पुष्कर के हाथों मंे होगी लोकसभा उम्मीदवारों की चाबी!

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भाजपा हाईकमान को धामी पर अभेद विश्वास
प्रमुख संवाददाता
देहरादून। उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री ने अपने ढाई साल के कार्यकाल में देश के प्रधानमंत्री से लेकर भाजपा हाईकमान का विश्वास जीतने में अपने आपको अव्वल बना दिया और उसी का परिणाम है कि आज मुख्यमंत्री उत्तराखण्ड के बडे-बडे फैसले लेने में तिनकाभर भी देर नहीं करते। उत्तराखण्ड में मुख्यमंत्री का राजनीतिक ग्राफ जिस तरह से आसमान छू रहा है उसके चलते भाजपा हाईकमान को धामी पर अभेद विश्वास है और उसी विश्वास के चलते यह तय माना जा रहा है कि लोकसभा उम्मीदवारों की चाबी मुख्यमंत्री के हाथों में होगी। देश में जिस तरह से भाजपा के बडे नेताओं ने युवाओं के हाथों में सत्ता सौंपने का जो मिशन शुरू किया है उसको देखते हुए अब यह बहस भी छिड गई है कि क्या उत्तराखण्ड में मौजूदा सांसदों को एक बार फिर चुनावी रणभूमि में उतारा जायेगा या फिर नये चेहरों को चुनाव लडवाने के लिए भाजपा हाईकमान राज्य के मुख्यमंत्री के साथ मंथन कर एक बडा फैसला ले सकता है? देश में किसी भी राज्य में होने वाले चुनाव में जीत का ताज सिर्फ देश के प्रधानमंत्री के सर पर ही सजता है क्योंकि उनके सत्ता चलाने के अंदाज से देश की जनता उन पर अभेद विश्वास करती आ रही है इसलिए किसी उम्मीदवार की जीत उसके बल पर नहीं बल्कि देश के प्रधानमंत्री की छवि के चलते ही होती है ऐसे में इस बार उत्तराखण्ड में भाजपा के लोकसभा उम्मीदवारों के भाग्य की चाबी मुख्यमंत्री के हाथांे में ही होगी?
उत्तराखण्ड के अन्दर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने सत्ता चलाने का जो पैमाना बनाया है उस पैमाने को भांपकर राज्य की जनता पुष्कर सिंह धामी पर अभेद विश्वास कर रही है और उन्हें यकीन है कि अब उत्तराखण्ड सुरक्षित हाथों में है। मुख्यमंत्री का राजनीतिक ग्राफ उत्तराखण्ड के अन्दर मौजूदा दौर मंे शीर्ष पर नजर आ रहा है और हर तरफ धामी ही धामी के नारे गूंज रहे हैं जिस तरह से पूर्व मुख्यमंत्री भुवन चंद खण्डूरी के नारे लगा करते थे कि खण्डूरी ही जरूरी। मुख्यमंत्री पुष्कर ंिसह धामी ने युवाओं से लेकर मातृशक्ति को जो एक नई उडान पर ले जाने का साहस दिखाया है उससे उत्तराखण्ड के अन्दर सरकारी नौकरियों और स्वरोजगार में सबको अपना भाग्य उदय होता हुआ दिखाई दे रहा है। लोकसभा चुनाव का कहीं न कहीं बिगुल बज चुका है और राज्य के मुख्यमंत्री पुष्कर ंिसह धामी ने उत्तराखण्ड के हर जिले में विकास की जो नई बयार बहा रखी है उससे भाजपा नेता और कार्यकर्ता गद्गद् नजर आ रहे हैं और कांग्रेस के अन्दर एक बडी बेचैनी देखने को मिल रही है कि वह आवाम के बीच चुनाव में किन मुद्दों को लेकर भाजपा की धेराबंदी करे जिससे उन्हें जीत मिल सके?
वहीं राजनीतिक गलियारों में यह भी चर्चाएं हैं कि मौजूदा दौर में जो भाजपा सांसद हैं उनमें से काफी सांसदों का टिकट कट सकता है और उनके स्थान पर भाजपा नये चेहरों को चुनाव मैदान में उतार सकती है? हालांकि अभी यह एक पहेली ही है भाजपा लोकसभा उम्मीदवारों के चयन को लेकर कौन सा पैमाना तय करेगी? भाजपा हाईकमान ने जिस तरह से हाल ही में देश के बडे राज्यो में विधानसभा चुनाव जीतने के बाद नये चेहरों को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर आसीन किया है उसके चलते आशंकाओं का दौर चल रहा है कि उत्तराखण्ड में मौजूदा सभी भाजपा सांसदों को शायद फिर चुनाव मैदान में न उतारा जाये? हालांकि यह तो अभी आशंकायें ही मानी जा रही हैं? भाजपा हाईकमान उत्तराखण्ड के कुछ कैबिनेट मंत्रियों को भी चुनाव लडवाने के लिए अपनी हरी झण्डी दे सकता है ऐसी चर्चाएं राजनीतिक गलियारों में खूब तैर रही हैं? चर्चाएं यहां तक हैं कि टिहरी से विजय बहुगुणा की सीट पर उनके पुत्र सौरभ बहुगुणा को चुनाव मैदान में उतारा जा सकता है तो वहीं पौडी गढवाल से कैबिनेट मंत्री सतपाल महाराज या कद्दावर कैबिनेट मंत्री धन सिंह रावत को भी भाजपा हाईकमान चुनाव मैदान में उतारने पर अपनी हरी झंडी दे सकती है? आशंकायें यह भी हैं कि अगर हरिद्वार सीट पर बदलाव के लिए भाजपा हाईकमान ने मंथन किया तो मदन कौशिक को भी चुनाव मैदान में उतारा जा सकता है? वहीं यह भी चर्चाएं उठ रही हैं कि नैनीताल सीट पर गदरपुर विधायक अरविंद पांडे या पूर्व विधायक राजेश शुक्ला को भी चुनाव मैदान में उतारा जा सकता है? आरक्षित अल्मोडा लोकसभा सीट पर लम्बे समय से कैबिनेट मंत्री रेखा आर्य का नाम भी काफी चर्चाओं में बना हुआ है कि उन्हें अल्मोडा से भाजपा उम्मीदवार बनाया जा सकता है? हालांकि यह सभी चर्चाएं और आशंकायें सिर्फ हवा में ही तैर रही हैं लेकिन यह भी साफ नजर आ रहा है कि भाजपा उम्मीदवारों के चयन की चाबी मुख्यमंत्री पुष्कर ंिसह धामी के हाथांे में होगी?

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