विवादित सम्पत्तियों-दौलत पर वर्चस्व की एक दशक से चल रही जंग?
धामी की दहाड़ से अब गैंगवार का होगा अंत
प्रमुख संवाददाता
देहरादून। उत्तराखण्ड की अधिकांश एक्स सरकारों के कार्यकाल मे राजधानी के अन्दर गैंगवार की खुली जंग मे कुछ अपराधियों का सड़कों पर खून बहा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कुछ कुख्यातों ने अपना वर्चस्व कायम करने के लिए विवादित जमीनों पर कब्जा करने का तांडव किया था उसके चलते वह विवादित सम्पत्तियों पर कब्जा कर दौलत की इतनी बडी इमारत खडी करते चले गये कि उनके बीच विवादित सम्पत्तियों और दौलत को हासिल करने के लिए आपस मे ही गैंगवार का खूनी खेल चलता रहा और कुछ एक्स सरकारें इस गैंगवार पर घृतराष्ट्र बनकर खामोश बैठी रही जिसके चलते राजधानीवासियों के मन मे पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कुछ कुख्यातों को लेकर हमेशा एक डर देखने को मिलता था? पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कुख्यात रामवीर ने एक बडा गोलीकांड कर तो दिया लेकिन वह सरकार के मुखिया और राज्य के डीजीपी की अपराधियों को लेकर दिखाई दे रही आक्रामक शैली से उसकी नींदे उड़ी हुई हैं। एक लम्बे दशक से राजधानी मे जो गैंगवार का तांडव चलता आ रहा था उस गैंगवार का अंत धामी की दहाड़ से होना तय माना जा रहा है क्योंकि मुख्यमंत्री और डीजीपी उत्तराखण्ड को अपराधमुक्त करने का संकल्प लिये हुये हैं। ऐसे मे पश्चिमी उत्तर प्रदेश का अपराधी उत्तराखण्ड के अन्दर अपराध करने के लिए अपना सर उठा पायेगा यह मुमकिन नहीं है।
उल्लेखनीय है कि उत्तर प्रदेश से अलग होने के बाद जब उत्तराखण्ड राज्य अपने अस्तित्व में आया तब तक यहां पर संगठित गैंग बनाकर अपराध करने वाले अपराधियों की संख्या काफी हद तक कम हो गई थी।शुरुवाती दौर में देहरादून की नाक में दम करने वाले कुख्यातों जिनमे की गुल्लू जब्बार,रितेश,बृजेश,शंकर थापा आदि जैसे अपराधियों का तत्कालीन पुलिस द्वारा सफाया किया जा चुका था।कुछ समय बाद सन 2006 में अजबपुर,केदारवाला क्षेत्र में अपने ही पिता सहित तीन परिजनों की हत्या पश्चिमी उत्तर प्रदेश के अपराधियों द्वारा करवाने में विनय क्षेत्री उसकी पत्नी रुचि क्षेत्री ,यतेंद्र चौधरी व अन्य बदमाशो ने राजधानी में हलचल पैदा कर दी और कुछ ही समय बाद साल 2008में विनय क्षेत्री की हत्या भी उसी की पत्नी रुचि व यतेंद्र चौधरी और उसके साथियों द्वारा कर दी गई। इस अपराध मे अपराधियों को जेल की हवा भी खानी पड़ी।सन 2009 मे रणवीर इनकाउंटर के बाद कुछ पुलिस वालों के जेल जाने के बाद उत्तराखण्ड पुलिस को काफी फजीहत झेलनी पड़ी और पुलिस भी सॉफ्ट मूड में आ गई।छोटे मोटे अपराध और अपराधियों के हौसले बुलंद होते रहे। सन 2010 मे मुनीर बब्बल और उसके कुछ दिनों बाद नरेश राव की हत्याकांड ने एक बार फिर राजधानी में पश्चिमी उत्तर प्रदेश के अपराधियों और स्थानीय अपराधियों के गठजोड़ से खूनी खेल खेले गए।
