कांग्रेस के ताबूत मे आखिरी कील ठोकते अपने?

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प्रमुख संवाददाता
देहरादून। उत्तराखण्ड का गठन होने के बाद से ही कांग्रेस के कुछ छत्रपों में हमेशा छत्तीस का आंकडा देखने को मिलता आ रहा है। कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री रहे स्वर्गीय नारायण दत्त तिवारी और विजय बहुगुणा को सत्ता से बेदखल करने के लिए कांग्र्रेस के कुछ दिग्गज नेताओं ने हमेशा साजिशों का खेल खेला था जिसमे साजिशकर्ता नारायण दत्त तिवारी को तो पांच साल तक सत्ता से बेदखल नहीं कर पाये थे लेकिन पूर्व मुख्यमंत्री रहे विजय बहुगुणा को जरूर पार्टी के कुछ छत्रपों ने विरोध की चिंगारी जलाकर उनके हाथ से सत्ता छीनने का हुनर दिखा दिया था? उत्तराखण्ड मे कांग्रेस के कुछ छत्रपों मे राज्य बनने के बाद से ही चला आ रही कोल्डवार आज भी उफान पर दिखाई देती है और उसी के चलते विधानसभा और लोकसभा चुनाव मे कांग्रेस को भाजपा ने चुनावी रणभूमि मे ढेर कर यह साबित कर दिया था कि उसने कांग्रेस की गुटबाजी को हवा देते हुए किस तरह से अपने पाले मे जीत हासिल की थी? विधानसभा और लोकसभा चुनाव हारने के बाद भी कांग्रेस के कुछ छत्रपों के बीच चली आ रही कोल्डवार को देखते हुए राजनीतिक हल्को मे अब यह बहस शुरू हो गई है कि कांग्रेस के ताबूत मे उनके कुछ अपने ही आखिरी कील ठोकते हुए नजर आ रहे हैं जिससे राज्य के अन्दर कांग्रेस तार-तार होती हुई दिखाई दे रही है?
उत्तराखण्ड मे कांग्रेस के कुछ छत्रप हमेशा एकल राजनीति करने के मिशन पर आगे बढते रहे हैं और पार्टी के कुछ नेताओं के मन मे हमेशा मुख्यमंत्री बनने की चाहत देखने को मिलती रही है और इस चाहत के चलते ही पार्टी के कुछ छत्रपों के बीच एक लम्बे अर्से से कोल्डवार चला आ रहा है। कांग्रेस के कुछ छत्रपों ने अपने-अपने गुट बना रखे हैं यह किसी से छिपा नहीं है लेकिन कांग्रेस हाईकमान को उत्तराखण्ड कांग्रेस मे चली आ रही गुटबाजी आज तक क्यों दिखाई नहीं दी यह एक बडा सवाल राज्य के अन्दर उभरता रहा है। उत्तराखण्ड मे जब सबसे पहले कांग्रेस की सरकार सत्ता मे आई तो कांग्रेस हाईकमान ने सरकार की चाबी पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय नारायण दत्त तिवारी के हाथो मे सौंप दी थी लेकिन कांग्रेस हाईकमान का यह फैसला उत्तराखण्ड कांग्रेस के कुछ नेताओं को रास नहीं आता था और वह समय-समय पर पूर्व मुख्यमंत्री के खिलाफ अपनी बगावत का बिगुल यह सोचकर बजाते रहते थे कि कब कांग्रेस हाईकमान नारायण दत्त तिवारी को सत्ता से बेदखल करेगा? राजनीति के चाणक्य माने जाने वाले नारायण दत्त तिवारी ने हमेशा अपने विरोधियों को शांत करने का जो सिलसिला नाटकीय ढंग से शुरू किया था उसी का परिणाम था कि वह पांच साल तक सत्ता पर काबिज रहे थे और उनके खिलाफ बगावत करने वाले कांग्रेस