धामी के बेमिसाल तीन साल में अपनों की साजिश भी शामिल?

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प्रमुख संवाददाता
देहरादून। उत्तराखण्ड का इतिहास गवाह है कि जब भी कांग्रेस या भाजपा की सरकार सत्ता मे आई तो मुख्यमंत्री की कुर्सी पर आसीन होने वाले राजनेता के खिलाफ उनके ही दल के कुछ लोग पर्दे के पीछे रहकर साजिशों का खेल खेलने मे खूब दिलचस्पी लेते थे और उनकी साजिशों के शिकार कांग्रेस व भाजपा के चंद पूर्व मुख्यमंत्री भी रहे हैं यह किसी से छिपा नहीं है? उत्तराखण्ड की सत्ता संभाल रहे मुख्यमंत्री का तीन साल का बेमिसाल कार्यकाल आवाम के बीच खूब तारीफ बटोर रहा है तो वहीं धामी के बेमिसाल तीन साल के कार्यकाल मे उनके साथ बार-बार उनके कुछ अपनों ने ही साजिश का जो चक्रव्यूह रचा उसकी गूंज दिल्ली मे भी भाजपा हाईकमान के सामने गूंजती रही? धामी की धाकड़ कार्यशैली से भले ही राज्य की जनता उन्हें सर माथे पर बिठा रही हो लेकिन इन तीन साल के दौर मे धामी के अपनों की साजिश भी शामिल रही लेकिन ऐसे साजिशकर्ताओं के चेहरे बेनकाब न होने से यह सवाल भी पनप रहा है कि अगर मुख्यमंत्री दयावान बनकर साजिशकर्ताओं को क्षमादान देते रहे तो यह उनके लिए कभी भी घातक हो सकता है? मुख्यमंत्री को पहले विधानसभा चुनाव मे हराना और उसके बाद अंकिता भण्डारी के बाद रवि बडोला हत्याकांड के बाद भाजपा के ही कुछ अपनों ने मुख्यमंत्री के खिलाफ साजिश का जो चक्रव्यूह रचा था उस चक्रव्यूह को भले ही पुलिस ने भेद दिया लेकिन उस चक्रव्यूह का तानाबाना किसने और किसके इशारे पर बुना था यह आज भी एक अनसुलझी पहेली बना हुआ है?
उत्तराखण्ड की सियासत मे एक नया कीर्तिमान स्थापित करने वाले सैनिक पुत्र पुष्कर सिंह धामी ने अपने तीन साल के बेमिसाल कार्यकाल की जो आवाम के सामने छाप छोडी है उसने आवाम को तो एक नई पहचान दिला दी है लेकिन भाजपा के ही कुछ अपने मुख्यमंत्री के बढते कदमों से इतने बिलबिला रहे हैं कि वह अकसर उनके खिलाफ साजिशों का तानाबाना बुनने से बाज नहीं आ रहे हैं? मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के खिलाफ भी उसी तर्ज पर हमेशा साजिश का खेल चल रहा है जैसे पूर्व मुख्यमंत्री भुवन चंद खण्डूरी के साथ साजिश का बडा खेल हुआ था? भुवन चंद खण्डूरी भी भ्रष्टाचार के खिलाफ सख्त रूख अपनाकर भ्रष्टाचार को जड़ से समाप्त करना चाहते थे लेकिन उनकी इस पहल से भाजपा के ही कुछ अपनों मे बेचैनी बनी रहती थी और आखिरकार एक बडे चक्रव्यूह मे फंसकर भुवन चंद खण्डूरी को अपनी कुर्सी खोनी पडी थी?
उत्तराखण्ड मे कभी मंत्री न बनने वाले युवा राजनेता पुष्कर सिंह धामी को जब भाजपा हाईकमान ने मुख्यमंत्री की कुर्सी पर आसीन करके उन्हें उत्तराखण्ड को एक नया उत्तराखण्ड बनाने का विजन दिया तो उस विजन पर खरा उतरने की दिशा मे मुख्यमंत्री पुष्कर ंिसह धामी ने दिन-रात एक कर दिया और उत्तराखण्ड के वह पहले ऐसे मुख्यमंत्री बन गये हैं जिन्हें देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपना सखा और छोटा भाई मान रखा है। मुख्यमंत्री अपनी किचन टीम के साथ स्वच्छता के साथ सरकार चला रहे हैं और राज्य की जनता उन पर अभेद भरोसा करके उन्हें अपना रक्षक मान चुकी है लेकिन आवाम की उम्मीदों पर खरा उतर रहे मुख्यमंत्री की धाकड़ राजनीति ने भाजपा के ही कुछ राजनेताओं को बेचैन किया हुआ है और उनकी यह बेचैनी इस कदर बिलबिला रही है कि वह साजिश रचने का कोई मौका छोडने के लिए तैयार नहीं होते? खटीमा मे मुख्यमंत्री पुष्कर ंिसह धामी को चुनाव हरवाकर भाजपा के कुछ राजनेताओं ने यह सपना पाला था कि अब उन्हें दुबारा मुख्यमंत्री नहीं बनाया जायेगा क्योंकि भाजपा कभी भी हारे हुये मुख्यमंत्री को दुबारा मुख्यमंत्री नहीं बनाती। भाजपा हाईकमान को यह इल्म था कि पुष्कर सिंह धामी को अपनों ने ही साजिश के तहत हराया है और भाजपा ने अपनी आस्था पुष्कर सिंह धामी मे दिखाते हुए उन्हें एक बार फिर राज्य का मुख्यमंत्री बनाकर उन साजिशकर्ताओं को दिन मे तारे दिखा दिये थे जो मुख्यमंत्री की कुर्सी को साजिश रचकर हिलाने का ख्वाब पाल रहे थे?
लोकसभा चुनाव मे एकाएक अंकिता भण्डारी हत्याकांड की चिंगारी को फिर भडकाया गया और इसके सहारे वह भाजपा प्रत्याशी को चुनाव मे हरवाकर मुख्यमंत्री को भाजपा हाईकमान के सामने कमजोर करने का तानाबाना बुनकर आगे आ चले थे जबकि यह मामला न्यायालय मे विचाराधीन है लेकिन इस हत्याकांड की आड मे मुख्यमंत्री पुष्कर ंिसह धामी को निशाने पर लेने का बडा चक्रव्यूह रचा गया था लेकिन पुलिस ने यह चक्रव्यूह भेद दिया था। वहीं राजधानी के रायपुर इलाके मे कुछ बदमाशों ने जब तीन लोगों पर गोलियां चलाई जिनमे रवि बडोला की मौत हो गई थी तो इस मामले को तूल देने के लिए भाजपा के ही कुछ चेहरों ने मुख्यमंत्री को निशाने पर लेने का फिर चक्रव्यूह रचा और वह अभी अपनी चाल चल ही रहे थे कि पुलिस ने इस चाल को भी नेस्तनाबूत कर दिया था। कुल मिलाकर कहा जाये तो आवाम की नजर मे भले ही मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी उनकी आंखो के तारे बन चुके हों लेकिन धामी के तीन साल के बेमिसाल कार्यकाल मे उनके ही कुछ अपने साजिशों का तानाबाना बुनकर उन्हें निशाने पर लेने का चक्रव्यूह रचते रहे वह भी किसी से छिपा नहीं है?

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