बेशकीमती जमीनों और वर्चस्व की लड़ाई मे मुनीर बब्बल के साथी जितेन्द्र रावत उर्फ जित्ती,पंकज और शार्प शूटरों द्वारा बब्बल हत्याकांड को अंजाम दिया गया। इस हत्याकांड के बाद जहां जित्ती लंबे समय तक जेल की सलाखों के पीछे रहा वहीं उसका साथी पंकज ने जमानत पर छूटकर राजधानी में कई जगह अवैध प्रॉपर्टी,ब्याज और विवादित संपत्तियों में घुसकर यतेंद्र चौधरी,रामवीर,देवेंद्र भारद्वाज और अन्य आपराधिक प्रवृति के साथ मिलकर अकूत संपत्ति इकट्ठा कर ली जिस पर की जेल में बंद जित्ती को भी यह खटकने लगा और पंकज और जित्ती में खटपट रहने लगी थी ? हालांकि पंकज ने पीछे मुड़कर नहीं देखा और यतेंद्र चौधरी,रामवीर,भारद्वाज आदि के साथ अपने वर्चस्व व संपत्ति को बढ़ता गया।हालाकि जित्ती जेल से लंबे समय के बाद बाहर तो आया पर अब वह पुरानी दोस्ती दुश्मनी मे बदल गई थी? जिस पर की उनकी आपस में झड़प भी हुई पर पंकज कई सफेदपोशों और नेताओं तक अपनी पैंठ बना चुका था और जित्ती अभी कुछ दिनों पहले ही जेल से बाहर आया था,आपसी अदावत चलती रही और 2020 में यतेंद्र चौधरी और रामवीर द्वारा अपने ही साथी पंकज की हत्या मुज्जफरनगर में कर दी गई और कुछ ही समय पहले यतेंद्र चौधरी की मार्च 2024 में संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो गई थी। जिसके बाद रामवीर और देवेंद्र उर्फ सोनू भारद्वाज एक होकर अपने जरायम और सूदखोरी के धंधे को अंजाम देते रहे और पैसों और ताकत का नशा इस कदर हावी रहा की एक बार फिर इनके द्वारा छोटी सी बात पर रवि बडोला और उसके साथियों सुभाष क्षेत्री व मनोज नेगी पर ताबड़तोड़ गोलियां बरसाई गई जिसमे की रवि बडोला की मृत्यु हो गई और शेष दोनो साथी गोलियों से जख्मी हालत में अस्पताल में भर्ती है।
रवि बडोला की गोलियां मारकर हत्या किये जाने से मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी और डीजीपी अभिनव कुमार काफी गुस्से मे नजर आ रहे हैं और मुख्यमंत्री ने भी साफ किया है कि किसी भी अपराधी को बक्शा नहीं जायेगा और उन्होंने अपराधियों पर दहाडते हुए जिस तरह से उन्हें ललकारा है उससे साफ नजर आ रहा है कि अब पिछले एक दशक से राजधानी मे कुछ बदमाशों के बीच चली आ रही गैंगवार का अंत होना तय है।
क्या कुख्यात रामवीर किसी बडी वारदात की फिराक मे था?
पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कुख्यात बदमाश रामवीर ,देवेंद्र भारद्वाज और उसके साथियों द्वारा अवैध हथियारों से जिस तरह आम आदमी पर गोलियां बरसाई गई। क्या इनके द्वारा अपने वर्चस्व को जिंदा रखने और किसी के उकसाने पर इतनी बड़ी घटना को अंजाम दिया गया?
या बात कुछ और ही है? सवाल तैर रहा है कि कही पंकज,यतेंद्र,रामवीर और भारद्वाज की पुरानी दुश्मनी जित्ती और उसके साथियों से तो नही जिसके चलते यह लोग अपनी तैयारी से हो और बीच में यह घटना घट गई हो जिसे बेकसूरों को भुगतना पड़ा? पुलिस प्रशासन को इस और भी ध्यान देने की आवश्यकता है कि कही आगामी भविष्य में आपराधिक वर्चस्व की लड़ाई मे राजधानी की सड़को पर खूनी तांडव न हो?