहुमत की सरकार आने के बाद मुख्यमंत्री की कुर्सी पर विराजमान हुये त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने चार साल तक सत्ता संभाली और हर मंच पर ऐलान किया कि भाजपा सरकार भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस के तहत काम करेगी लेकिन त्रिवेन्द्र राज में जिस तरह से भ्रष्टाचार व घोटाले सामने आते रहे और उनकी गूंज सोशल मीडिया से लेकर देश की सर्वोच्च अदालत में पहुंचती रही उससे त्रिवेन्द्र रावत के भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस के दावों की हमेशा पोल खुलती रही। हैरानी वाली बात तो यह रही कि त्रिवेन्द्र रावत पर ही भ्रष्टाचार को लेकर दाग लगा और रांची घूसकांड में जिस तरह से उन्होंने अपने आपको पाक-साफ साबित करने की कोशिश की उस पर उच्च न्यायालय नैनीताल ने उन्हें आईना दिखाकर इस प्रकरण की जांच सीबीआई से कराने की संस्तुति कर दी थी। त्रिवेन्द्र रावत को अपनी सरकार का चार साल का जश्न मनाने तक की इजाजत नहीं मिली और उन्हें सत्ता से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। त्रिवेन्द्र राज में हुये भ्रष्टाचार व घोटालों पर राज्य के नये मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत की खामोशी से राज्य की जनता हैरान है और उनका मानना है कि चेहरा बदलने से क्या पूर्व मुख्यमंत्री के कार्यकाल में हुये भ्रष्टाचार व घोटालों को क्लीन चिट दी जा सकती है? अब राज्य में इस बात को लेकर भी बहस शुरू हो गई है कि अगर पूर्व मुख्यमंत्री के कार्यकाल में हुये भ्रष्टाचार व घोटालों के साथ उनके कुछ करीबियों द्वारा चार साल में रहस्यमय तरीके से कमाई गई अकूत दौलत की बडी जांच कराने के लिए मुख्यमंत्री ने सख्त रूख न अपनाया तो 2022 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के लिए एक बडा संकट खडा हो सकता है और मुख्यमंत्री आवाम के बीच किस मिशन को लेकर जायेंगे यह अपने आपमें एक बडा सवाल बनता जा रहा है? अब तो यह भी शोर मचने लगा है कि पूर्व सरकार में जो चंद राजनेता अपने आपको डिप्टी सीएम से कम नहीं समझते थे वह जिस तरह से नये मुख्यमंत्री की परिक्रमा में जुट गये हैं वह तीरथ सिंह रावत के लिए शुभ नहीं माने जा रहे? चर्चा तो यहां तक है कि इनमें से एक राजनेता तो तंत्र मंत्र कराने का खेल अपने एक आका के सहारे कभी भी खेलकर सरकार को ही संकट में डाल सकता है?
उल्लेखनीय है कि उत्तराखण्ड के कुछ राजनेताओं के बारे में अकसर चर्चाओं का बाजार गर्म रहता है कि वह अपनी कुर्सी बचाने के लिए तंत्र-मंत्र का सहारा लेते हैं और भाजपा का एक बडा नेता कुमांऊ के एक जनपद में तंत्र-मंत्र कराकर अपने आपको सेफ जॉन में रखने का हमेशा खेल खेलता रहा? अब जबकि राज्य में नये मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत की ताजपोशी हुई है तबसे उन चंद राजनेताओं की राजनीतिक जमीन पर एक बडा ग्रहण लग गया है जो हमेशा मुख्यमंत्री बनने की चाह में मीडिया को अपना हथियार बनाकर रखते थे। भले ही हाईकमान ने तीरथ सिंह रावत को राज्य का मुख्यमंत्री बना दिया हो लेकिन उनकी ताजपोशी कांटों से भरा ताज ही माना जा रहा है क्योंकि 2022 में होने वाले विधानसभा चुनाव में मात्र कुछ समय ही रह गया है और राज्य में दुबारा भाजपा को सत्ता में लाने के लिए उनके सामने बडी चुनौती है? भाजपा के जो चंद बडे नेता हमेशा मुख्यमंत्री की दौड में शामिल रहे हैं क्या वह नये मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत के लिए विधानसभा चुनाव में सारथी बनेगे या फिर भुवन चन्द्र खण्डूरी के कार्यकाल में हुये विधानसभा चुनाव की तरह उनके साथ भी वैसा ही भीतरघात करने का खेल कर देंगे जैसा खेल भुवन चन्द्र खण्डूरी के साथ उनके ही अपने कुछ नेताओं ने खेला था? देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर आस्था दिखाते हुए उत्तराखण्ड की जनता ने भाजपा को प्रचंड बहुमत की सरकार दी थी लेकिन चार साल के कार्यकाल में जिस तरह से त्रिवेन्द्र राज में भ्रष्टाचार व घोटालों का शोर आये दिन मचता रहा उसी का परिणाम था कि उन्हें चार साल का कार्यकाल पूरा करने से पहले ही भाजपा हाईकमान ने मुख्यमंत्री पद से हटा दिया था? उत्तराखण्ड के अन्दर ईमानदार छवि के तीरथ सिंह रावत को राज्य का मुख्यमंत्री बनाया गया है ऐसे में पूर्व मुख्यमंत्री के कार्यकाल में हुये भ्रष्टाचार व घोटालेबाजों पर तीरथ ंिसह रावत कब एक्शन करने के लिए आगे आयेंगे इस पर राज्यवासियों की नजर लगी हुई है? सवाल यह भी उठ रहे हैं कि अगर नये मुख्यमंत्री ने भ्रष्टाचार पर प्रहार करने के लिए बडा कदम न उठाया तो वह राज्यवासियों का दिल नहीं जीत पायेंगे और 2022 में होने वाले विधानसभा चुनाव को जीताना उनके लिए बडा संकट बन जायेगा? गजब बात तो यह है कि इन दिनों कुछ ऐसी तस्वीरें सामने आ रही हैं जिसे देखकर आम आदमी भी हैरान है कि जो पूर्व मुख्यमंत्री के शासनकाल में अपने आपको डिप्टी सीएम से कम नहीं समझता था वह अचानक किसके इशारे पर मुख्यमंत्री की परिक्रमा करने में जुटा हुआ है? उत्तराखण्ड का इतिहास रहा है कि कुछ राजनेताओं को सत्ता से बेदखल करने के लिए उनके ही दल के कुछ नेता तंत्र-मंत्र का खेल भी खेलते रहे हैं ऐसे में नये मुख्यमंत्री को इस बात का इल्म होना चाहिए कि वह अपनी ही पार्टी के कुछ बडे राजनेताओं के कितने बडे निशाने पर हैं? ऐसे में उन्हें अपने आसपास ऐसे नेताओं को पहचान लेना चाहिए जो उनके लिए कभी भी घातक हो सकते हैं?

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