के कुछ छत्रप उस दौर मे सत्ता न मिलने के कारण हाथ मलते रह गये थे? वहीं एक दौर मे फिर कांग्रेस की सरकार बनी तो कांग्रेस के कुछ छत्रपों ने सपने संजोये थे कि उन्हें मुख्यमंत्री की कुर्सी पर आसीन किया जायेगा लेकिन हाईकमान ने विजय बहुगुणा को मुख्यमंत्री बनाकर उन सभी छत्रपों के सपनों पर पानी फेर दिया था। विजय बहुगुणा को मुख्यमंत्री बनाने के बाद पार्टी के कुछ छत्रप बगावत की राह पर आगे बढते रहे और वह विजय बहुगुणा को सत्ता से बेदखल करने के लिए कभी भी कोई मौका नहीं चूकते थे और आखिरकार एक समय ऐसा आया जब विजय बहुगुणा को मुख्यमंत्री की कुर्सी से हटाकर हरीश रावत को मुख्यमंत्री की कुर्सी सौंप दी गई थी। हरीश रावत को मुख्यमंत्री बनाने के बाद से ही पार्टी के कुछ छत्रपों ने हाईकमान के इस फैसले को मजबूरी मे स्वीकार किया और यही कारण था कि पार्टी के अन्दर मुख्यमंत्री की कुर्सी को लेकर बगावत की पटकथा लिखी जाती रही और एक दौर ऐसा आया था जब पार्टी के कुछ नेताओ ंने हरीश रावत का तख्ता पलट करने के लिए बगावत कर दी थी। त्रिवेंद्र शासनकाल के चार साल पूरे होने से पहले उन्हें पद से हटा दिया गया था और कांग्रेस के कुछ छत्रपों को यह इल्म था कि अब विधानसभा चुनाव मे उनकी सरकार बनेगी और इसी को लेकर पार्टी के कुछ छत्रपों के बीच फिर मुख्यमंत्री बनने को लेकर कोल्डवार चली और उसी के चलते कांग्रेस हाथ मे आई सत्ता को पांच साल के लिए खो बैठी थी। वहीं लोकसभा चुनाव मे कांग्रेस राज्य की पांचो सीटों पर चुनाव हार गई और इस हार के बाद कांग्रेस के छत्रपों के बीच फिर कोल्डवार शुरू हुआ और इस हार को लेकर चंद राजनेताओं ने एक-दूसरे पर शब्दो के बाण चलाने शुरू कर दिये थे?
उत्तराखण्ड मे कांग्रेस हाशिये पर जाने के जिस रास्ते पर चल निकली उसे देखकर पार्टी के काफी नेता और कार्यकर्ता यह समझ चुके हैं कि कुछ छत्रप सिर्फ पार्टी पर अपना अधिकार जमाये रखने के लिए गुटबाजी को खुलकर हवा दे रहे हैं? केदारनाथ मे होने वाले उपचुनाव से पहले कांग्रेस के सहप्रभारी कांग्रेस भवन आये थे तो उन्होंने पार्टी के कुछ नेताओं से बात करने की कोशिश की तो उन्होंने साफ कहा कि जब तक पार्टी के कुछ गिनेचुने चेहरों के हाथो मे सारी कमान रहेगी तो पार्टी हाशिये पर जाती रहेगी? केदारनाथ उपचुनाव से पूर्व कांग्रेस के कुछ छत्रपो ने जिस तरह से छत्तीस का आकडा देखने को मिल रहा है उसे देखकर भाजपा के दिग्गज नेताओं के चेहरे खिले हुये हैं और वहीं कांग्रेस के अन्दर अब यह आवाज भी सुनने को मिल रही है कि पार्टी के ताबूत मे आखिरी कील ठोकने के लिए कुछ अपने ही सारा खेल खेलने के मिशन मे जुटे हुये हैं और कुछ चंद छत्रपों मे चली आ रही कोल्डवार से ही कांग्रेस अब धीरे-धीरे राज्य के अन्दर तार-तार होती हुई नजर आ रही है?

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